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                                              आजादी से पहले हमारे देश में अकाल और भुखमरी जैसी दयनीय घटनाएं अक्सर देखी जाती थीं। फसल कम उगने या मौसम के साथ न देने पर, हजारों लोग दाने-दाने के मोहताज हो जाते थे। हालांकि, इसके बाद कृषि कार्यों में ट्रैक्टरों (Tractors) और अन्य प्रौद्योगिकियों के आगमन के साथ ही पूरे देश में एक तरह से कृषि क्रांति ही आ गई। इसके बाद किसानों की मेहनत और मशीनों के प्रयोग की बदौलत, आज की तारीख में भारत को अनाज के सबसे बड़े निर्यातकों में गिना जाता है। भारत में किसानों को अच्छी फसल के साथ ही कई प्रकार कि समस्याएं भी प्राप्त होती हैं। इनमें टिड्डियों कि समस्या होना आम बात है। हाल ही में, जौनपुर के आसपास के क्षेत्रों में टिड्डियों के प्रकोप से निजात दिलाने में भी आधुनिक प्रौद्योगिकियों ने अहम भूमिका निभाई है। 
पिछले दिनों जौनपुर के निकट वाराणसी जिले के कई गांवों के साथ-साथ आज़मगढ़ और भदोही जिले के कुछ इलाकों में टिड्डियों का झुंड घुस आया था, जिन्होंने फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया था। हालांकि, इसके तुरंत बाद ही स्थानीय अधिकारियों ने छिड़काव टीमें बनाकर और फायर ब्रिगेड (Fire Brigade) के साथ मिलकर, इस स्थिति से निपटने की पूरी कोशिश की। अधिकारियों ने कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए रात में ही फायर ब्रिगेड और मैनुअल स्प्रे पंपों (Manual Spray Pumps) को तैयार किया। टिड्डियों के झुंड के स्थान का पता लगाने के लिए उन्होंने विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम किया। इन तकनीकी उपायों के अलावा शोर मचाने से भी टिड्डियों के झुंड को भगाने में मदद मिली। ये स्थिति बताती है की किसी भी फसल के रखखाव में प्रौद्योगिकियां कितनी अहम् भूमिका निभा सकती है।
अधिकारियों ने कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए रात में ही फायर ब्रिगेड और मैनुअल स्प्रे पंपों (Manual Spray Pumps) को तैयार किया। टिड्डियों के झुंड के स्थान का पता लगाने के लिए उन्होंने विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम किया। इन तकनीकी उपायों के अलावा शोर मचाने से भी टिड्डियों के झुंड को भगाने में मदद मिली। ये स्थिति बताती है की किसी भी फसल के रखखाव में प्रौद्योगिकियां कितनी अहम् भूमिका निभा सकती है। 
इसके अलावा  अलग-अलग देशों में कृषि पद्धतियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। जैसे:
1. औद्योगिक कृषि: खेती करने की यह पद्धति समशीतोष्ण जलवायु वाले विकसित पश्चिमी देशों और उष्णकटिबंधीय देशों के कुछ विशेष क्षेत्रों में प्रचलित हैं।
2. हरित क्रांति कृषि: खेती करने की यह पद्धति एशिया, लैटिन अमेरिका (Latin America) और उत्तरी अफ्रीका में सिंचित मैदानों के साथ ही डेल्टा जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के समृद्ध क्षेत्रों में देखी जाती है।
3. संसाधन-विहीन कृषि: खेती करने की यह पद्धति शुष्क भूमि, जंगलों, पहाड़ों, छोटी पहाड़ियों, रेगिस्तानों और दलदलों जैसे कम अनुकूल क्षेत्रों में की जाती है। एशिया में लगभग 1 अरब लोग, उप-सहारा अफ्रीका में 300 मिलियन और लैटिन अमेरिका में 100 मिलियन लोग इस प्रकार की खेती पर निर्भर हैं। यहां पर फसल उत्पादन में मशीनों का उपयोग कम स्तर पर किया जाता है इसके बजाय यहां कई किसान महिलाएं खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
किसानों के लिए खेती के तरीके और उपकरण कृषि को और अधिक कुशल बनाते हैं और उनका समय भी बचाते हैं। यहां हम इसे उदाहरण के माध्यम से समझते हैं: 1. बीज-क्यारी तैयार करना: बीज बोने के लिए मिट्टी तैयार करना, खेती करने का प्रारंभिक चरण माना जाता है। मिट्टी को तैयार करने के लिए किसान फावड़े और कुदाल जैसे हाथ के औजारों का उपयोग करते हैं। इसके लिए वे ट्रैक्टरों या जानवरों द्वारा खींचे जाने वाले हलों का भी उपयोग कर सकते हैं।
1. बीज-क्यारी तैयार करना: बीज बोने के लिए मिट्टी तैयार करना, खेती करने का प्रारंभिक चरण माना जाता है। मिट्टी को तैयार करने के लिए किसान फावड़े और कुदाल जैसे हाथ के औजारों का उपयोग करते हैं। इसके लिए वे ट्रैक्टरों या जानवरों द्वारा खींचे जाने वाले हलों का भी उपयोग कर सकते हैं।  2. बुआई/रोपण और उर्वरक प्रयोग: मिट्टी तैयार करने के बाद, खेतों में बीज बोए जाते हैं या पौधे रोपे जाते हैं। यह काम मैन्युअल (Manual) रूप से या प्लांट और सीड ड्रिल (Planters and Seed Drills) का उपयोग करके किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान उर्वरक यानि खाद भी डाला जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है की अच्छी फसल वृद्धि के लिए बीज और उर्वरक का समान वितरण जरूरी होता है।
2. बुआई/रोपण और उर्वरक प्रयोग: मिट्टी तैयार करने के बाद, खेतों में बीज बोए जाते हैं या पौधे रोपे जाते हैं। यह काम मैन्युअल (Manual) रूप से या प्लांट और सीड ड्रिल (Planters and Seed Drills) का उपयोग करके किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान उर्वरक यानि खाद भी डाला जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है की अच्छी फसल वृद्धि के लिए बीज और उर्वरक का समान वितरण जरूरी होता है। 3. पौध संरक्षण: अच्छी पैदावार के लिए फसलों को कीटों और खरपतवारों से बचाना आवश्यक होता है। इसलिए कीटनाशकों और शाकनाशी रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का उपयोग करते समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनना और सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करना जरूरी होता है।
3. पौध संरक्षण: अच्छी पैदावार के लिए फसलों को कीटों और खरपतवारों से बचाना आवश्यक होता है। इसलिए कीटनाशकों और शाकनाशी रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों का उपयोग करते समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनना और सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करना जरूरी होता है। 4. सिंचाई: शुष्क यानी सूखे क्षेत्रों में फसल की वृद्धि के लिए सिंचाई करना जरूरी होता है। यहां पर पानी लाने और इसे खेतों में वितरित करने के लिए पारंपरिक और आधुनिक उपकरणों सहित विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
4. सिंचाई: शुष्क यानी सूखे क्षेत्रों में फसल की वृद्धि के लिए सिंचाई करना जरूरी होता है। यहां पर पानी लाने और इसे खेतों में वितरित करने के लिए पारंपरिक और आधुनिक उपकरणों सहित विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। 5. निराई-गुड़ाई और अंतरवर्ती खेती: फसल के स्वास्थ्य के लिए अवांछित पौधों और खरपतवारों को हटाना जरूरी होता है। इस प्रक्रिया में कुदाल जैसे हाथ के उपकरण, साथ ही यांत्रिक निराई मदद करते हैं। सही उपकरणों का उपयोग करके निराई को अधिक कुशल बनाया जा सकता है।
5. निराई-गुड़ाई और अंतरवर्ती खेती: फसल के स्वास्थ्य के लिए अवांछित पौधों और खरपतवारों को हटाना जरूरी होता है। इस प्रक्रिया में कुदाल जैसे हाथ के उपकरण, साथ ही यांत्रिक निराई मदद करते हैं। सही उपकरणों का उपयोग करके निराई को अधिक कुशल बनाया जा सकता है। 6. कटाई: जब फसल तैयार हो जाती है, तो उसकी कटाई की जाती है। ऐसे में आमतौर पर दरांती या हंसिया से हाथ से कटाई करना अधिक आसान माना जाता है। लेकिन बड़े पैमाने पर खेती के लिए कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) जैसी मशीनों का भी उपयोग किया जाता है।
6. कटाई: जब फसल तैयार हो जाती है, तो उसकी कटाई की जाती है। ऐसे में आमतौर पर दरांती या हंसिया से हाथ से कटाई करना अधिक आसान माना जाता है। लेकिन बड़े पैमाने पर खेती के लिए कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) जैसी मशीनों का भी उपयोग किया जाता है। 7. मड़ाई करना और झाड़ना: कटाई के बाद अनाज को बाकी पौधे से अलग करना पड़ता है। मड़ाई करने के मैनुअल तरीकों (Manual Methods) में फसलों को पीटना या मैकेनिकल पैडल (Mechanical Paddles) या पावर थ्रेसर (Power Threshers) का उपयोग किया जाता है।
7. मड़ाई करना और झाड़ना: कटाई के बाद अनाज को बाकी पौधे से अलग करना पड़ता है। मड़ाई करने के मैनुअल तरीकों (Manual Methods) में फसलों को पीटना या मैकेनिकल पैडल (Mechanical Paddles) या पावर थ्रेसर (Power Threshers) का उपयोग किया जाता है। 8. कटाई के बाद के कार्य: मड़ाई के बाद, सफाई, ग्रेडिंग और छिलाई (Grading and Peeling) जैसी आगे की प्रक्रियाओं की आवश्यकता हो सकती है। ये कार्य भी मैनुअल या मशीन की सहायता से किये जा सकते हैं।
 
8. कटाई के बाद के कार्य: मड़ाई के बाद, सफाई, ग्रेडिंग और छिलाई (Grading and Peeling) जैसी आगे की प्रक्रियाओं की आवश्यकता हो सकती है। ये कार्य भी मैनुअल या मशीन की सहायता से किये जा सकते हैं। 9. मैनुअल सामग्री-हैंडलिंग कार्य (Manual Material-Handling Tasks): खेती में अनाज का भार उठाने, ले जाने और परिवहन जैसे जटिल शारीरिक कार्य भी शामिल होते हैं। यहां  पर भी नवीन उपकरण और तकनीक किसानों के शरीर के तनाव को कम करने में मदद कर सकती हैं।
इन सभी के अलावा भी मैनुअल खेती और यांत्रिक खेती के अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं ।
9. मैनुअल सामग्री-हैंडलिंग कार्य (Manual Material-Handling Tasks): खेती में अनाज का भार उठाने, ले जाने और परिवहन जैसे जटिल शारीरिक कार्य भी शामिल होते हैं। यहां  पर भी नवीन उपकरण और तकनीक किसानों के शरीर के तनाव को कम करने में मदद कर सकती हैं।
इन सभी के अलावा भी मैनुअल खेती और यांत्रिक खेती के अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं । 
 उदाहरण के तौर पर- 
हाथ से कटाई के लाभ: 
1. यह एक कुशल तरकीब होती है और काम अच्छे से पूरा हो जाता है। 
2. कटाई के बाद सफाई करना आसान होता है। 
3. इस पर मौसम की स्थिति का कम प्रभाव पड़ता है। 
हाथ से कटाई की खामियां: 
1. उच्च श्रम लागत। 
2. कुशल लोगों की आवश्यकता होती है। 
3. इस प्रक्रिया के दौरान अनाज को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। 
यांत्रिक कटाई के लाभ: 
1. इसकी मदद से बड़ी मात्रा में फसलों की कटाई की जा सकती है। 
2. कम मजदूरों की आवश्यकता होती है। 
3. खेत के आकार की परवाह किए बिना अच्छा काम होता है। 
4. कृषि उत्पादन बढ़ता है। 
यांत्रिक कटाई की कमियां: 
1. मशीनरी के लिए उच्च प्रारंभिक लागत की आवश्यकता होती है। 
2. कुछ फसलों के लिए अधिक प्रभावी नहीं है। 
3. श्रम आवश्यकताओं में कमी के कारण कृषि क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ सकती है। 
संदर्भ  
https://tinyurl.com/y9962amc 
https://tinyurl.com/26z3rb23 
https://tinyurl.com/muuzz5m8 
https://tinyurl.com/3kw43zkv 
 
चित्र संदर्भ 
1. खेत में ट्रेक्टर चलाते किसानों को दर्शाता चित्रण (wikimedia) 
2. खेत में टिड्डियों के हमले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
3. ट्रेक्टर चलाते किसानों को दर्शाता चित्रण (wikimedia) 
4. बुवाई मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
5. कीट नाशकों का छिड़काव करते किसान को दर्शाता चित्रण (Max Pixel) 
6. सिंचाई पाइपों को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel) 
7. खेत में गुड़ाई करती महिला किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr) 
8. कंबाइन हार्वेस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay) 
9. पावर थ्रेसर को दर्शाता चित्रण (wikimedia) 
10. सेब की ग्रेडिंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia) 
11. मैनुअल सामग्री-हैंडलिंग मशीन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)  
 
                                         
                                         
                                         
                                        