लखनऊ की चिकनकारी, जरदोज़ी

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
09-04-2017 12:00 AM
लखनऊ की चिकनकारी, जरदोज़ी
ज़रदोज़ी और चिकनकारी, जो आज लखनऊ मे हस्तकला के रूप मे अधिक प्रचलित हैं, के अलावा कई अन्य प्रकार कि कारीगरी भी यहाँ पर होती थी। जो अब कहीं कहीं बहोत छोटे पैमाने पर होती है या तो मर चुकी है। १८७७ ई. के गैजेटियर ऑफ़ द प्रॉविन्स ऑफ़ अवध वॉल्यूम 2: एच. टू एम. नॉर्थवेस्टर्न प्रोविन्सेस एंड अवध गवर्नमेंट प्रेस इलाहाबाद मे उल्लिखित तथ्यों के अनुसार लखनऊ मे मुख्य हस्तकला मे सूती कपड़े, सोने व चाँदी के तार व इनके फीते, मीनाकारी, पत्थर तराशना, आभूषणों के विभिन्न प्रकार के काम, कांच की कारीगरी, मिट्टी कि मूर्तियाँ व विभिन्न अलग मृद्भांड, चाँदी के पत्तों का निर्माण तथा पत्थरों पर लेखन का कार्य मुख्य था। चाँदी के पत्तों का काम आज भी लखनऊ मे कुछ हद तक होता है। नदीम हसन की पुस्तक “द अदर लखनऊ: ऐन इथनोग्राफिक पोट्रेट ऑफ़ सिटी ऑफ़ अनडाइन्ग मेमोरीज एण्ड नोस्टाल्जिया, वानी प्रकाशन 2016, के अनुसार चाँदी के इस काम को करने वाले परिवारों की संख्या मात्र 20-25 तक है। यहाँ के बने पत्ते मिठाइयों, पान, व अन्य कई खाने के वस्तुओं पर प्रयुक्त होता है। ताजिया बनाने मे भी चाँदी के इन पत्तों का प्रयोग होता है। परन्तु आज वर्तमान मे ये कला मरणासन्न है।