दुनियाभर में सिख समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले बैसाखी पर्व का गौरवपूर्ण इतिहास

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
12-04-2024 09:40 AM
Post Viewership from Post Date to 17- Apr-2024 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1995 116 0 2111
* Please see metrics definition on bottom of this page.
दुनियाभर में सिख समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले बैसाखी पर्व का गौरवपूर्ण इतिहास

बैसाखी को सिख समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक माना जाता है। “बैसाखी पर्व को मुख्य रूप से खालसा पंथ की स्थापना दिवस की याद में मनाया जाता है।” इस विशेष अवसर पर हमारे लखनऊ में भी बड़े उत्साह के साथ बैसाखी मनाई जाती है। चलिए आज वैसाखी पर्व की जड़ों में उतरते हैं, और यह भी जानने का प्रयास करते हैं कि, भारत सहित दुनियाभर में इस खास अवसर को किन परंपराओं के साथ मनाया जाता है? बैसाखी या वैसाखी का त्योहार, वसंत की फसल के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर को कई पीढ़ियों से सामुदायिक समारोहों और उत्सवों के साथ मनाया जाता रहा है। “शुरुआत में बैसाखी, मूल रूप से उत्तरी भारतीय राज्य पंजाब में मनाया जाने वाला एक वसंत फसल उत्सव था।” लेकिन यह त्योहार सभी सिखों के लिए धार्मिक रूप से तब महत्वपूर्ण हो गया, जब 1699 में, सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ का गठन सिख मूल्यों को बनाए रखने और समुदाय की पहचान को आकार देने वाले लोगों की रक्षा के लिए किया गया था। 1699 में बैसाखी के शुभ दिन पर, गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने अमृत समारोह की स्थापना की। इस समारोह ने खालसा पंथ में औपचारिक दीक्षा की शुरुआत की। 1699 में, बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा नामक एक पंथ की भी शुरुआत की। यह पंथ एक प्रकार से ऐसे धर्मनिष्ठ सिख अनुयायियों का एक समूह था, जो संत और सैनिक दोनों थे। किवदंती के अनुसार 1606 में, सम्राट जहांगीर के शासन के दौरान, पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया गया था। इसी तरह की एक घटना 1675 में घटी, जब सिखों के नौवें गुरु (गुरु तेग बहादुर जी) को भारत के छठे मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के बाद दिल्ली में फांसी दे दी गई। एक प्रसिद्ध किवदंती के अनुसार सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब का सामना करने और अन्य समस्याओं से निपटने के लिए, अपने अनुयायियों को बैसाखी के दिन आनंदपुर में इकट्ठा होने के लिए कहा। कार्यक्रम के दौरान, गुरु गोबिंद सिंह जी अचानक ही खड़े हुए और अपनी तलवार म्यान से बाहर खींच ली। इसके बाद उन्होंने वहां उपस्थित स्वयंसेवकों को उनकी निष्ठा दिखाने के लिए अपना सिर कटवाने का अनुरोध कर दिया। यह दृश्य देखकर वहां खड़ी भीड़ हैरान और स्तब्ध रह गई। गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा अनुरोध को दो बार दोहराने के बाद, लाहौर से आनंदपुर पहुंचें, दया राम आगे बढ़े। गुरु गोबिंद सिंह जी उन्हें पास के एक तंबू में ले गये। तंबू से वह खून से सनी तलवार लेकर बाहर निकले और दूसरे स्वयंसेवक को तंबू के भीतर आने का आग्रह किया। अगले नंबर पर रोहतक से धर्म देव आगे आए। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई गई जब तक पांच स्वयंसेवक तंबू के भीतर नहीं चले गए।
 एक-एक करके पांचों लोग गुरु गोबिंद सिंह जी के तंबू के भीतर चले गए। इस दौरान हर बार गुरु गोबिंद सिंह जी खून से लथपथ अपनी तलवार के साथ अकेले ही बाहर निकलते थे। जब तंबू में सभी पांच लोगों ने प्रवेश कर लिया तो, वहां मौजूद सभी लोगों ने यह मान लिया कि अपनी निष्ठा प्रदर्शित करते हुए उन पांचों लोगों ने अपना सिर कलम करवा दिया। लेकिन जल्द ही सभी लोग जीवित और पगड़ी पहने हुए एक साथ तंबू से बाहर निकले। इन लोगों को, पंज प्यारों की संज्ञा दी गई और गुरु द्वारा खालसा में बपतिस्मा दिया गया। इन्हें खालसा के पहले सदस्यों के रूप में प्रस्तुत किया गया। इन पाँचों प्यारों को पाँच प्रतीक दिए गए, और पंज प्यारों के लिए इन प्रतीकों को हमेशा अपने साथ रखना जरूरी है।
इन्हें पाँच K के नाम से जाना जाता है:
केस:
ऊपर वाले की रचना का सम्मान करने के लिए बाल नहीं काटना।
कंघा: बालों को साफ रखने के लिए लकड़ी की कंघी, (स्वच्छता का प्रतीक) रखना।
कड़ा: एक लोहे का कंगन जो ताकत और अखंडता का प्रतिनिधित्व करता है।
कचेरा: आत्म-नियंत्रण और शुद्धता का प्रतीक एक विशिष्ट अंतर्वस्त्र।
कृपाण: एक छोटी सी तलवार जो अन्याय के खिलाफ खड़े होने के कर्तव्य को दर्शाती है।
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बपतिस्मा प्राप्त खालसा के पहले पांच सदस्य भाई दया सिंह, भाई धरम सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह थे। वे गुरु के साथ तंबू से नारंगी रंग के कपड़े पहने हुए बाहर निकले, ये रंग सिख धर्म में ज्ञान और साहस का प्रतीक माने जाते हैं। आज यदि कोई सिख खालसा पंथ में शामिल होना चाहता है, तो उसका स्वागत अमृत नामक एक विशेष जल के साथ किया जाता है। यह अमृत के यूनानी विचार के समान है, जिसे अक्सर देवताओं का भोजन कहा जाता है, जो अमरता प्रदान करता है। सिख समुदाय में अमृत ​​बनाने के लिए, पानी में चीनी के दाने मिलाए जाते हैं और पांच पवित्र प्रार्थनाओं का पाठ करते हुए इसे “खंडा” नामक दोधारी तलवार से हिलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मिश्रण खालसा में शामिल होने वालों को अमर कर देता है। सिख समुदाय में अमृत का सेवन करना विनम्रतापूर्वक, दयालुता से जीने और सभी लोगों की समान रूप बिना किसी भेदभाव के सेवा करने का वादा है। अमृत की परंपरा सबसे पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव से शुरू हुई। उस समय, यह एक साधारण समारोह हुआ करता था, जहां अनुयायी आशीर्वाद के लिए गुरु के पैर से छुआ हुआ पानी पीते थे। अमृत समारोह की शुरुआत 1699 में वैसाखी के दिन श्री आनंदपुर साहिब में खालसा के उद्घाटन के दौरान दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के साथ हुई थी। आज के समय में भी बैसाखी के पर्व को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन पंजाब में बैसाखी मेलों का आयोजन किया जाता है, जो बैसाखी उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये मेले ग्रामीण पंजाब में जीवन के जीवंत रंगों को दर्शाते हैं। इस अवसर पर लोग, अच्छे कपड़े पहनकर, फसल और उससे होने वाली समृद्धि का उत्सव मनाने के लिए बड़े उत्साह के साथ मेले में भाग लेते हैं। बैसाखी मेले पंजाब में बहुत लोकप्रिय हैं। इसमें भाग लेने के लिए लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ दूर-दूर से यहाँ आते हैं। बैसाखी मेले की सबसे मनमोहक विशेषता भांगड़ा और गिद्दा का प्रदर्शन है। इस अवसर पर आयोजित होने वाली अन्य रोमांचक गतिविधियों में दौड़, कुश्ती मैच, गायन और कलाबाजी भी शामिल हैं। वंजली और अलगोजा जैसे लोक वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन भी काफी लोकप्रिय है। बैसाखी मेले में खाने-पीने के स्टॉल एक प्रमुख आकर्षण होते हैं। बैसाखी उत्सव पर गांव-घरों का वातावरण स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू से महक उठता है!
इन पकवानों में शामिल हैं:
1. मक्की की रोटी और सरसों का साग
2. मीठे चावल
3. मीठी लस्सी
4. केसर फिरनी
5. छोले भटूरे
बैसाखी मेले न केवल पंजाब के गांवों में लोकप्रिय हैं, बल्कि पंजाब के बड़े शहरों और कस्बों और महत्वपूर्ण सिख आबादी वाले अन्य भारतीय शहरों में भी लोकप्रिय हैं। दुनिया भर में बड़ी संख्या में सिख प्रवासियों के कारण, बैसाखी मेलों ने वैश्विक स्तर पर भी लोकप्रियता हासिल कर ली है। उदाहरण के लिए, लंदन में, बड़ी सिख आबादी के कारण, वहां के ट्राफलगर स्क्वायर (Trafalgar Square) पर वैसाखी मेले बड़े उत्साह के साथ आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा टोरंटो (Toronto), न्यूयॉर्क (New York) और न्यू जर्सी (New Jersey) में भी बैसाखी उत्सव काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yeyt99v6
https://tinyurl.com/22x7wv76
https://tinyurl.com/29f33ms2

चित्र संदर्भ
1. गुरु गोबिंद सिंह जी के आह्वान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. बैसाखी के नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सिख खालसा सेना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गुरु गोबिंद सिंह जी के आह्वान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. खालसा की स्थापना करते गुरु गोबिंद सिंह जी को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
6. प्रतीकात्मक पंच प्यारों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. अमृत की परंपरा सबसे पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव से शुरू हुई। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. निहंगों द्वारा गटका के प्रदर्शन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)