 
                                            समय - सीमा 268
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जीव-जंतु 306
 
                                            रूब-अल-हिज़्ब (Rub-el-Hizb)‚ एक इस्लामी प्रतीक है‚ जिसे इस्लामिक तारा के
रूप में भी जाना जाता है। यह एक अष्टग्राम के आकार में है‚ जिसे दो
परस्परव्याप्ति वर्गों के रूप में दर्शाया गया है। जिसमें एक वर्ग दूसरे पर शीर्षक से
आठ-शीर्ष तारे के आकार की ज्यामितीय आकृति बनाता है‚ प्रतीक के बीच में
अक्सर एक छोटा वृत्त होता है। यह पूरी दुनिया में कई आध्यात्मिक परंपराओं के
साथ कई प्रतीकों और झंडों पर भी पाया गया है। इस विभाजन पद्धति का मुख्य
उद्देश्य कुरान के पाठ की सुविधा प्रदान करना है।
अरबी (Arabic) में‚ रुब का अर्थ “एक चौथाई” या “चौथाई” तथा हिज़्ब का अर्थ
“एक समूह” होता है। प्रारंभ में‚ इसका उपयोग कुरान में किया गया था‚ जिसे 60
हिज़्ब में विभाजित किया गया है। रूब-अल-हिज़्ब आगे प्रत्येक हिज़्ब को चार भागों
में विभाजित करता है। एक हिज़्ब एक जुज़ (juz) का आधा हिस्सा है तथा कुरान
में 30 जुज़ हैं। एक जुज़ का शाब्दिक अर्थ “भाग” होता है‚ यह अलग-अलग लंबाई
के तीस भागों में से एक है जिसमें कुरान विभाजित है। इसे ईरान और भारतीय
उपमहाद्वीप में पैरा के नाम से भी जाना जाता है।
इस्लामी पुरातत्वविदों की जांच से पता चला है कि रुब-एल-हिज़्ब प्रतीक‚ अरब के
रेगिस्तान में प्राचीन पेट्रोग्लिफ्स (petroglyphs) से उत्पन्न हुआ था। पेट्रोग्लिफ्स
एक रॉक कला के रूप में एक चट्टान की सतह के हिस्से को उठाकर‚ काटकर‚
नक्काशी या एब्रेडिंग द्वारा हटाकर बनाई गई एक छवि है। यह प्रतीक‚ आठ
रेडियल सेक्टरों से जुड़े एक परिभाषित समयनिष्ठ केंद्र के साथ दो संकेंद्रित वृत्तों
से मिलकर बने‚ इस्लामिक प्रतीक के समान है‚ जब पूर्व-पश्चिम अभिमुखता की
दो पंक्तियों को जोड़ा जाता है‚ इस प्रकार एक वृत्ताकार संतुलन के साथ एक
षट्भुज में परिणामित होता है। रूब-अल-हिज़्ब का उपयोग करने वाला पहला देश
1258 में मेरिनिड (Merinid) था।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार‚ रूब-अल-हिज़्ब की उत्पत्ति का पता टार्टेसोस
(Tartessos) से लगाया जा सकता है। टार्टेसोस एक सभ्यता थी जो 11 वीं
शताब्दी ईसा पूर्व से 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास अंडालूसिया (Andalusia)
में मौजूद थी। इस क्षेत्र पर इस्लामी राजवंशों द्वारा लगभग आठ शताब्दियों तक
शासन किया गया था‚ तथा अष्टकोणीय तारा इसका अनौपचारिक प्रतीक था। रूब-
अल-हिज़्ब या नजमत-अल-कुद्स (Najmat-al-Quds) तारा एक आइकन (Icon)
है‚ जो इस्लाम में पाया जाता है। यह इस्लामी वास्तुकला में भी प्रचलित है।
रूब-अल-हिज़्ब प्रतीक ने अल-कुद्स तारे को प्रेरित किया है‚ जो जेरूसलम
(Jerusalem) शहर से जुड़ा है। 
 हुमायूँ के मकबरे के विशाल चबूतरे को संभाले हुए
लाल पत्थर के स्तंभ के निचले भाग पर अलंकृत‚ नजमत-अल-कुद्स या जेरूसलम
का अष्टकोणीय तारा‚ अरबी कला के उस विशाल योगदान को उल्लेखित करता है‚
जो इस्लाम के प्रचार को‚ मानव कल्पना को चित्रित करने पर कुरान द्वारा लगे
प्रतिबंध का पालन करते हुए‚ आलंकारिक रूपांकनों‚ सुंदर सुलिपि और ज्यामितीय
प्रतीक के साथ सौंदर्यशास्त्र और आध्यात्मिकता को मिलाकर‚ राजसी या भव्य
इमारतों को सुंदरता और अनुग्रह के साथ संपन्न करता है। अष्टकोणीय तारे की
रचना अरब में इस्लाम की स्थापना से पहले की है‚ और सुमेर (Sumer) और
अक्कादिया (Akkadia) की पुरानी सभ्यताओं के साथ-साथ बाद में हिब्रू
(Hebrew)‚ पार्थियन (Parthian)‚ ससैनियन (Sassanian) और ईसाई बीजान्टिन
(Christian Byzantine) कला में विभिन्न प्रतिपादनों में दिखाई देती है। छह-
कोणीय नजमत दाऊद (Najmat Dawud) की तरह‚ हेक्साग्राम‚ जो दुनिया भर में
प्राचीन संस्कृतियों में बेहद अलग विवेचनाओं के साथ दिखाई देता है और
मध्यकालीन हिंदुस्तान में दिल्ली सल्तनत के शासकों और बाद में गुरकानियों
द्वारा एक शैली में एक वास्तुशिल्प तत्व के रूप में उपयोग किया जाता था‚
भारत-इस्लामी वास्तुकला के रूप में जाना जाता है‚ अष्टकोणीय तारा भी
सभ्यताओं और संस्कृतियों के साथ विभिन्न प्रस्तुतियों में मौजूद पाया गया है।
अष्टकोणीय तारा‚ विश्व इतिहास के विभिन्न चरणों में ज्यामितीय प्रतीक को सही
पृथक्रकरण में विकसित करने के लिए उभरा है। इसे बड़े पैमाने पर प्रवास‚ स्वतंत्र
लोक आंदोलन या वस्तुओं के व्यापार के माध्यम से‚ पृथ्वी के एक हिस्से से दूसरे
हिस्से में ले जाया गया था। विशेष रूप से प्राचीन मेसोपोटामिया में सुमेर की
ऐतिहासिक सभ्यता में‚ जहां पुरातात्विक कार्यों ने 4‚000 ईसा पूर्व के तारे के
सबसे पुराने ज्ञात रूप की खुदाई की थी।
अष्टकोणीय तारे की तरह‚ “लक्ष्मी का तारा” (Star of Lakshmi) भी एक विशेष
अष्टग्राम है। यह एक नियमित यौगिक बहुभुज है‚ जिसे श्लाफली (Schlafli)
प्रतीक द्वारा दर्शाया गया है‚ जो 45 डिग्री कोणों पर एक ही केंद्र के साथ दो
सर्वांगसम वर्गों से बना है। यह आंकड़ा‚ द रिटर्न ऑफ द पिंक पैंथर (The
Return of the Pink Panther) द्वारा लोकप्रिय हुआ था‚ जहां इसे फिल्म में
विशेष रुप से प्रदर्शित‚ लुगाश राष्ट्रीय संग्रहालय (Lugash national museum)
में इसी नाम से चित्रित किया गया था। एक अमेरिकी (American) रॉक बैंड‚ फेथ
नो मोर (Faith No More) द्वारा भी एक अष्टकोणीय तारे वाले लोगो का
उपयोग किया गया है‚ जिसके निर्माता ने कहा कि यह अराजकता के प्रतीक के
लिए एक श्रद्धा है। ईशर का सितारा (Star of Ishtar) या इनन्ना का सितारा
(Star of Inanna) प्राचीन सुमेरियन देवी इनन्ना का प्रतीक है। इनन्ना प्रेम‚
सौंदर्य‚ युद्ध‚ न्याय और राजनीतिक शक्ति से जुड़ी एक प्राचीन मेसोपोटामिया
देवी है। जो मूल रूप से सुमेर में “इनन्ना” (Inanna) नाम से तथा बाद में
अक्कादियों (Akkadians)‚ बेबीलोनियों (Babylonians) और अश्शूरियों
(Assyrians) द्वारा “ईशर” (Ishtar) नाम से पूजी जाती थी।
हुमायूँ के मकबरे के विशाल चबूतरे को संभाले हुए
लाल पत्थर के स्तंभ के निचले भाग पर अलंकृत‚ नजमत-अल-कुद्स या जेरूसलम
का अष्टकोणीय तारा‚ अरबी कला के उस विशाल योगदान को उल्लेखित करता है‚
जो इस्लाम के प्रचार को‚ मानव कल्पना को चित्रित करने पर कुरान द्वारा लगे
प्रतिबंध का पालन करते हुए‚ आलंकारिक रूपांकनों‚ सुंदर सुलिपि और ज्यामितीय
प्रतीक के साथ सौंदर्यशास्त्र और आध्यात्मिकता को मिलाकर‚ राजसी या भव्य
इमारतों को सुंदरता और अनुग्रह के साथ संपन्न करता है। अष्टकोणीय तारे की
रचना अरब में इस्लाम की स्थापना से पहले की है‚ और सुमेर (Sumer) और
अक्कादिया (Akkadia) की पुरानी सभ्यताओं के साथ-साथ बाद में हिब्रू
(Hebrew)‚ पार्थियन (Parthian)‚ ससैनियन (Sassanian) और ईसाई बीजान्टिन
(Christian Byzantine) कला में विभिन्न प्रतिपादनों में दिखाई देती है। छह-
कोणीय नजमत दाऊद (Najmat Dawud) की तरह‚ हेक्साग्राम‚ जो दुनिया भर में
प्राचीन संस्कृतियों में बेहद अलग विवेचनाओं के साथ दिखाई देता है और
मध्यकालीन हिंदुस्तान में दिल्ली सल्तनत के शासकों और बाद में गुरकानियों
द्वारा एक शैली में एक वास्तुशिल्प तत्व के रूप में उपयोग किया जाता था‚
भारत-इस्लामी वास्तुकला के रूप में जाना जाता है‚ अष्टकोणीय तारा भी
सभ्यताओं और संस्कृतियों के साथ विभिन्न प्रस्तुतियों में मौजूद पाया गया है।
अष्टकोणीय तारा‚ विश्व इतिहास के विभिन्न चरणों में ज्यामितीय प्रतीक को सही
पृथक्रकरण में विकसित करने के लिए उभरा है। इसे बड़े पैमाने पर प्रवास‚ स्वतंत्र
लोक आंदोलन या वस्तुओं के व्यापार के माध्यम से‚ पृथ्वी के एक हिस्से से दूसरे
हिस्से में ले जाया गया था। विशेष रूप से प्राचीन मेसोपोटामिया में सुमेर की
ऐतिहासिक सभ्यता में‚ जहां पुरातात्विक कार्यों ने 4‚000 ईसा पूर्व के तारे के
सबसे पुराने ज्ञात रूप की खुदाई की थी।
अष्टकोणीय तारे की तरह‚ “लक्ष्मी का तारा” (Star of Lakshmi) भी एक विशेष
अष्टग्राम है। यह एक नियमित यौगिक बहुभुज है‚ जिसे श्लाफली (Schlafli)
प्रतीक द्वारा दर्शाया गया है‚ जो 45 डिग्री कोणों पर एक ही केंद्र के साथ दो
सर्वांगसम वर्गों से बना है। यह आंकड़ा‚ द रिटर्न ऑफ द पिंक पैंथर (The
Return of the Pink Panther) द्वारा लोकप्रिय हुआ था‚ जहां इसे फिल्म में
विशेष रुप से प्रदर्शित‚ लुगाश राष्ट्रीय संग्रहालय (Lugash national museum)
में इसी नाम से चित्रित किया गया था। एक अमेरिकी (American) रॉक बैंड‚ फेथ
नो मोर (Faith No More) द्वारा भी एक अष्टकोणीय तारे वाले लोगो का
उपयोग किया गया है‚ जिसके निर्माता ने कहा कि यह अराजकता के प्रतीक के
लिए एक श्रद्धा है। ईशर का सितारा (Star of Ishtar) या इनन्ना का सितारा
(Star of Inanna) प्राचीन सुमेरियन देवी इनन्ना का प्रतीक है। इनन्ना प्रेम‚
सौंदर्य‚ युद्ध‚ न्याय और राजनीतिक शक्ति से जुड़ी एक प्राचीन मेसोपोटामिया
देवी है। जो मूल रूप से सुमेर में “इनन्ना” (Inanna) नाम से तथा बाद में
अक्कादियों (Akkadians)‚ बेबीलोनियों (Babylonians) और अश्शूरियों
(Assyrians) द्वारा “ईशर” (Ishtar) नाम से पूजी जाती थी।  शेर के साथ यह
तारा‚ ईशर के प्राथमिक प्रतीकों में से एक था। ईशर शुक्र ग्रह से जुड़ा था‚ इसलिए
तारे को शुक्र का तारा (Star of Venus) भी कहा जाता है। इनके अतिरिक्त “सूर्य
माजापहित” (Surya Majapahit)‚ आमतौर पर माजापहित युग के खंडहरों में
पाया जाने वाला‚ हिंदू देवताओं को दर्शाने वाला प्रतीक है। जिसने केंद्र में गोल
भाग के साथ अष्टकोणीय सूर्य किरणों का रूप लिया है। माना जाता है कि इस
प्रतीक ने विशिष्ट “सूर्य मजापहित” या सूर्य की किरणों के साथ एक साधारण चक्र
द्वारा आलोकित एक ब्रह्माण्ड संबंधी आरेख का रूप लिया है। मजपहित युग के
दौरान‚ इस प्रतीक की लोकप्रियता के कारण‚ यह सुझाव दिया जाता है कि सूर्य
प्रतीक‚ माजापहित साम्राज्य के शाही प्रतीक या राज्य-चिह्न के रूप में कार्य करता
था। सूर्य मजापहित के सबसे आम चित्रण में नौ देवताओं और आठ सूर्य किरणों
के चित्र हैं। सूर्य के गोल केंद्र में नौ हिंदू देवताओं को दर्शाया गया है‚ जिन्हें
“देवता नव संगा” (Dewata Nawa Sanga) कहा जाता है तथा सूर्य के बाहरी
किनारे पर स्थित देवता‚ आठ चमकदार सूर्य किरणों के प्रतीक हैं।
शेर के साथ यह
तारा‚ ईशर के प्राथमिक प्रतीकों में से एक था। ईशर शुक्र ग्रह से जुड़ा था‚ इसलिए
तारे को शुक्र का तारा (Star of Venus) भी कहा जाता है। इनके अतिरिक्त “सूर्य
माजापहित” (Surya Majapahit)‚ आमतौर पर माजापहित युग के खंडहरों में
पाया जाने वाला‚ हिंदू देवताओं को दर्शाने वाला प्रतीक है। जिसने केंद्र में गोल
भाग के साथ अष्टकोणीय सूर्य किरणों का रूप लिया है। माना जाता है कि इस
प्रतीक ने विशिष्ट “सूर्य मजापहित” या सूर्य की किरणों के साथ एक साधारण चक्र
द्वारा आलोकित एक ब्रह्माण्ड संबंधी आरेख का रूप लिया है। मजपहित युग के
दौरान‚ इस प्रतीक की लोकप्रियता के कारण‚ यह सुझाव दिया जाता है कि सूर्य
प्रतीक‚ माजापहित साम्राज्य के शाही प्रतीक या राज्य-चिह्न के रूप में कार्य करता
था। सूर्य मजापहित के सबसे आम चित्रण में नौ देवताओं और आठ सूर्य किरणों
के चित्र हैं। सूर्य के गोल केंद्र में नौ हिंदू देवताओं को दर्शाया गया है‚ जिन्हें
“देवता नव संगा” (Dewata Nawa Sanga) कहा जाता है तथा सूर्य के बाहरी
किनारे पर स्थित देवता‚ आठ चमकदार सूर्य किरणों के प्रतीक हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3C7AHCS
https://bit.ly/3C6rlaI
https://bit.ly/3B8cPxI
https://bit.ly/3js5QKd
चित्र संदर्भ
1. रूब-अल-हिज़्ब (Rub-el-Hizb)‚ एक इस्लामी प्रतीक का एक चित्रण (wikimedia)
2. रूब-अल-हिज़्ब (Rub-el-Hizb) का एक चित्रण (wikimedia)
3. जेरूसलम (Jerusalem) शहर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एईशर का सितारा (Star of Ishtar) का एक चित्रण (wikimedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                        