त्रिदेवों का संयुक्त स्वरूप माने जाते हैं भगवान दत्तात्रेय

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
24-03-2023 09:30 AM
त्रिदेवों का संयुक्त स्वरूप माने जाते हैं भगवान दत्तात्रेय

देवताओं की श्रेष्ठता के संबंध में सनातन धर्म के महापंडितों के बीच अक्सर बड़ी बहस जन्म लेती रहती है! कोई कहता है कि भगवान ब्रह्मा बड़े हैं, तो कोई कहता है भगवान शिव बड़े हैं और कोई श्री हरि विष्णु को सर्वश्रेष्ठ बताता है। यदि आपके समक्ष भी इसी प्रकार का कोई विवाद या विडंबना खड़ी हो जाए, तो स्पष्टीकरण के लिए आप “दत्तात्रेय” का यह प्रसंग साझा कर सकते हैं, जिन्हें तीनों देवताओं का एक संयुक्त अवतार माना जाता है।
दत्तात्रेय नाम दो शब्दों से आया है: दत्ता, जो श्री हरि विष्णु को संदर्भित करता है, और आत्रेय, जो उनके पिता महर्षि अत्रि को संदर्भित करता है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। वह एक हिंदू देवता हैं, जिन्हें अपने सरल जीवन, दया और जीवन के अर्थ की खोज करने के लिए जाना जाता हैं। उन्हें साधु और योग के देवताओं में से एक माना जाता हैं। भारत के कुछ हिस्सों में, उन्हें एक समधर्मी देवता के रूप में पूजा जाता है, और बंगाल में उन्हें ‘त्रिनाथ' अर्थात तीन हिंदू देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का संयुक्त अवतार माना जाता हैं। जबकि गरुड़ पुराण, ब्रह्म पुराण तथा सत्त्व संहिता जैसे ग्रंथों के कुछ संस्करणों के अनुसार कुछ अन्य क्षेत्रों में उन्हें केवल श्री हरि विष्णु के अवतार माना जाता है ।
दत्तात्रेय ने भारत के दक्कन क्षेत्र, दक्षिण भारत, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमालयी क्षेत्रों में शैववाद, वैष्णववाद और शक्तिवाद से जुड़े कई मठवासी आंदोलनों को प्रेरित किया है। हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक, ‘अवधूत गीता’ (शाब्दिक रूप से, ‘मुक्त आत्मा का गीत’ को भी दत्तात्रेय की ही रचना माना जाता है। शैव धर्म की नाथ परंपरा में, दत्तात्रेय को नाथों के आदिनाथ सम्प्रदाय के आदि-गुरु (प्रथम शिक्षक) के रूप में सम्मानित किया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि दत्तात्रेय, नाथ सम्प्रदाय के पारंपरिक गुरु नहीं हैं, बल्कि 18वीं शताब्दी में नाथ परंपरा द्वारा विष्णु-शिव समन्वयवाद के एक भाग के रूप में वे एक गुरु के रूप मे चुने गए थे।
दत्तात्रेय की प्रतिमा एवं छवि, क्षेत्र के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में, उन्हें तीन सिर और छह हाथों के साथ चित्रित किया जाता है। वह आम तौर पर एक साधारण भिक्षु के रूप में दिखाई देते हैं, जो एक जंगल में रहते हैं और सांसारिक वस्तुओं का त्याग करके एक ध्यान यौगिक जीवन शैली का अनुसरण करते हैं। विभिन्न चित्रों और कुछ बड़ी नक्काशियों में, वह चार कुत्तों (प्रतीकात्मक रूप से चार वेदों) और एक गाय (धरती माँ) से घिरे हुए दर्शाए जाते हैं।
हालांकि, दत्तात्रेय की उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है, लेकिन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में हमें उनके जीवन से जुड़ी कई किवदंतियां देखने को मिलती हैं। महाभारत में उन्हें अंतर्दृष्टि और असाधारण ज्ञान रखने वाले एक असाधारण ऋषि के रूप में वर्णित किया गया है। पुराणों में उन्हें एक गुरु और विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार, उनका जन्म एक आश्रम में अनुसूया और उनके पति, वैदिक ऋषि, अत्रि के घर हुआ था, जिन्हें पारंपरिक रूप से ऋग्वेद में सबसे बड़ा योगदान देने का श्रेय दिया जाता है। यह भी कहा जाता है कि उनका जन्म पवित्र अमरनाथ मंदिर के पास कश्मीर के जंगलों में हुआ था। एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि वह अपने भाइयों दुर्वासा और चंद्र के साथ, अनुसूया नाम की एक अविवाहित माँ के यहाँ पैदा हुए थे। दत्तात्रेय के जन्म से जुड़ी एक कहानी बताती है कि एक बार तीन प्रमुख देवियों (माता सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) ने अपने पतियों, ब्रह्मा, विष्णु और शिव को, दत्तात्रेय की मां अनसूया, जिन्हें पवित्रता का प्रतीक माना जाता था, की पवित्रता का परीक्षण करने के लिए पृथ्वी पर भेजा । उन्होंने माता अनसूया को नग्न रूप में उन्हें भोजन परोसने के लिए कहा। माना जाता है कि माता अनसूया ने त्रिदेवों को छोटे-छोटे शिशुओं का रूप धारण कराया और नग्न अवस्था में ही तीनों देवताओं को भोजन कराया। लेकिन यह देखकर महर्षि अत्रि ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से तीनों शिशुओं को एक शरीर और तीन सिर वाले बच्चे में बदल दिया, जिसका नाम दत्तात्रेय रखा गया।
दत्तात्रेय के बारे में कहा जाता है कि मठवासी जीवन जीने के लिए उन्होंने कम उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया था, जिसके बाद उन्होंने लंबे समय तक ध्यान किया और वह बचपन से ही भटकते रहे। उन्होंने अपना जीवन ध्यान और ज्ञान प्राप्त करने में बिताया। हिंदू कैलेंडर के मार्गशीर्ष (नवंबर/दिसंबर) महीने में दत्तात्रेय को समर्पित एक वार्षिक त्यौहार, “दत्त जयंती” के रूप में मनाया जाता है।
भारत में, दत्तात्रेय की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रतिमा को तीन सिर और छह हाथों के साथ दर्शाया जाता है। उनके प्रत्येक हाथ में अलग-अलग वस्तुएं (जपमाला, पानी के बर्तन, कमल का फूल , त्रिशूल, शंख और चरखा) सुशोभित हैं। हालांकि, प्राचीन मंदिरों में उनका केवल एक सिर और दो हाथ दिखाई देते हैं। नेपाल और भारत के कुछ हिस्सों में, 15वीं सदी के मंदिरों में उनका सिर्फ एक चेहरा दिखाया गया है। उनके तीन सिर सत्व, रजस और तामस गुणों के प्रतीक हैं। छह हाथों में छह नैतिक प्रतीकवाद (यम, नियम, साम, दम, दया और शांति ) सुशोभित हैं। दत्तात्रेय को ‘शहद मधुमक्खी’ योगिनी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अद्वैत ज्ञान प्राप्त किया है, साथ ही उन्हें समन्वयवाद (विभिन्न मान्यताओं और प्रथाओं के संयोजन) का एक आदर्श रूप भी माना जाता है। दत्तात्रेय को प्राचीन काल से ही योग के मार्ग का अधिष्ठाता देवता माना जाता है। दत्तात्रेय, को सबसे प्रथम देवताओं में से एक माना जाता है, जिसका संदर्भ रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। अपने अनुयायियों को मुक्ति दिलाने में मदद करने के लिए उन्होंने एक बच्चे, पागल और यहां तक कि एक राक्षस सहित विभिन्न रूपों को धारण किया था। दत्तात्रेय की शिक्षाएं परम सत्य की खोज के लिए शुद्ध दिव्य प्रेम, धार्मिकता और योग के चौगुने मार्ग के महत्व पर जोर देती हैं। आज, दत्तात्रेय की पूजा दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा की जाती है।

संदर्भ

https://bit.ly/3nbdttb
https://bit.ly/3lDCKLZ
https://bit.ly/3Z66aQz

चित्र संदर्भ

1.भगवान दत्तात्रेय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. चार कुत्तों और गायों से घिरे दत्तात्रेय को दर्शाता एक चित्रण ( Look and Learn)
3. माँ दुर्गा एवं भगवान दत्तात्रेय को दर्शाता एक चित्रण ( Look and Learn)
4. दत्तात्रेय मंदिर भक्तपुर नेपाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)