मिटटी के बर्तनों का प्रयोग मानव अपने जीवन के ठहराव के काल से ही करता आ रहा है। मृद्भंडों के आधार पर ही इतिहासकार व पुरातत्त्वविद इतिहास के विभिन्न कालों व पुरातात्त्विक स्थानो का विभाजन करते हैं। अपनी पुस्तक, “एन आउटलाइन ऑफ़ इंडियन प्रीहिस्ट्री” मे डी.के. भट्टाचार्य, मृद्भंडों के प्रकार व समय निर्धारण पर प्रकाश डालते हुए इनका विवरण प्रस्तुत करते हैं।
विभिन्न कालखंड मे हमें अलग-अलग कई प्रकार के मिटटी के बर्तनों का प्रयोग देखने को मिलता है। नवपाषाण काल से लेकर के वर्तमान समय तक यह तकनीकी मानव जीवन मे कई रूपों व कई नयी प्रद्योगिकी के साथ चलती रही है।
विभिन्न क्षेत्रों कि अपनी एक अलग पहचान उनके हस्तशिल्पों के आधार से भी होती है जैसे (वार्ली चित्रकारी, भील कला आदि)। लखनऊ जिले के चिनहट नाम की जगह भी अपने विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तनों व मिट्टी के बने वस्तुओं के लिए जानी जाती है। यहाँ पर करीब २०० कारीगर मिटटी के बने वस्तुओं वस्तुओं का निर्माण करते हैं। वर्तमान समय मे यहाँ पर निर्मित वस्तुओं मे सजावटी व बागवानी से जुड़े बर्तनों का निर्माण अधिकता मे होता है।