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लखनऊ की गलियों में जैसे ही दिसंबर की ठंड आने लगती है, हज़रतगंज की सड़कों पर चलते हुए अचानक महसूस होता है कि ठंडी हवा के बीच भी एक अजीब-सी गर्माहट फैली हुई है - रोशनियों की गर्माहट, मुस्कुराहटों की गर्माहट और लोगों के दिलों में बसने वाली सद्भावना की गर्माहट। हर दुकान के बाहर सजे चमचमाते क्रिसमस पेड़, बच्चों के हाथों में चमकती सांता टोपियाँ और मिठाइयों की खुशबू मिलकर ऐसा दृश्य रचते हैं जो लखनऊ की शाम को किसी फिल्मी सेट जैसा बना देता है। इस शहर की खासियत यही है कि यहाँ हर त्योहार, हर जश्न और हर रंग अपनी सीमाओं से निकलकर पूरे शहर का उत्सव बन जाता है। मुसलमान, हिंदू, ईसाई, सिख - हर धर्म के लोग इस त्योहार में उसी अपनापन और उत्साह के साथ शामिल होते हैं, जैसे यह हमेशा से इस शहर की आत्मा का हिस्सा रहा हो।
आज हम यह जानेंगे कि क्रिसमस का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है, और कैसे यह त्योहार समय के साथ एक वैश्विक उत्सव के रूप में विकसित हुआ। फिर हम क्रिसमस से जुड़ी प्रमुख परंपराओं - जैसे चर्च की प्रार्थनाएँ, घरों और गलियों की सजावट, कैरोल - गायन (Carol singing) और उपहार देने की परंपरा - को समझेंगे। इसके बाद हम भारत में क्रिसमस के आगमन की कहानी और गोवा, केरल जैसे राज्यों में इसकी खास लोकप्रियता पर नज़र डालेंगे।
क्रिसमस का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
क्रिसमस दुनिया का सबसे व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्योहार है, जो ईसा मसीह के जन्म का प्रतीक है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सदियों के इतिहास, परंपराओं और सांस्कृतिक बदलावों से विकसित हुआ एक वैश्विक पर्व है। "क्राइस्ट–मास (Christ-Mass)" शब्द का अर्थ है - मसीह के सम्मान में आयोजित सामूहिक प्रार्थना - और यहीं से आधुनिक क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति हुई। दिलचस्प बात यह है कि ईसा मसीह का वास्तविक जन्म - दिन कभी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं था; इसलिए 25 दिसंबर की तिथि को चुनने की प्रक्रिया काफी बहस, अध्ययन और पुरानी परंपराओं के प्रभाव से गुज़री। रोमन साम्राज्य में इसी दिन "शीत अयनांत" (Winter Solstice) यानी सूर्य के पुनर्जन्म का पर्व मनाया जाता था, जिसके कारण बाद में ईसाई समुदाय ने उसी दिन को मसीह के जन्म उत्सव के रूप में अपनाया। समय बीतने के साथ क्रिसमस धार्मिक केंद्र से आगे बढ़कर संस्कृति, परिवार, त्योहार और मानव-मूल्यों के एक ऐसे पर्व में बदल गया जिसे आज धर्म-सीमाओं से परे भी लोग अत्यंत उत्साह से मनाते हैं।![]()
क्रिसमस की प्रमुख परंपराएँ और वैश्विक उत्सव
क्रिसमस की खूबसूरती इसकी विविध परंपराओं में है, जो दुनिया भर में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती हैं लेकिन सद्भाव और खुशी की भावना सभी में समान रहती है। धार्मिक समुदायों के लिए चर्च में प्रार्थना, मास सर्विस (mass service), और भजनों का गायन मुख्य आकर्षण होता है। वहीं घरों और सार्वजनिक स्थानों पर क्रिसमस ट्री (Christmas Tree), रोशनियाँ, रंगीन मालाएँ, सितारे और जन्म-दृश्य (Nativity Scene) सजाए जाते हैं, जो इस पर्व का उत्सव-मय दृश्य निर्मित करते हैं। स्कूलों में बच्चे यीशु के जन्म पर आधारित नाटक प्रस्तुत करते हैं और समुदायों में कैरोल-गायन की गूँज उत्सव को और जीवंत बना देती है। क्रिसमस पर उपहार - विनिमय एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो मैगी (मसीह-जन्म कथा) की उदारता का प्रतीक है। इसके अलावा प्लम केक और पारंपरिक व्यंजन इस त्योहार के स्वाद और उल्लास को और खास बनाते हैं।
भारत में क्रिसमस का आगमन और इसका विकास
भारत में क्रिसमस का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। इसकी शुरुआत 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के आगमन के साथ हुई, जिन्होंने गोवा और पश्चिमी तट से ईसाई धर्म को भारत में स्थापित किया। इसके बाद यूरोपीय मिशनरियों और स्थानीय समुदायों के माध्यम से ईसाई परंपराएँ पूरे भारत में फैलने लगीं, और धीरे-धीरे भारतीय समाज ने भी इन रीतियों को अपनाया। भारत की विविध संस्कृति ने क्रिसमस को एक अनोखा रूप दिया-जहाँ धार्मिक श्रद्धा और उत्सव का मेल सहज रूप से दिखाई देता है। गोवा, केरल और उत्तर-पूर्व के राज्यों में क्रिसमस विशेष भव्यता के साथ मनाया जाता है, और देश के कई हिस्सों में इसे प्रेम से "बड़ा दिन" कहा जाता है। आज भारत में 2.8 करोड़ से अधिक ईसाई रहते हैं, जिसके कारण यह त्योहार राष्ट्रीय स्तर पर खुशी, संगीत और रोशनी का एक महत्त्वपूर्ण पर्व बन चुका है।

भारत के प्रमुख शहरों में क्रिसमस उत्सव की विशिष्टताएँ
भारत के शहरी क्षेत्रों में क्रिसमस का जश्न संस्कृति और आधुनिकता का एक सुंदर मेल प्रस्तुत करता है। मुंबई में, जहाँ देश का सबसे बड़ा रोमन कैथोलिक (Roman Catholic) समुदाय रहता है, चर्चों में आधी रात की प्रार्थना और सड़कों पर सजावट इस पर्व को भव्य स्वरूप देती है। दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों में भी क्रिसमस मार्केट, कैरोल-कंसर्ट और विशेष रोशनियाँ इस उत्सव को एक आकर्षक सामाजिक आयोजन बनाती हैं। कई विदेशी पर्यटक भी भारत में क्रिसमस मनाने आते हैं, क्योंकि यहाँ की सांस्कृतिक विविधता त्योहार को और अधिक रंगीन और जीवंत बना देती है। बड़े शहरों में क्रिसमस को धार्मिक, सामाजिक और मनोरंजन - प्रधान, तीनों रूपों में मनाया जाता है।

क्रिसमस का सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश
क्रिसमस केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का प्रतीक है। प्रेम, दया, उदारता, आशा और आपसी सद्भाव - ये सभी भावनाएँ क्रिसमस के केंद्र में हैं। यह त्योहार लोगों को एक-दूसरे के करीब लाने का काम करता है, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या पृष्ठभूमि से हों। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, क्रिसमस “अनेकता में एकता” का एक सुंदर उदाहरण है, जहाँ अलग-अलग समुदाय एक साथ आकर खुशी, संगीत, भोजन और उत्साह साझा करते हैं। त्योहार का यह सामाजिक संदेश हमें याद दिलाता है कि दुनिया में सच्चा उत्सव वह है जो मनुष्यों के बीच मेल-मिलाप और सद्भाव बढ़ाए।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/22rm3znn
https://tinyurl.com/36um6sa4
https://tinyurl.com/ajsf8866
https://tinyurl.com/kzr2haws
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