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भगवान महावीर को समर्पित महावीर जयंती, पूरे भारत देश के साथ हमारे लखनऊ में भी हर्षोल्लास और भव्यता के साथ मनाई जाती है। इस दौरान इंदिरा नगर के जैन मंदिर से चांदी के रथ पर सवार भगवान महावीर की एक भव्य शोभा यात्रा शुरू होती है। हालाँकि, यह हमारे शहर में आयोजित होने वाला एकमात्र जुलूस नहीं है। इसी तरह की शोभा यात्रा चारबाग, डालीगंज, यहियागंज, गोमतीनगर, गुडम्बा, आशियाना चौक और सहादतगंज सहित शहर के विभिन्न हिस्सों में भी आयोजित की जाती हैं। अपनी कठोर तपस्या के लिए जाने जाने वाले, भगवान महावीर ने अपनी इंद्रियों पर काबू पाया और मुक्ति प्राप्त की। लेकिन उन्होंने इस सबसे कठिन काम को कैसे पूरा किया? हम उनकी यात्रा से क्या सीख सकते हैं? और भगवान महावीर हम सबके लिए कौन सा सार्वभौमिक संदेश और सिद्धांत छोड़ गये? ये सभी प्रश्नों के उत्तर जानना वाकई में दिलचस्प हैं।
दुनिया भर में जैन समुदाय के लोग हर वर्ष महावीर जयंती के अवसर को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। आज ही के दिन जैन धर्म के अंतिम और 24वें तीर्थंकर (प्रबुद्ध शिक्षक) भगवान महावीर का जन्म हुआ था। यह दिवस धर्म, विश्व शांति और सद्भाव कायम रखने की प्रेरणा देता है। साथ ही आज का दिन जैन दर्शन का पालन करते हुए सभी जीवित प्राणियों को कम से कम नुकसान पहुंचाने के लिए भी प्रेरित करता है।
इस पवित्र अवसर पर, जैन समुदाय के लोग कई स्थानों में आयोजित होने वाली जुलूस (रथयात्रा) में भाग लेते हैं, मंदिरों में जाते हैं, अभाग्यशाली लोगों को दान देते हैं, ध्यान करते हैं और भगवान महावीर के सम्मान में भजन गाते हैं।
हालांकि भगवान महावीर के बारे में माना जाता है कि वह प्राचीन साम्राज्य वैशाली में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर पैदा हुए थे, लेकिन उनकी वास्तविक जन्मतिथि हमेशा से विवादित मानी जाती है। श्वेतांबर जैन मानते हैं कि महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था, जबकि दिगंबर जैनों के अनुसार महावीर का जन्म 615 ईसा पूर्व में हुआ था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्म चैत्र महीने के 13वें दिन हुआ था।
महावीर ने 30 साल की आयु में, अपनी सांसारिक संपत्ति त्याग दी और एक भटकते हुए तपस्वी के रूप में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। किंवदंतियों के अनुसार गृह त्याग करने के मात्र 12 साल के बाद ही उन्होंने कैवल्य या सर्वज्ञता हासिल कर ली थी।
भगवान् महावीर ने अपने पूरे जीवनकाल में अहिंसा, सत्य, चोरी न करने, शुद्धता और अपरिग्रह को बढ़ावा दिया। उन्होंने सिखाया कि प्रत्येक जीवित प्राणी में प्रेम, करुणा और सम्मान की पात्र आत्मा होती है। उन्होंने सरल, शांतिपूर्ण जीवन के गुणों पर ज़ोर दिया।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, हिंदू धर्म में रोशनी के त्योहार के रूप में जानी जाने वाली "दीपावली" भी विशेष महत्व रखती है। ऐसा इसलिए है क्यों कि जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर "भगवान महावीर" को आज ही के दिन मोक्ष अर्थात पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त हुई थी। इस अवसर पर भक्त, जैन मंदिरों में इकट्ठा होते हैं, अपने देवता के सम्मान में उन्हें लड्डू चढ़ाते हैं और दीये जलाते हैं।
परंपरा के अनुसार, भगवान महावीर ने अपना अंतिम उपदेश "जिसे उत्तराध्ययन के नाम से जाना जाता है।" दिवाली की रात तक दिया था। आधी रात को, उन्होंने अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया और मोक्ष की प्राप्ति कर ली। जैनियों में दीपावली को लेकर एक दिलचस्प मान्यता है, जिसके अनुसार उनके मोक्ष के समय उनके निकट 18 उत्तरी भारतीय राजा उपस्थित थे। उन सभी ने सामूहिक रूप से दीपक जलाकर अपने गुरु के ज्ञान का प्रतीक बनाने का निर्णय लिया, जिस कारण इस महत्वपूर्ण अवधि का नाम "दीपावली" पड़ा।
जैन धर्म में दीपक जलाने का कार्य अपने आप में गहरा दार्शनिक अर्थ रखता है। यह लोगों को भगवान महावीर द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर अपनी आंतरिक दृष्टि को जागृत करने के लिए प्रेरित करता है। हिंदुओं के समान, जैन व्यवसायी भी दिवाली के दिन अपने वार्षिक खाते बंद कर देते हैं और नई खाता पुस्तकों के लिए एक साधारण पूजा (अनुष्ठान पूजा) करते हैं। इस प्रकार महावीर के जीवन और मृत्यु दोनों से ही हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
लेख में आगे महावीर द्वारा प्रदत्त कुछ बहुमूल्य शिक्षाओं की सूची दी गई है:
आत्मा और कर्म में विश्वास: भगवान् महावीर का मानना था कि इस संसार में सभी चीजें भौतिक और आध्यात्मिक तत्वों का मिश्रण है। हालांकि प्रत्येक भौतिक इकाई अस्थायी है, जबकि आध्यात्मिक इकाई शाश्वत यानी अमर है। उन्होंने सुझाव दिया कि आत्मा कर्मों से बंधी हुई है, लेकिन कर्म बल से मुक्त हुआ जा सकता है। जैसे-जैसे कर्मों का ह्रास यानी कर्मों में कमी आती है, वैसे-वैसे आत्मा का अंतर्निहित मूल्य भी स्पष्ट हो जाता है। जब आत्मा अनंत महानता तक पहुँचती है, तो अनंत ज्ञान, शक्ति और आनंद से युक्त एक शुद्ध आत्मा, परमात्मा बन जाती है।
निर्वाण : महावीर के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य ही "मोक्ष" है। उन्होंने पाँच प्रतिज्ञाओं के प्रति जोर दिया:
1. अहिंसा
2. सच्चाई (सत्य)
3. अस्तेय
4. शुद्धता (ब्रह्मचर्य)
5. अपरिग्रह
ईश्वर में अविश्वास: महावीर, ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे या इस बात पर विश्वास नहीं करते थे कि ईश्वर ने दुनिया बनाई है। उनका मानना था कि ब्रह्मांड शाश्वत है और पदार्थ बस अपना रूप बदलता है। उनका मानना था कि मानव मुक्ति किसी बाहरी सत्ता पर निर्भर नहीं है और मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं। उन्होंने पीड़ा और दुःख को कम करने के लिए तपस्या और आत्म-पीड़ा के जीवन की वकालत की, तथा त्याग को ही मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग माना।
वेदों की अस्वीकृति: जैन धर्म ने वेदों के अधिकार को अस्वीकार कर दिया और हिंदुओं के बलि अनुष्ठानों की उपेक्षा की।
अहिंसा: महावीर ने अहिंसा के सिद्धांत पर बहुत ज़ोर दिया। उनका मानना था कि जानवरों, पौधों और यहां तक कि पत्थरों और चट्टानों जैसी निर्जीव वस्तुओं सहित सभी प्राणियों में जीवन होता है। हमें किसी को भी विचार, शब्द या कर्म से हानि नहीं पहुंचानी चाहिए।
महिलाओं को स्वतंत्रता: महावीर ने महिलाओं की स्वतंत्रता की वकालत की और माना कि उन्हें भी निर्वाण प्राप्त करने का अधिकार है। जैन संघ में महिलाओं को अनुमति दी गई, और कई सरमिनी और श्राविका बन गईं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/pxfzm2de
https://tinyurl.com/43x2jtxt
https://tinyurl.com/2cur7m96
चित्र संदर्भ
1. महावीर एवं जैन धर्म के गूढ़ संदेशों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कल्पसूत्र में महावीर के जन्म के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. महावीर के कैवल्य या सर्वज्ञता प्राप्त करने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जैन प्रतीक को दर्शाता एक चित्रण (worldhistory)
5. जैन मंदिर में अहिंसा के प्रतीक चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)