महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन जाने में असमर्थ भक्त लखनऊ में ही देख सकते हैं, भस्म आरती

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
08-03-2024 09:15 AM
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महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन जाने में असमर्थ भक्त लखनऊ में ही देख सकते हैं, भस्म आरती

महाशिवरात्री एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो हिंदू धर्म में सर्वोपरि देवता “भगवान शिव” को समर्पित होता है। हिंदू धर्म में यह दिन विशेष महत्व रखता है और भारत सहित दुनिया भर के शिव भक्तों के बीच इसे खूब धूमधाम एवं अलग-अलग रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है। महा शिवरात्रि के दिन शिवभक्त उपवास करते हैं, शिव का ध्यान करते हैं, आत्म-चिंतन में संलग्न होते हैं और समाज को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। इस दिन शिव भक्त पूरी रात शिव मंदिरों में बिताते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन या माघ के चंद्र महीने में अंधेरे पखवाड़े के चौदहवें दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च, शुक्रवार के दिन मनाई जा रही है।
महाशिवरात्रि, को कई कारणों से मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह भगवान शिव और माता पार्वती के वैवाहिक मिलन का प्रतीक है, जो सांकेतिक रूप से प्रेम और सद्भाव के मिलन का प्रतीक है। यह त्यौहार शिव और शक्ति, मर्दाना और स्त्री ऊर्जा के अभिसरण का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो विश्व के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर दुनिया को बचाया। विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। प्रतिवर्ष मनाई जाने वाली 12 शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण है। यह हिंदू संस्कृति में अंधकार और अज्ञान पर प्रकाश की विजय का प्रतिनिधित्व करती है।
महा शिवरात्रि के दिन शिव भक्त विभिन्न उत्सव और अनुष्ठान आयोजित करते हैं, जिनमे शामिल है:
1. उपवास: इस दिन शिवभक्त भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास करते हैं, और महिलाएं अपने पतियों की भलाई के लिए या शिव जैसे पति के लिए प्रार्थना करती हैं।
2. मंदिर प्रसाद: इस अवसर पर उपासक भगवान् शिव को दूध, शहद, फूल और विशेष पत्ते चढ़ाते हैं।
3. जागृति की रात: इस अवसर पर कुछ लोग पूरी रात प्रार्थना और ध्यान में जागते रहते हैं।
4. जप और भक्ति गीत: त्योहार के दौरान महामृत्युंजय मंत्र और शिव तांडव स्तोत्र जैसे मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
भारत के अधिकांश बड़े पर्वों की भांति महाशिवरात्रि को न केवल भारत बल्कि दुनियां भर के विभिन्न हिस्सों में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
विश्व के सभी महाद्वीपों के राष्ट्र अपने अनूठे रीति-रिवाजों, परंपराओं और भक्ति भावनाओं के साथ इस पवित्र अवसर को मनाते हैं।

➦ एशिया: पूरे एशिया में महाशिवरात्रि समारोह, क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। नेपाल में, इस अवसर पर दुनियाभर के पर्यटक प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव से आशीर्वाद मांगते हैं। श्रीलंका में, महाशिवरात्रि हिंदू रीति-रिवाजों को श्रीलंका की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ जोड़ती है। थाईलैंड और मलेशिया जैसे देशों में, महा शिवरात्रि समारोह में बौद्ध और हिंदू रीति-रिवाजों का विलय होता है।
➦ अफ्रीका: महा शिवरात्रि विभिन्न अफ्रीकी समुदायों की सांस्कृतिक विविधता के साथ भी घुल चुकी है। अफ़्रीकी हिंदू महा शिवरात्रि को पूरे समर्पण के साथ मनाते हैं, और अपने समुदायों के साथ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक रीति-रिवाजों को भी साझा करते हैं।
➦ यूरोप: यूरोप में रहने वाले हिंदू समुदायों के लिए महा शिवरात्रि आध्यात्मिक पुनर्जन्म और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक होती है। दक्षिण एशियाई आबादी वाले यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में रहने वाले एशियाई मूल के लोग महा शिवरात्रि को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। जर्मनी, फ्रांस, रूस और यूक्रेन में, हिंदू धर्म अल्पसंख्यक धर्म होने के बावजूद, महाशिवरात्रि भक्ति और उत्साह के साथ मनाई जाती है।
➦ दक्षिण अमेरिका: अमेरिका में बढ़ते भारतीय प्रवासन और अंतर-सांस्कृतिक संपर्क के कारण हिंदू धर्म भी बढ़ रहा है, जिस कारण महा शिवरात्रि को दक्षिण अमेरिका में विशेष लोकप्रियता मिल रही है। अल्पसंख्यक धार्मिक आबादी होने के बावजूद, हिंदू दक्षिण अमेरिकी देशों में महाशिवरात्रि को उत्साह और समर्पण के साथ मनाते हैं। यदि हम भारत की बात करें तो महाशिवरात्रि के दिन "उज्जैन" महाकाल का दर्शन करना बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है। लेकिन हमारे लखनऊ के जो भी शिवभक्त इस पवित्र अवसर पर उज्जैन नहीं जा पा रहे हैं, वह भी लखनऊ में ही रहकर न केवल महाकाल के दर्शन कर सकते हैं बल्कि उज्जैन की तरह भस्म आरती में भी सम्मिलित हो सकते हैं।
दरअसल लखनऊ के राजेंद्र नगर में सिद्धपीठ महाकाल मंदिर में भोलेनाथ का श्रृंगार भी उज्जैन महाकाल की तरह ही किया जाता है। इस मंदिर की स्थापना 1960 में की गई थी। इस पवित्र मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 4:30 बजे रुद्राभिषेक और भस्म आरती होती है। मंदिर के मुख्य पुजारी अतुल मिश्रा के अनुसार उज्जैन जाने में असमर्थ भक्त, भस्म आरती के लिए 60 साल पुराने इसी मंदिर में आते हैं। मिश्रा ने जोर देकर कहा कि भस्म आरती को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अंतिम अनुष्ठान माना जाता है, खासकर सावन के दौरान जब भक्त राहत के लिए प्रसाद चढ़ाते हैं। यह अनुष्ठान 'समुद्र मंथन' की कथा में निहित है, जिसके अनुसार देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान शिव ने शक्तिशाली जहर हलाहल निगल लिया था, जिससे उन्हें तीव्र गर्मी का सामना करना पड़ा था। जहर का प्रतिकार करने के लिए, भगवान शिव ने अपने शरीर पर ठंडा पानी डाला। आज भी, भक्त देवता को 'राहत' देने के लिए बारिश के मौसम में शिवलिंग पर पानी और दूध चढ़ाते हैं। मिश्रा ने कहा कि भस्म आरती लोगों को उनके पापों से मुक्त कर देती है। मंदिर प्रशासन यह सुनिश्चित करता है कि आरती के लिए उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर द्वारा निर्धारित नियमों का सख्ती से पालन किया जाए।

संदर्भ

http://tinyurl.com/y7b83fp5
http://tinyurl.com/4vevc4y5
http://tinyurl.com/3yh674pa
http://tinyurl.com/4rwx2xpb

चित्र संदर्भ

1. लखनऊ के राजेंद्र नगर में सिद्धपीठ महाकाल मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. महा शिवरात्रि के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. महा शिवरात्रि पर लिंगराज मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. उज्जैन महाकाल मंदिर संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भस्म आरती को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)