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 यदि आप कभी किसी हरे भरे मैदान, उद्यान, नदियों अथवा पहाड़ों के निकट गए हैं, तो आपने इन सभी में निहित चिर शांति का अनुभव अवश्य किया होगा। वास्तव में, प्रकृति के निकट जाने पर मनुष्य का मन, अत्यंत प्रफुल्लित इसलिए हो जाता है क्योंकि, मनुष्य प्रकृति से पूरी तरह सामंजस्य में है! हम प्रकृति से बिल्कुल भी अलग नहीं है, बल्कि अपने आप में हम प्रकृति ही हैं। हम प्रकृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं और इस तथ्य को आदि कवि के नाम से विख्यात “कालिदास” ने विस्तार से वर्णित किया है। 
कालिदास, संस्कृत साहित्य के सबसे महान कवि माने जाते हैं। कालिदास का अर्थ “काली का सेवक (कल्याः दासः)” होता है। कालिदास के लेखन में उनके सौंदर्य निरूपण की कला, भाव की कोमलता और कल्पना की समृद्धि की जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी कम है। कालिदास को उनकी रचना ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ के लिए अत्यंत सम्मान तथा प्रसंशा प्राप्त हुई है। कालिदास के इस नाटक को लाखों भारतीयों और विदेशियों ने बहुत सराहा है। पंडित जयदेव कालिदास को 'कविकुलगुरु' कहते हैं, जिसका अर्थ “कवियों का गुरु” होता है। उनकी कविताओं से प्रतीत होता है कि कालिदास को कोमल पक्ष का स्वभाव बेहद प्रिय है। उन्होंने अपनी रचनाओं में शांतिपूर्ण आश्रमों, सुंदर उद्यानों, सुंदर महलों, गायन पक्षियों, भिनभिनाती मधुमक्खी और कोयल आदि प्राकृतिक पक्षों का प्रचुरता से उल्लेख किया है। कवि ने अपने नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम् में प्रकृति का वर्णन करते हुए कहा है-
पंडित जयदेव कालिदास को 'कविकुलगुरु' कहते हैं, जिसका अर्थ “कवियों का गुरु” होता है। उनकी कविताओं से प्रतीत होता है कि कालिदास को कोमल पक्ष का स्वभाव बेहद प्रिय है। उन्होंने अपनी रचनाओं में शांतिपूर्ण आश्रमों, सुंदर उद्यानों, सुंदर महलों, गायन पक्षियों, भिनभिनाती मधुमक्खी और कोयल आदि प्राकृतिक पक्षों का प्रचुरता से उल्लेख किया है। कवि ने अपने नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम् में प्रकृति का वर्णन करते हुए कहा है- 
“सुभागसलीलावगा: पातालसंसारगसुरभिवानवता:/ 
प्रच्छायसुलभनिद्र दिवसः परिणामारमणियाः//” 
  अर्थात दिन में नहाना सुखदायी होता है, वन से आने वाली वायु अति सुगन्धित हो जाती है और घनी छाँव में निंद्रा अनायास ही आ जाती है।  
कालिदास एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे और जिनकी प्रतिभाओं को साहित्य जगत में पूरी तरह से पहचाना और सराहा भी गया है। उनकी साहित्यिक कृतियों ने अमेरिका और एशिया के विद्वानों तथा प्राच्यविदों को भी आकर्षित किया है। उनकी काव्य प्रतिभाएँ संस्कृत कविता को परिष्कार, निरंतर स्पष्टता और अत्यधिक छायांकन के बिना ही शीर्ष पर ले जाती हैं। कालिदास की अभिव्यक्ति क्षमता भी अत्यंत सरल और अप्रभावित होती है।
  प्रकृति के प्रति कालिदास का दृष्टिकोण कभी भी मानव केन्द्रित नहीं रहा है। उनके अनुसार प्रकृति और मनुष्य के बीच एक सच्चा रिश्ता होता है। अपनी रचनाओं में प्रकृति का वर्णन करना कालिदास की विशेषता रही है। उनकी रचना अभिज्ञान शाकुन्तलम् में यह सर्वाधिक सुस्पष्ट होता है। इस नाटक में, शकुंतला (राजा दुष्यन्त की पत्नी और भारत के सुप्रसिद्ध राजा भरत की माता और मेनका अप्सरा की कन्या) आश्रम के सभी पेड़ों, लताओं और जानवरों को मनुष्यों की की भांति प्रेम करती है। नाटक का  अध्याय४ दिखाता है कि कैसे ये सभी भी शकुंतला की विदाई पर अत्यंत दुखी हो जाते हैं। शकुंतला गर्भवती हिरनी के बारे में भी बहुत चिंतित होती हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने भी कालिदास के प्रकृति प्रेम की प्रशंसा की है, और इसके बारे में बहुत कुछ विस्तार से लिखा है।
प्रकृति के प्रति कालिदास का दृष्टिकोण कभी भी मानव केन्द्रित नहीं रहा है। उनके अनुसार प्रकृति और मनुष्य के बीच एक सच्चा रिश्ता होता है। अपनी रचनाओं में प्रकृति का वर्णन करना कालिदास की विशेषता रही है। उनकी रचना अभिज्ञान शाकुन्तलम् में यह सर्वाधिक सुस्पष्ट होता है। इस नाटक में, शकुंतला (राजा दुष्यन्त की पत्नी और भारत के सुप्रसिद्ध राजा भरत की माता और मेनका अप्सरा की कन्या) आश्रम के सभी पेड़ों, लताओं और जानवरों को मनुष्यों की की भांति प्रेम करती है। नाटक का  अध्याय४ दिखाता है कि कैसे ये सभी भी शकुंतला की विदाई पर अत्यंत दुखी हो जाते हैं। शकुंतला गर्भवती हिरनी के बारे में भी बहुत चिंतित होती हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने भी कालिदास के प्रकृति प्रेम की प्रशंसा की है, और इसके बारे में बहुत कुछ विस्तार से लिखा है।  
कई अन्य साहित्यकारों की भांति कालिदास भी हमेशा स्त्री की गरिमा के प्रति संवेदनशील रहे हैं। इनकी रचनाओं में शकुन्तला, इरावती, धारिणी, यक्ष की अनाम पत्नी जैसी नायिकाएँ सभी अविस्मरणीय हैं। अभिज्ञान शाकुन्तलम्, चिंता, अलगाव और पुनर्मिलन का एक अनूठा नाटक है। नाटक की कहानी मूल रूप से राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रेम के इर्द गिर्द घूमती है।  शकुंतला एक दिव्य अप्सरा मेनका की बेटी है, जिसे उसकी माँ उसके जन्म के बाद, एक जंगल में कण्व ऋषि के आश्रम के निकट छोड़ देती है। इस परित्यक्त बच्ची , ‘शकुंतला’ को शकुंत पक्षी (जंगल में मोर) द्वारा बचाया जाता है। इसलिए भी उसे शकुंतला कहा जाता है। 
ऋषि कण्व इस परित्यक्त बच्ची को अपने आश्रम में ले जाते हैं, जहाँ वह प्रकृति की गोद में पलती और बड़ी होती है। यहां पर जंगल के पक्षी, जानवर और साधु ही उसके संगी साथी होते हैं। वह मासूमियत और प्रकृति का भी प्रतीक है।
शकुंतला एक दिव्य अप्सरा मेनका की बेटी है, जिसे उसकी माँ उसके जन्म के बाद, एक जंगल में कण्व ऋषि के आश्रम के निकट छोड़ देती है। इस परित्यक्त बच्ची , ‘शकुंतला’ को शकुंत पक्षी (जंगल में मोर) द्वारा बचाया जाता है। इसलिए भी उसे शकुंतला कहा जाता है। 
ऋषि कण्व इस परित्यक्त बच्ची को अपने आश्रम में ले जाते हैं, जहाँ वह प्रकृति की गोद में पलती और बड़ी होती है। यहां पर जंगल के पक्षी, जानवर और साधु ही उसके संगी साथी होते हैं। वह मासूमियत और प्रकृति का भी प्रतीक है।  
पहले अध्याय में, शकुंतला आदर्श नारीत्व के एक आदर्श अवतार के रूप में दिखाई देती हैं। उसके सौन्दर्य की तुलना केवल प्रकृति से ही की जा सकती है। शकुंतला और प्रकृति अपने गुणों में एक दूसरे का प्रतिनिधित्व करते हैं। उसका व्यक्तित्व प्रकृति के साथ उसके सामंजस्य में ही निहित होता है।  कालिदास की अन्य नायिकाएँ जैसे उर्वशी और मालविका आदि विलासिता भरा जीवन जीती हैं लेकिन शकुंतला, प्रकृति की संतान होती हैं। उसे प्रकृति ने पाला है, प्रकृति ही उसके मनो-यौन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब भी शकुंतला नाटक में प्रकट होती है, प्रकृति अपने विभिन्न रूपों में उसके साथ होती है। उसके स्थायी साथी जंगल में पक्षी, जानवर और पौधे होते हैं जिनके साथ उसने मानवीय संबंध स्थापित कर लिए हैं और वह उन्हें अपने सगे-संबंधियों के रूप में बुलाती है। उसने अपने पालतू जानवरों को नाम भी दिए हैं।
कालिदास की अन्य नायिकाएँ जैसे उर्वशी और मालविका आदि विलासिता भरा जीवन जीती हैं लेकिन शकुंतला, प्रकृति की संतान होती हैं। उसे प्रकृति ने पाला है, प्रकृति ही उसके मनो-यौन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब भी शकुंतला नाटक में प्रकट होती है, प्रकृति अपने विभिन्न रूपों में उसके साथ होती है। उसके स्थायी साथी जंगल में पक्षी, जानवर और पौधे होते हैं जिनके साथ उसने मानवीय संबंध स्थापित कर लिए हैं और वह उन्हें अपने सगे-संबंधियों के रूप में बुलाती है। उसने अपने पालतू जानवरों को नाम भी दिए हैं।  
वह आश्रम में चमेली की झाड़ी को 'वंज्योत्सना' और एक मृग-शिशु को 'दीरघ पंगा' कहती है। वह प्रतिदिन पौधों को पानी देती है और अपने पालतू जानवरों को भोजन खिलाती है। फिर उसके बाद ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करती है। उसके वृक्षों से कोई भी फूल नहीं तोड़ सकता। जब बगीचे में फूल खिलते हैं, तो यह उसके लिए उत्सव का अवसर होता है। यहां तक कि वनस्पति और जीव-जंतु भी शकुंतला के आनंद में उसके सहभागी बन जाते हैं।  कालिदास जब भी शकुंतला के सौन्दर्य का वर्णन करते हैं, तो वे प्रकृति से चित्र उधार लेते हैं। अर्थात  शकुंतला की तुलना अक्सर फूल या नाजुक पौधे से की जाती है। वह अपनी लता बहन वंज्योत्सना की शादी भी एक आम के पेड़ से कर देती है। एक छोटा सा शावक हर समय उसका पीछा करता रहता है।  उनके अन्य प्रसिद्ध नाटकों जैसे मेघदूतम  और रघुवंशम आदि में भी प्रकृति के विविध रूप देखने को मिलते हैं । उनकी रचनाओं में प्रकृति का संजीव रूप में चित्रण किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “कालिदास की रचनाओं में, जीवन के अविभाज्य अंग के रूप में, प्रकृति का प्रयोग कथानक को एक नई शक्ति प्रदान करता है। यह मुख्य क्रिया को ताजगी और जीवन शक्ति प्रदान करता है। उनकी रचनाओं में प्रकृति को एक पृष्ठभूमि के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
उनके अन्य प्रसिद्ध नाटकों जैसे मेघदूतम  और रघुवंशम आदि में भी प्रकृति के विविध रूप देखने को मिलते हैं । उनकी रचनाओं में प्रकृति का संजीव रूप में चित्रण किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “कालिदास की रचनाओं में, जीवन के अविभाज्य अंग के रूप में, प्रकृति का प्रयोग कथानक को एक नई शक्ति प्रदान करता है। यह मुख्य क्रिया को ताजगी और जीवन शक्ति प्रदान करता है। उनकी रचनाओं में प्रकृति को एक पृष्ठभूमि के रूप में इस्तेमाल किया गया है। 
उनके नाटक मानव दुनिया और प्रकृति के बीच एकता स्थापित करते है, और अविभाजित संवेदनाओं और सार्वभौमिक संवेदनाओं के बीच एक सामंजस्य बनाते है।“कालिदास की यह रचना बताती है कि वह एक महान कवि थे और प्रकृति उनकी आत्मा थी । वह हर पहलू की प्रकृति को समझते है। वास्तव में, वे प्रकृति के कवि थे। उनकी लेखन शैली बहुत शुद्ध और सभी के मन को छूने वाली है। कालिदास का अस्तित्व साहित्य सृष्टि के अंत तक इस संसार में विद्यमान रहेगा। 
 
संदर्भ  
https://bit.ly/3v1dWPr 
https://bit.ly/3uKcKQ0 
https://bit.ly/3BuaUGW 
https://bit.ly/3UQfhCQ 
 
चित्र संदर्भ 
1. आदिकवि कालिदास और अभिज्ञान शाकुन्तलम् के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr) 
2. मेघदूत की रचना करते कालिदास को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive) 
3. हिमालय के निकट एक साधू को दर्शाता एक चित्रण (pxhere) 
4. अभिज्ञान शाकुन्तलम् के मुख्य पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (amazon) 
5. महल में बैठी महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
6. हंस से बात करती राजकुमारी को दर्शाता एक चित्रण (picryl.)   
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        