लखनऊवासियों, क्या गगनचुंबी इमारतें हमारे शहर की आत्मा से मेल खाती हैं?

नगरीकरण- शहर व शक्ति
26-07-2025 09:29 AM
लखनऊवासियों, क्या गगनचुंबी इमारतें हमारे शहर की आत्मा से मेल खाती हैं?

लखनऊ, एक ओर अपनी नज़ाकत, तहज़ीब और ऐतिहासिक हवेलियों के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर अब यह आधुनिक शहरीकरण की ऊँचाइयों को भी छू रहा है। तेजी से बढ़ती आबादी, सीमित भूमि संसाधन और समृद्ध जीवनशैली की खोज ने लखनऊ को भी ऊँची इमारतों की दिशा में धकेल दिया है। गोमती नगर, हजरतगंज, चिनहट, शाहिद पथ और आशियाना जैसे क्षेत्र अब बहुमंजिला टावरों (towers) की ऊंचाइयों से बदलते जा रहे हैं। जहां कभी लोग अपनी ‘जमीन’ के मालिक बनकर फख्र महसूस करते थे, अब वहां ‘ऊंचाई’ ही आधुनिक जीवन का प्रतीक बन गई है। इस शहरी बदलाव के बीच यह सवाल उठना लाजिमी है—क्या ये गगनचुंबी इमारतें लखनऊ के सामाजिक और भौगोलिक ताने-बाने के अनुकूल हैं? आइए इस लेख में पाँच पहलुओं से इस पर विचार करें। 

इस लेख में हम लखनऊ जैसे ऐतिहासिक और विकसित होते महानगर में ऊँची इमारतों के बढ़ते प्रभाव को पाँच महत्वपूर्ण पहलुओं में समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले, हम जनसंख्या दबाव और सीमित भूमि संसाधनों के कारण बहुमंजिला इमारतों की आवश्यकता को समझेंगे। इसके बाद, हम देखेंगे कि ये इमारतें कैसे आधुनिक जीवनशैली, सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक समावेश को नया आकार दे रही हैं। तीसरे भाग में हम उन स्वास्थ्य, मानसिक और आपदा प्रबंधन संबंधी चुनौतियों की चर्चा करेंगे जो ऊँचाई के साथ आती हैं। फिर हम जानेंगे कि ऊँची इमारतों में मरम्मत, रखरखाव और स्वामित्व के स्तर पर किस प्रकार की व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं। अंत में, हम यह विचार करेंगे कि लखनऊ के शहरी नियोजन को कैसे ऊँचाई और विरासत के बीच संतुलन साधना चाहिए।

जनसंख्या दबाव और भूमि की कमी में ऊँची इमारतों की उपयोगिता

लखनऊ जैसे तेजी से बढ़ते शहरों में आबादी का घनत्व निरंतर बढ़ रहा है। हर वर्ष लाखों लोग काम, शिक्षा और बेहतर जीवन की तलाश में इस शहर की ओर खिंचे चले आते हैं। इसके परिणामस्वरूप आवासीय जमीन की मांग तो बढ़ती है, लेकिन भूमि सीमित होने के कारण उसकी आपूर्ति संभव नहीं होती। ऐसे में ‘ऊँचाई’ को ‘विकास’ का समाधान माना जा रहा है। बहुमंजिला इमारतें एक ही भूखंड में सैकड़ों परिवारों को समाहित कर सकती हैं, जिससे शहरी विस्तार पर नियंत्रण बना रहता है। इन इमारतों में कम जगह में अधिक लोगों को आवास देने की क्षमता होती है, जो ज़मीन के सीमित संसाधनों वाले शहरों के लिए व्यावहारिक समाधान है। साथ ही इन इमारतों से बिजली, जल, और ड्रेनेज (drainage) जैसी मूलभूत सुविधाएं केंद्रीकृत रूप से प्रबंधित की जा सकती हैं, जिससे शहरी ढांचे पर पड़ने वाला दबाव कम होता है।

सामाजिक जीवन, संस्कृति और उच्च जीवनशैली के समन्वय
ऊँची इमारतें सिर्फ रहने का स्थान नहीं, बल्कि एक साझा जीवन का अनुभव बन चुकी हैं। अपार्टमेंट (Apartment) संस्कृति में लोग पास-पास रहते हैं, जिससे त्योहारों, मेलों और दैनिक जीवन में सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है। लखनऊ जैसे सांस्कृतिक शहर में यह एक नया सामाजिक ताना-बाना गढ़ रहा है, जहाँ हर जाति, धर्म और पेशे के लोग एक साथ रहते हैं। आधुनिक टावरों में जिम (gym), स्विमिंग पूल (swimming pool), क्लब हाउस (club house), मिनी थियेटर (mini theater) जैसी सुविधाएं एक ही परिसर में उपलब्ध होती हैं, जो न केवल सुविधाजनक हैं, बल्कि सामाजिक एकजुटता भी बढ़ाती हैं। बच्चों के खेलने के मैदान और बुजुर्गों के लिए बाग-बगिचे अब इमारतों की ऊपरी मंजिलों तक पहुंच गए हैं। ऊंचे फ्लैटों (apartment flats) से शहर के सुरम्य दृश्य दिखते हैं, जिससे रहने वालों को एक मानसिक सुकून और निजीपन का अहसास होता है। लखनऊ के ‘वेलेंसिया टावर्स’ (Valencia Towers) और जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (JPNIC) जैसे प्रोजेक्ट (project) इसका प्रमाण हैं, जहां आधुनिकता और आराम एक साथ चलते हैं।

ऊँचाई में छिपे जोखिम: स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और मानसिक अलगाव
जैसे-जैसे इमारतें ऊँचाई छूती हैं, वैसे-वैसे कुछ अनदेखे खतरे भी सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, वृद्ध या बीमार लोगों के लिए ऊपरी मंजिलों पर रहना कई बार असुविधाजनक और खतरनाक साबित होता है। लिफ्ट (Lift) की असफलता, बिजली की कटौती, या अग्निशमन जैसी आपात स्थितियों में जब सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है, तो यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। एक्रोफोबिया (ऊंचाई का डर), गठिया, उच्च रक्तचाप जैसे रोगियों के लिए ऊंची इमारतों का जीवन मानसिक और शारीरिक तनाव ला सकता है। इसके अलावा, गगनचुंबी अपार्टमेंट्स के निवासी अक्सर एक ‘सामाजिक बुलबुले’ में जीते हैं—जहां वे अपने समुदाय तक सीमित रह जाते हैं और नीचे धरती पर होने वाले सामाजिक जीवन से कटने लगते हैं। बच्चों का खुली जगहों से रिश्ता कमजोर होता है और प्रकृति से सीधा संपर्क कम होता है। यह मानसिक स्वास्थ्य और समाजिक सहभागिता के लिए खतरे की घंटी है।

रखरखाव, मरम्मत और स्वामित्व संबंधी चुनौतियाँ
ऊँची इमारतों की सुंदरता और आधुनिकता जितनी आकर्षक लगती है, उनका प्रबंधन और रखरखाव उतना ही जटिल होता है। पाइपलाइन की लीकेज (Pipeline Leakage), बाहरी दीवारों की पेंटिंग (exterior wall paintings), एयर कंडीशनर इंस्टॉलेशन (air conditioner installation), खिड़कियों की मरम्मत जैसे कार्य बहुमंजिला इमारतों में बहुत महंगे और जोखिम भरे हो सकते हैं। फ्लैट मालिकों को अक्सर सोसाइटी (society) की सहमति या बिल्डर (builder) पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे व्यक्तिगत नियंत्रण की भावना कमजोर होती है। कई बार रखरखाव शुल्क भी बहुत अधिक होता है, जो मध्यमवर्गीय परिवारों के बजट को प्रभावित करता है। इसके अलावा, पालतू जानवरों के साथ रहना, लिफ्ट में सामान लाना या आपातकालीन सेवाएं प्राप्त करना भी ऊपरी मंजिलों पर रहने वालों के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाता है। यदि टावर बहुत पुराने हो जाएं और बिल्डर सक्रिय न हो, तो इमारत का प्रबंधन और भी जटिल हो जाता है।

लखनऊ के शहरी नियोजन को चाहिए संतुलित दृष्टिकोण
जहां एक ओर बहुमंजिला इमारतें शहरी विस्तार को नियंत्रित करने का एक प्रभावी साधन बन रही हैं, वहीं दूसरी ओर यह ज़रूरी है कि लखनऊ का शहरी नियोजन केवल ऊंचाई तक सीमित न रहे। हमारी ऐतिहासिक वास्तुकला, हवेलियों की विरासत, और सामाजिक घनिष्ठता को बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है। आज जब दिल्ली, मुंबई और शंघाई जैसे शहरों ने ऊँची इमारतों के नकारात्मक प्रभावों से सीख ली है, तब लखनऊ को भी ‘मिश्रित विकास’ (mixed-use planning) की ओर बढ़ना चाहिए, जहां ऊँचाई, हरियाली और खुली ज़मीन का संतुलन बना रहे। नए टाउनशिप (township) में भीड़, प्रदूषण और आपात स्थितियों के प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बननी चाहिए। लखनऊ की आत्मा केवल आधुनिक अपार्टमेंट्स में नहीं, बल्कि उसकी गलियों, तहज़ीब और परंपराओं में भी बसती है।

संदर्भ - 

https://tinyurl.com/yck4zw84 

पिछला / Previous


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.