त्रिशंकु संसद क्या होती है, इसके नुकसान तथा उपाय?

आधुनिक राज्य : 1947 ई. से वर्तमान तक
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त्रिशंकु संसद क्या होती है, इसके नुकसान तथा उपाय?

भारत में बहुदलीय प्रणाली अर्थात बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था चलती है। 23 सितंबर 2021 में भारतीय चुनाव आयोग के नवीनतम प्रकाशन के अनुसार, भारत में पंजीकृत दलों की कुल संख्या 2858 थी, जिसमें 8 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य दल और 2797 गैर-मान्यता प्राप्त दल शामिल थे। चूकि हम जानते हैं कि लोकसभा में किसी भी पार्टी के लिए सरकार बनाने हेतु 272 का मैजिक फिगर (magic figure) अथवा बहुमत (majority) होना आवश्यक है! किंतु बहु-दलीय (अनेक दलों वाली) पार्टी व्यवस्था होने के कारण कई बार किसी एक भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाता, और चुनावी भाषा में इस स्थिति हो त्रिशंकु संसद (hung parliament) कहा जाता है।
त्रिशंकु संसद की आसान परिभाषा को 'संसद जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं है' के रूप में परिभाषित किया गया है। संसदीय प्रणाली में, त्रिशंकु संसद या अल्पमत सरकार वह होती है जिसमें किसी एक राजनीतिक दल के पास पूर्ण बहुमत नहीं होता है। जर्मनी (Germany) या इटली (Italy) जैसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व वाले कई विधानसभाओं या मजबूत क्षेत्रीय दलों वाले विधानसभाओं में यह स्थिति सामान्य है। ऐसी स्थिति में बनी सरकार को किसी भी क़ानून को पारित करने के लिए क्षेत्रीय दलों के समर्थन की ज़रूरत पड़ती है। इसमें कई अन्य कठिनाइयाँ भी सामने आती हैं जैसे संसद के अध्यक्ष और उनके सहायक, सांसद होते हुए भी मतदान नहीं करते। त्रिशंकु संसद की स्थिति में मौजूदा प्रधानमंत्री स्वैच्छा (अपनी इच्छानुसार) त्यागपत्र देने तक तथा उसके दल को बहुमत नहीं मिलने के बावजूद भी सत्ता में काबिज़ रह सकता है। हालाँकि बहुमत के अभाव में कोई दल किसी छोटे दल के साथ गठजोड़ करके सत्ता में बना रह सकता है। लेकिन इस स्थिति में उसे नीतिगत समझौते करने पड़ सकते हैं और छोटे दल के सांसदों को भी मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ सकता है।
लोकतंत्र के आधुनिक युग में चुनाव में यह समस्या आम होती है कि कई बार क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों को सरकार बनाने के लिए कड़ी चुनौती दे रहे होते हैं। यदि हम राष्ट्रों के दृष्टिकोण से देखें, तो भारत के विशेष संदर्भ में, 1989 में हुए लोकसभा चुनावों ने पहली बार देश में त्रिशंकु संसद या अल्पसंख्यक सरकार की अवधारणा का आह्वान किया। और तब से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें त्रिशंकु संसदें ही स्थापित हैं।
भारत में हमारे पास कई राजनीतिक दल हैं। भारतीय कानून कहता है कि चार से अधिक राज्यों में प्रभुत्व रखने वाली किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी कहा जाना चाहिए। हमारे देश की चुनाव मशीनरी में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों दल चुनाव में भाग लेते हैं। यदि हम 1989 से लोकसभा के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो हम देखेंगे कि समय के साथ क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत होते जा रहे हैं, इसके परिणामस्वरूप भारत में त्रिशंकु संसद बन रही है। 1989 के आम चुनावों में राज्य या क्षेत्रीय दलों के पास 27 सीटें थीं; 1991 में यह बढ़कर 51 हो गया। 1996 के चुनावों में क्षेत्रीय दलों की सीटों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई और उन्हें 129 सीटें मिलीं। 1999 के चुनावों में क्षेत्रीय दलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें 158 सीटें मिलीं। त्रिशंकु संसद में सीटों को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच वितरित किया जाता है, क्यों की कोई भी पार्टी पूर्व गठबंधन सरकार बनाने में सक्षम नहीं होती है। त्रिशंकु संसद देश में राजनीतिक अशांति पैदा करती है। बाज़ार भी स्थिर सरकार को तरजीह देता है। यदि त्रिशंकु संसद के बाद भी गठबंधन बनता है तो सरकार को आवश्यकता पड़ने पर उचित या कड़े निर्णय लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है। सरकार के निर्णय को हमेशा चुनौती मिलती रहती है। इस तरह के राजनीतिक संघर्ष का हालिया उदाहरण परमाणु समझौते के सम्बंध में सामने आया जब यूपीए-वाम गठबंधन की जीत हुई।
यही कारण है कि देश को त्रिशंकु संसदों और सरकारों से बचना चाहिए। इसलिए इस समस्या का समाधान संभवत: सभी क्षेत्रीय दलों को खत्म करने और केंद्र में केवल 2 राजनीतिक दलों के चुनाव लड़ने से हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और पुर्तगाल में इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है और इसी तरह, इस प्रक्रिया में उम्मीदवारों को वरीयता के क्रम में स्थान दिया जाता है। यह निश्चित रूप से त्रिशंकु संसद का समाधान निकालने का एक अच्छा तरीका है।
दूसरा उपाय है दो मतपत्र प्रणाली: इस प्रक्रिया में चुनाव के दो सेट होते हैं। पहले चुनाव में सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवारों (सर्वश्रेष्ठ दो) को चुना जाता है और फिर राष्ट्र सर्वश्रेष्ठ दो उम्मीदवारों में से एक को वोट देता है। यह प्रक्रिया फ्रांस द्वारा अपनाई गई है जहाँ पहले त्रिशंकु संसद एक नियमित घटना थी, लेकिन मतदान की इस पद्धति की स्थापना के बाद चीजें बदल गई हैं। इससे बचने का एक अन्य उपाय यह हो सकता है कि चुनाव के बाद किसी भी दल को गठबंधन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। भारत में सामान्य परिघटना यह है कि चुनाव के बाद क्षेत्रीय दल सत्ता के लिए प्रयास करने के लिए अपने गठबंधन कर लेते हैं, और सरकार बनाने की कोशिश करते हैं। इसलिए चुनाव के बाद गठबंधन को अवैध नहीं कहा जाना चाहिए। साथ ही उस कानून में बदलाव होना चाहिए जो विपक्षी दल को सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार दे। भारत में किसी भी दल द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है, और एक बार जब स्पीकर इसे मंजूरी दे देता है तो मतदान होता है। यदि सत्तारूढ़ दल विश्वास मत में विफल रहता है तो फिर से चुनाव होता है। इस साल के यूपी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। 2022 के चुनाव में भी उत्तर प्रदेश और गोवा में भी त्रिशंकु विधानसभा की संभावना का अंदेशा लगाया जा रहा था, यदि त्रिशंकु विधानसभा की संभावना बनती तो कांग्रेस किंगमेकर बन सकती थी।

संदर्भ

https://bit.ly/3CAlrzI
https://bit.ly/35SP2s7
https://bit.ly/3JjNQMI

चित्र सन्दर्भ
1. वर्तमान में नई दिल्ली में एक नया संसद भवन निर्माणाधीन है, जिसको को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. 2009 में चुनी गई 15वीं लोकसभा भारतीय आम चुनाव भारत की अंतिम त्रिशंकु संसद थी।जिसको को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. लेबर पार्टी और विपक्षी गठबंधन के बीच 72-72 टाई के साथ 2010 में निर्वाचित प्रतिनिधि सभा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. भीतर से संसद भवन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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