 
                                            | Post Viewership from Post Date to 29- Sep-2023 (31st Day) | ||||
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                                              प्राचीन समय में भारत के विद्वान संतों और ऋषियों ने कुछ स्थानों को, विशेष रूप से आध्यात्मिक स्थलों की मान्यता दी थी।  इन जगहों पर उन्होंने शक्तिशाली, उपचारी और उत्थानकारी ऊर्जा का अनुभव किया। माना जाता है कि इसी प्रबल और सकारात्मक ऊर्जा को संरक्षित करने तथा इसे लोगों के लिए सुलभ बनाने हेतु उन्होंने इन स्थानों पर मंदिर बनवाये। एक बात पर आप गौर करिए कि भारत में, प्राचीन मंदिरों का निर्माण उनके आसपास की सामग्रियों की उपलब्धता को देखते हुए बड़ी चतुराई के साथ किया गया है। आज के विपरीत उस समय, “देश के अधिकांश क्षेत्रों में लकड़ी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी।” इसलिए, हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिणी राज्य केरल के मंदिरों में भी आपको संरचना के निर्माण में लकड़ी का बहुत अधिक उपयोग देखने को मिल जायेगा। गौर से देखने पर लकड़ी का मंदिर देवदार के पेड़ जैसा दिखता है, जो प्रकृति और परमात्मा की एकात्मता का प्रतीक हो सकता है। इन मंदिरों को सुंदर बनाने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने कलात्मक कौशल का भरपूर प्रदर्शन किया। हालांकि एक लकड़ी का मंदिर केवल, उस लकड़ी की विशेषता नहीं होता है, जिससे इसे बनाया गया है। बल्कि यह आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है। यदि लकड़ी विशेष हो तो उससे बना मंदिर भी दिव्य घर के समान हो जाता है।
गौर से देखने पर लकड़ी का मंदिर देवदार के पेड़ जैसा दिखता है, जो प्रकृति और परमात्मा की एकात्मता का प्रतीक हो सकता है। इन मंदिरों को सुंदर बनाने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने कलात्मक कौशल का भरपूर प्रदर्शन किया। हालांकि एक लकड़ी का मंदिर केवल, उस लकड़ी की विशेषता नहीं होता है, जिससे इसे बनाया गया है। बल्कि यह आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है। यदि लकड़ी विशेष हो तो उससे बना मंदिर भी दिव्य घर के समान हो जाता है।
धर्म के जानकार अध्यात्मिक स्तर पर सबसे शीर्ष यानी सबसे ऊपर देवताओं को रखते हैं, उसके बाद स्थानीय देवी-देवताओं का स्थान आता है। वहीं, भूत प्रेत आदि सबसे निचले हिस्से में आते हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में स्थानीय देवताओं या कुल देवताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। इसलिए यहां पर मंदिरों की भी प्रचुरता है। हिमाचल के साथ-साथ भारत के दक्षिणी भाग की धार्मिक संरचनाओं में भी लकड़ी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है।  हिमाचल प्रदेश के भरमौर में लक्षणा देवी मंदिर नामक एक प्राचीन मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर महिषासुर का वध करने वाली, माँ दुर्गा के महिषासुर-मर्दिनी रूप को समर्पित है।  इसे भारत में लकड़ी से निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की छत और दीवारों का जीर्णोद्धार समय-समय पर किया जाता रहा है। यह मंदिर एक झोपड़ी की तरह दिखता है, लेकिन, हिमाचल के हिंदू समुदाय द्वारा इसके प्रवेश द्वार, भीतरी परिसर और छत को लकड़ी से बनाया गया है। देवी की प्रतिमा के नीचे की बनावट और एक शिलालेख, इस मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि करते हैं। लकड़ी की नक्काशी में शैव और वैष्णव धर्म से जुड़े चित्र भी उकेरे गए हैं।
हिमाचल प्रदेश के भरमौर में लक्षणा देवी मंदिर नामक एक प्राचीन मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर महिषासुर का वध करने वाली, माँ दुर्गा के महिषासुर-मर्दिनी रूप को समर्पित है।  इसे भारत में लकड़ी से निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की छत और दीवारों का जीर्णोद्धार समय-समय पर किया जाता रहा है। यह मंदिर एक झोपड़ी की तरह दिखता है, लेकिन, हिमाचल के हिंदू समुदाय द्वारा इसके प्रवेश द्वार, भीतरी परिसर और छत को लकड़ी से बनाया गया है। देवी की प्रतिमा के नीचे की बनावट और एक शिलालेख, इस मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि करते हैं। लकड़ी की नक्काशी में शैव और वैष्णव धर्म से जुड़े चित्र भी उकेरे गए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में लकड़ी के मंदिर अद्वितीय होते हैं। इन मंदिरों के डिज़ाइन अद्भुत होते  हैं। हालांकि, कई मंदिर पूर्णतः लकड़ी से निर्मित होते हैं, लेकिन कुछ में लकड़ी और पत्थर के मिश्रण का भी प्रयोग किया जाता है। सबसे पुराने लकड़ी के मंदिर सातवीं शताब्दी के बाद बनाए गए थे। कुछ प्राचीन काल के सिक्के, भी मंदिर की ऐसी संरचनाओं को दर्शाते हैं, जिनकी छतें लकड़ी के गुंबदों जैसी दिखती हैं। पहाड़ों में विभिन्न प्रकार के मंदिर होते हैं। कुछ मंदिर घुमावदार छतों और लकड़ी के हिस्सों के साथ अधिकांश हिस्से पत्थर से बने होते हैं। कइयों में भारी बारिश और बर्फबारी से बचने के लिए स्लेटों की कतारों वाली झुकी हुई छतें बनाई गई हैं। इन मंदिरों की दीवारें लकड़ी और पत्थर से मिलकर बनाई गई हैं, जो हर मौसम में टिकी रहती हैं। इन मंदिरों के दरवाजों और छतों पर भी खूबसूरती से डिजाइन उकेरे गए हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों में लकड़ी के मंदिर अद्वितीय होते हैं। इन मंदिरों के डिज़ाइन अद्भुत होते  हैं। हालांकि, कई मंदिर पूर्णतः लकड़ी से निर्मित होते हैं, लेकिन कुछ में लकड़ी और पत्थर के मिश्रण का भी प्रयोग किया जाता है। सबसे पुराने लकड़ी के मंदिर सातवीं शताब्दी के बाद बनाए गए थे। कुछ प्राचीन काल के सिक्के, भी मंदिर की ऐसी संरचनाओं को दर्शाते हैं, जिनकी छतें लकड़ी के गुंबदों जैसी दिखती हैं। पहाड़ों में विभिन्न प्रकार के मंदिर होते हैं। कुछ मंदिर घुमावदार छतों और लकड़ी के हिस्सों के साथ अधिकांश हिस्से पत्थर से बने होते हैं। कइयों में भारी बारिश और बर्फबारी से बचने के लिए स्लेटों की कतारों वाली झुकी हुई छतें बनाई गई हैं। इन मंदिरों की दीवारें लकड़ी और पत्थर से मिलकर बनाई गई हैं, जो हर मौसम में टिकी रहती हैं। इन मंदिरों के दरवाजों और छतों पर भी खूबसूरती से डिजाइन उकेरे गए हैं। हिमांचल प्रदेश में ही लकड़ी की विशेषताओं को प्रदर्शित करता एक और मंदिर है। इसे हिडिम्बा देवी मंदिर, या  डूंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के एक पहाड़ी क्षेत्र मनाली में स्थित है। यह मंदिर एक प्राचीन गुफा मंदिर (Cave Temple) है। लेकिन, इस मंदिर के दरवाजे सुंदर नक्काशीदार लकड़ी से बनी हैं। मंदिर के ऊपर 24 मीटर लंबा लकड़ी का टावर (Tower) भी है। टावर में लकड़ी की टाइलों से ढकी तीन वर्गाकार छतें हैं और शीर्ष पर पीतल की शंकु के आकार की छत है। मुख्य द्वार पर देवी दुर्गा के साथ-साथ जानवरों, नर्तकियों, भगवान कृष्ण के जीवन सहित कई दृश्यों की नक्काशी प्रदर्शित है।
हिमांचल प्रदेश में ही लकड़ी की विशेषताओं को प्रदर्शित करता एक और मंदिर है। इसे हिडिम्बा देवी मंदिर, या  डूंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के एक पहाड़ी क्षेत्र मनाली में स्थित है। यह मंदिर एक प्राचीन गुफा मंदिर (Cave Temple) है। लेकिन, इस मंदिर के दरवाजे सुंदर नक्काशीदार लकड़ी से बनी हैं। मंदिर के ऊपर 24 मीटर लंबा लकड़ी का टावर (Tower) भी है। टावर में लकड़ी की टाइलों से ढकी तीन वर्गाकार छतें हैं और शीर्ष पर पीतल की शंकु के आकार की छत है। मुख्य द्वार पर देवी दुर्गा के साथ-साथ जानवरों, नर्तकियों, भगवान कृष्ण के जीवन सहित कई दृश्यों की नक्काशी प्रदर्शित है।  हिमांचल के साथ-साथ भारत के दक्षिणी भाग में भी धार्मिक संरचनाओं में लकड़ी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। केरल में लकड़ी की प्रचुरता के कारण यहां के मंदिरों में भी लकड़ी का भरपूर प्रयोग किया गया। यहां की संरचनाओं में सागौन, कटहल, शीशम और आबनूस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। यहाँ के अधिकांश मंदिरों का परिसर वर्गाकार होता है, जिनमें से कुछ की दीवारें लकड़ी से बनी हैं। वहीं केरल के गोलाकार मंदिर श्रीलंका के मंदिरों से मिलते जुलते हैं। यहां पर विभिन्न शैलियों और सजावट के साथ गोलाकार और चौकोर मंदिर आम हैं। जब बात प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों की आती है, तो हमारे जौनपुर में भी कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपनी ऐतिहासिक महत्ता और अद्वितीयता के लिए जाने जाते हैं।
हिमांचल के साथ-साथ भारत के दक्षिणी भाग में भी धार्मिक संरचनाओं में लकड़ी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। केरल में लकड़ी की प्रचुरता के कारण यहां के मंदिरों में भी लकड़ी का भरपूर प्रयोग किया गया। यहां की संरचनाओं में सागौन, कटहल, शीशम और आबनूस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। यहाँ के अधिकांश मंदिरों का परिसर वर्गाकार होता है, जिनमें से कुछ की दीवारें लकड़ी से बनी हैं। वहीं केरल के गोलाकार मंदिर श्रीलंका के मंदिरों से मिलते जुलते हैं। यहां पर विभिन्न शैलियों और सजावट के साथ गोलाकार और चौकोर मंदिर आम हैं। जब बात प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों की आती है, तो हमारे जौनपुर में भी कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपनी ऐतिहासिक महत्ता और अद्वितीयता के लिए जाने जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों या धार्मिक संरचनाओं की सूची संक्षेप में निम्नवत दी गई है:
 इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों या धार्मिक संरचनाओं की सूची संक्षेप में निम्नवत दी गई है:
1. विजय थुआ महावीर मंदिर: जौनपुर शहर से करीब 65 किमी दूर स्थित सूरापुर (सुल्तानपुर जनपद) के पास यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है। इस मंदिर को बिजेथुआ महावीरन के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां पर हनुमान जी ने (संजीवनी बूटी लेने जा रहे हनुमान जी को रोकने के लिए रावण द्वारा भेजे गये) कालनेमि का वध किया था।
2. बावन वीर हनुमान मंदिर बलुआ घाट जौनपुर: जौनपुर शहर में मानिक चौक-बलुआघाट बाईपास रोड (Manik Chowk-Baluaghat Bypass Road) पर स्थित बावन वीर हनुमान मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित विशाल प्रतिमा बहुत प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।
3. बड़े हनुमान मंदिर: 'बड़े हनुमान मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर शहर के बलुआ घाट क्षेत्र में स्थित है। 
4. मार्कंडेय मंदिर: जौनपुर शहर से करीब 70 किमी दूर कैथी (वाराणसी) में गोमती और गंगा के संगम के पास स्थित मार्कण्डेय महादेव मंदिर पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है! 
5. त्रिलोचन महादेव मंदिर: यह मंदिर वाराणसी राजमार्ग पर जौनपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।
जौनपुर और इसके आस पास के कुछ अन्य प्रसिद्ध धार्मिक संरचनाओं की सूची निम्नवत दी गई है:
1. माँ शीतला चौकिया देवी का मंदिर: यह पुराना मंदिर माँ शीतला चौकिया देवी को समर्पित है।  ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण या तो यादवों या भरों द्वारा किया गया था, जिसमें भरों की संभावना अधिक थी। 
2. शाही किला: 1362 में फिरोज शाह द्वारा निर्मित, शाही किला अपने प्रभावशाली निर्माण शैली के लिए जाना जाता है। किले के अंदर तुर्की शैली में स्नानघर और एक मस्जिद भी है। 
3. अटाला मस्जिद:1408 में इब्राहिम शाह शर्की द्वारा निर्मित यह मस्जिद अपनी खूबसूरत दीर्घाओं और ऊंचाई के लिए जानी जाती है। 
4. झांझरी मस्जिद: इब्राहिम शर्की द्वारा निर्मित यह मस्जिद काफी सुंदर हुआ करती थी, हालाँकि सिकंदर लोधी ने इसे काफी क्षतिग्रस्त कर दिया था। 
5. मस्जिद लाल दरवाजा: 1455 में वी.वी.राजे (V.V.Raje) द्वारा निर्मित इस मस्जिद में तीन प्रवेश द्वार और संस्कृत और पाली में कुछ शिलालेख हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdd6p2at
https://tinyurl.com/54rksvsd
https://tinyurl.com/287ejsxf
https://tinyurl.com/44ex4sf4
https://tinyurl.com/4n49b5t2
https://tinyurl.com/2mtsu9kb
https://tinyurl.com/4usfkyej
चित्र संदर्भ
1. हिमाचल प्रदेश में हाटू माता मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. हिमाचल प्रदेश के सराहन में भीमाकाली लकड़ी के मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. हिमाचल प्रदेश के भरमौर में लक्षणा देवी मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. लक्षणा देवी मंदिर के अग्रभाग को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. हिमाचल प्रदेश में हिडिम्बा देवी मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. श्री मदियान कूलोम मंदिर कासरगोड केरल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. विजय थुआ महावीर मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)  
 
                                         
                                         
                                        