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लखनऊवासियो, क्या आपने कभी गौर किया है कि जब भी कोई शुभ कार्य होता है, चाहे वह मंदिर में पूजा हो, किसी विवाह का मंडप सजे या फिर त्योहारों की रंग-बिरंगी रौनक हो तो एक खास पीले-नारंगी फूल की उपस्थिति हर बार अनिवार्य नज़र आती है? यही है हमारा अपना ‘गेंदा’ फूल, जो सिर्फ़ शोभा या सुगंध तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे धार्मिक संस्कारों, सांस्कृतिक परंपराओं और अब तेजी से बदलते ग्रामीण और शहरी जीवन की रीढ़ बन चुका है। लखनऊ जैसे कृषि और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जिले में, जहाँ किसान और शहरी उद्यमी पारंपरिक सीमाओं से बाहर निकलकर नए विकल्प अपना रहे हैं, वहाँ गेंदा केवल खेतों और मंडपों की सुंदरता नहीं बढ़ा रहा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नया रंग दे रहा है। खासकर लखनऊ की ग्रामीण और नगरीय महिलाएं, जो पहले घरेलू कार्यों तक सीमित थीं, अब गेंदा फूल की खेती, माला बनाने और स्थानीय बाज़ार में बिक्री के ज़रिए आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं। गेंदा अब हमारे लिए सिर्फ एक फूल नहीं, बल्कि अवसर बन चुका है—सजावट का, समर्पण का और सशक्तिकरण का।
इस लेख में हम गेंदा फूल के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा करेंगे, साथ ही इसके वैज्ञानिक गुणों और वैश्विक आध्यात्मिक संदर्भों को भी समझने का प्रयास करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि लखनऊ जैसे क्षेत्रों में इसकी खेती कैसे आर्थिक संभावनाओं का नया रास्ता खोल रही है और किस तरह यह महिलाओं के सशक्तिकरण में सहायक बन रहा है।
धार्मिक और आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में गेंदे का फूल
भारत में फूलों का धार्मिक महत्व केवल सौंदर्य या श्रद्धा तक सीमित नहीं है, यह भावनाओं, आस्था और आत्मिक ऊर्जा का प्रत्यक्ष रूप है। उन फूलों में से सबसे सहज, सुलभ और फिर भी अत्यंत प्रभावशाली है — गेंदा। इसकी पीली और नारंगी आभा में सूर्य जैसी ऊर्जा और जीवन शक्ति का संचार होता है। यह न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि त्याग, समर्पण और विजय जैसे गहरे आध्यात्मिक मूल्यों को भी अभिव्यक्त करता है।
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी, विष्णु, और दुर्गा जैसे देवताओं की पूजा में गेंदे की माला चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह माला न केवल श्रद्धा का भाव लिए होती है, बल्कि यह उस दिव्य ऊर्जा का माध्यम भी बनती है जिससे मन और वातावरण दोनों शुद्ध हो जाते हैं। गेंदे और आम के पत्तों से बने तोरण को घर के दरवाज़े पर लगाया जाता है। यह एक सुंदरता की रचना नहीं, बल्कि एक शुभ संकेत होता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश और नकारात्मक शक्तियों का निष्कासन होता है। इसकी गंध को 'शुद्ध', 'पवित्र', और 'ऊर्जावान' माना गया है, जो मन और स्थान दोनों को प्रफुल्लित करती है। ईसाई परंपरा में भी गेंदे की प्रजाति 'कैलेंडुला' (Calendula) का एक विशेष स्थान है। घोषणा का पर्व (Annunciation Day) के अवसर पर इसे मदर मैरी (Mother Mary) की करुणा और पवित्रता का प्रतीक मानकर अर्पित किया जाता है। 'मैरीगोल्ड' (Marigold) नाम अपने आप में इस फूल की आध्यात्मिक गहराई और श्रद्धा से जुड़ी पहचान का परिचायक है।
भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक आयोजनों में गेंदे की भूमिका
भारत में गेंदा सिर्फ एक फूल नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। देश की विविधता भरी परंपराओं में शायद ही कोई धार्मिक, सामाजिक या पारिवारिक आयोजन ऐसा हो जहाँ गेंदा नज़र न आए। चाहे शादी-ब्याह की हल्दी रस्म हो, माँ दुर्गा की आराधना हो या दीपावली की सजावट — गेंदा हर अवसर की आत्मा बन चुका है। घर के प्रवेशद्वार पर गेंदे और आम के पत्तों से बना तोरण लगाया जाता है, जो केवल सजावट नहीं बल्कि अतिथि के लिए सम्मान और स्वागत का प्रतीक होता है। यह हमारी सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा है, जो अनकहे भावों को बिना शब्दों के प्रकट करता है। त्योहारों जैसे नवरात्रि, दीपावली, रामनवमी, गणेश चतुर्थी और रक्षाबंधन के दौरान, मंदिरों से लेकर घरों तक, गेंदे के फूलों से सजी आरतियाँ, पूजा थाल और पंडाल न केवल स्थान की शोभा बढ़ाते हैं, बल्कि वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा भी भरते हैं। धार्मिक जुलूस, झांकियाँ और उत्सवों की साज-सज्जा में गेंदे की माला से बनी झालरें हर रंग, हर भावना को समर्पित करती हैं — ये हमें जोड़ती हैं, सजग करती हैं और हमारी परंपराओं से जोड़े रखती हैं।
गेंदे के फूल की वैज्ञानिक विशेषताएँ और कीट प्रतिरोधक गुण
गेंदा जितना धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, उतना ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी उपयोगी है। इसकी तीव्र गंध में प्राकृतिक कीट प्रतिरोधक गुण होते हैं, जो मच्छरों और अन्य हानिकारक कीटों को दूर रखने में मदद करते हैं। इसीलिए यह फूल केवल पूजा या सजावट तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गेंदे को ‘स्थूलपुष्प’ माना जाता है, यानी मोटा, घना, और लंबे समय तक ताज़ा रहने वाला। इसकी बनावट इसे गर्मी, धूप और वर्षा जैसे परिवर्तित मौसमों में भी टिकाऊ बनाती है। यही कारण है कि इसे मंदिरों, घरों, कृषि मेड़ों, और सार्वजनिक स्थलों पर लगाया जाता है। कई किसान अब गेंदे को ‘बॉर्डर क्रॉप’ (Border Crop) की तरह उपयोग कर रहे हैं, यानि मुख्य फसल के चारों ओर इसे लगाकर प्राकृतिक रूप से कीटों को दूर रखते हैं। इससे रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग घटता है और पर्यावरण भी संतुलित रहता है। साथ ही गेंदे में कई औषधीय गुण भी होते हैं। इसकी पंखुड़ियों में एंटीसेप्टिक (antiseptic) और एंटीफंगल (antifungal) तत्व पाए जाते हैं, जो त्वचा रोगों में उपयोगी होते हैं। पारंपरिक चिकित्सा में इसके अर्क का उपयोग घाव भरने, सूजन कम करने और सर्दी-खांसी से राहत के लिए किया जाता है।
गेंदे की वैश्विक आध्यात्मिकता और ऐतिहासिक संदर्भ
गेंदा एक ऐसा फूल है जिसे केवल भारतीय संस्कृति तक सीमित नहीं किया जा सकता। यह विश्व भर की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में एक विशेष स्थान रखता है। पश्चिमी देशों में कैलेंडुला प्रजाति को ‘मैरीगोल्ड’ कहा जाता है, और इसे मदर मैरी की पवित्रता से जोड़ा जाता है। ईसाई धर्म में विशेष पर्वों पर इस फूल को चर्च में चढ़ाया जाता है और यह आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं, इतिहास में भी गेंदा श्रद्धांजलि और स्मृति का प्रतीक बन चुका है। 2018 में प्रथम विश्व युद्ध की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर, यूरोपीय देशों ने शहीदों की याद में गेंदे के फूलों का उपयोग किया और यह दर्शाता है कि यह फूल केवल धार्मिक नहीं, बल्कि संवेदनशील ऐतिहासिक घटनाओं में भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम भी बन चुका है। आज भी विभिन्न संस्कृतियों में यह फूल प्रेम, बलिदान, पुनर्जन्म और शांति का प्रतीक माना जाता है। इसकी सार्वभौमिकता इसे विश्व के अनेक समुदायों से जोड़ती है।
भारत में गेंदे की खेती की आर्थिक प्रासंगिकता
गेंदे की खेती अब एक परंपरागत फूल से निकलकर आर्थिक रूप से लाभदायक नकदी फसल का रूप ले चुकी है। इसकी दो प्रमुख किस्में — अफ्रीकन गेंदा (African Marigold) (बड़े आकार और चमकदार रंग वाला) और फ्रेंच गेंदा (French Marigold) (छोटा, अधिक सुगंधित और रंगीन) — देशभर में किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। यह फूल कम समय में तैयार होता है (60–90 दिन), सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है। इसकी लगातार बनी रहने वाली मांग, विशेषकर त्योहारों, शादियों और धार्मिक आयोजनों के कारण, इसे पूरे वर्ष लाभ देने वाली फसल बना देती है। छोटे और सीमांत किसान भी इसे सीमित भूमि पर उगाकर मंडियों, सड़क किनारे, स्थानीय बाजारों या पूजा सामग्री की दुकानों में बेच सकते हैं। फूलों की मालाएँ, सजावट सामग्री और पुष्प-थालियों की बढ़ती मांग ने इस फूल को आय का स्थायी स्रोत बना दिया है। इसके साथ ही फूलों की खेती से जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है, खेतों का सौंदर्य बढ़ता है, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नए अवसर पैदा होते हैं।
महिलाओं की आत्मनिर्भरता और सामाजिक बदलाव में गेंदे की भूमिका
गेंदे की खेती ने ग्रामीण भारत की महिलाओं के जीवन में आशाजनक परिवर्तन लाया है। पहले जहां महिलाएं केवल घरेलू भूमिकाओं तक सीमित थीं, वहीं अब वे खेतों में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। बीज बोने से लेकर कटाई, मालाएँ बनाने से लेकर मंडी में बेचने तक। स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाएं फूलों से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों को स्वरोज़गार में बदल रही हैं, जैसे पूजा माला बनाना, सजावटी तोरण तैयार करना, सूखे फूलों से घरेलू उत्पाद बनाना आदि। इससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ी है, बल्कि उनके आत्मविश्वास और सामाजिक पहचान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज महिलाएं न केवल फूल उगाती हैं, बल्कि वे निर्णय लेने, बाजार से जुड़ने और परिवार की आय का प्रबंधन करने में भी बराबरी की भागीदारी निभा रही हैं। गेंदे का फूल उनके लिए अब सिर्फ़ एक पौधा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, सम्मान और परिवर्तन का प्रतीक बन गया है — एक ऐसा माध्यम जो उन्हें घर की चौखट से निकालकर समाज की मुख्यधारा में ला रहा है।
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