आर्य समाज की स्थापना और लखनऊ में इसका आगमन

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
06-03-2018 11:46 AM
आर्य समाज की स्थापना और लखनऊ में इसका आगमन

वर्तमान काल में हमें हमारी दिनचर्या में कई समाज देखने को मिलते हैं जो समाज के कई अंग पर काम करते हैं जैसे कि- ब्रम्ह्समाज, प्रार्थनासमाज आदि। इन्ही समाजों में एक महत्वपूर्ण समाज है आर्य समाज जिसने भारत ही नहीं अपितु दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ी है। भारत के पुनर्जागरण काल में 19वीं शताब्दी में थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) के साथ थोड़ा आगे-पीछे ब्रम्ह समाज, प्रार्थनासमाज, देव समाज आदि अनेक संगठनों ने जन्म लिया। परन्तु भारतवर्ष की आधुनिक काल की प्रगतिशील सुधार संस्थाओं में आर्यसमाज का विशेष स्थान है।

आर्यसमाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा मुंबई में हुयी थी। वर्तमान काल में भारत तथा ब्रम्हदेश, थाईलैंड, मलाया, अफ्रीका, पश्चिमी द्वीपसमूह आदि में लगभग 9,000 समाज हैं जहाँ इनके सदस्यों की संख्या 50 लाख से अधिक है। दयानंद सरस्वती ने अपने उपदेशों व आर्यसमाज के प्रचार की शुरुआत आगरा से की थी। अपने उपदेशों में उन्होंने झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए ‘पाखण्ड खण्डनी पताका’ लहराई। इन्होंने अपने उपदेशों में मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि की आलोचना की। स्वामी दयानंद जी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हुए ‘पुनः वेदों की ओर चलो’ का नारा दिया। सामाजिक सुधार के क्षेत्र में इन्होंने छुआछूत एवं जन्म के आधार पर जाति प्रथा की आलोचना की। वे शूद्रों एवं स्त्रियों के वेदों की शिक्षा ग्रहण करने के अधिकारों के हिमायती थे। इस संस्था का प्रसार महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान एवं बिहार में भी हुआ। आर्य समाज का प्रचार-प्रसार पंजाब में अधिक सफल रहा।

लखनऊ में वर्तमानकाल में आर्यसमाज का मंदिर आज भी कार्यान्वित है। लखनऊ में आर्य समाज की स्थापना सन 1883 में हुयी थी। लखनऊ में उसी दौरान एक आर्य समाज के मंदिर की भी स्थापना की गयी थी जो कि अब लखनऊ शहर के गणेशगंज में स्थित है। यह मंदिर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा की गयी आर्थिक सहायता के बल पर बनवाया गया था। कुछ अन्य आर्य समाज के मंदिर नरही, डालीगंज, रकाबगंज, एवं अलीगंज में भी स्थित हैं। जैसा की लखनऊ अंग्रेजों का गढ़ था तो यहाँ पर सभी भारतीयों को एक माला में पिरोने के लिए आर्य समाज की स्थापना की गयी थी। वर्तमानकाल में ये मंदिर अंतरजातीय विवाह करने वालों के लिए वरदान के रूप में जाने जाते हैं।

चित्र- आर्य समाज मंदिर, लखनऊ

1. सामाजिक विज्ञानं हिंदी विश्वकोष खंड-2 (आ), डॉ श्याम सिंह शशि
2. दूसरा लखनऊ, नदीम हसन
3. स्वामी दयानंद सरस्वती, मधुर अथैया
4. http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C