लखनऊ की हरित राह पर छाया पक्षी संकट: पवन ऊर्जा की अनदेखी कीमत

पक्षी
04-08-2025 09:30 AM
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लखनऊ की हरित राह पर छाया पक्षी संकट: पवन ऊर्जा की अनदेखी कीमत

लखनऊवासियो, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए जब हम हरित ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते हैं, तो हमें गर्व होता है कि हम धरती को बचाने के काम में भाग ले रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये पवन टरबाइन (wind turbine), जो हमें स्वच्छ ऊर्जा देते हैं, प्रकृति के एक और नाज़ुक संतुलन - पक्षियों के जीवन - को कैसे प्रभावित कर रहे हैं? लखनऊ और उसके आसपास के प्राकृतिक परिक्षेत्रों में भी पक्षियों की गतिविधियाँ, पर्यावरणीय संतुलन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ऐसे में यह सवाल और भी ज़रूरी हो जाता है कि क्या हम अपनी नीतियों में संतुलन साध पा रहे हैं?

इस लेख में हम छह उपविषयों के माध्यम से यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे पवन टर्बाइनों से पक्षियों को खतरा उत्पन्न हो रहा है। हम अमेरिका (America) और भारत के अध्ययन के आंकड़ों को देखेंगे, कच्छ और कर्नाटक में हुए पक्षी मृत्यु आंकड़ों पर चर्चा करेंगे, रैप्टर्स (reports) की संवेदनशीलता को समझेंगे, और अंत में सुझाव देंगे कि कैसे इस संकट को कम किया जा सकता है।

स्वच्छ ऊर्जा के पीछे छिपा पक्षी संकट
पवन ऊर्जा को आमतौर पर स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जाता है, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस (greenhouse gas) उत्सर्जन को कम करता है। यही कारण है कि दुनियाभर की सरकारें इसे प्रोत्साहित कर रही हैं। लेकिन इसका एक अनदेखा पक्ष भी है, इसका प्रतिकूल प्रभाव वन्यजीवों, विशेषकर पक्षियों पर। पवन टरबाइनों के विशाल ब्लेड (blade), जो लगातार घूर्णन करते हैं, पक्षियों के लिए एक अदृश्य खतरा बन जाते हैं। अमेरिका के आंकड़ों के अनुसार, 2012 में लगभग 3.66 लाख पक्षी केवल पवन टरबाइनों से टकराकर मारे गए, और विशेषज्ञ मानते हैं कि 2024 तक यह संख्या 5.38 लाख से अधिक हो सकती है। यह आंकड़ा सिर्फ अमेरिका का है। भारत में भले ही इतने व्यापक आँकड़े न हों, लेकिन अध्ययन यह दर्शाते हैं कि हमारे देश में भी पक्षियों के लिए यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। विशेष रूप से प्रवासी पक्षी, जो हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर भारत आते हैं, उन्हें टरबाइनों के बीच सुरक्षित मार्ग नहीं मिल पाता, जिससे उनकी प्राकृतिक उड़ान प्रणाली बाधित होती है और मृत्यु की संभावना बढ़ती है।

अमेरिका और भारत के अध्ययन: आंकड़ों में छिपी चेतावनी
2014 के एक अमेरिकी अध्ययन ने यह गंभीर संकेत दिया था कि लगभग 25.5 मिलियन (million) पक्षी हर वर्ष केवल बिजली लाइनों से टकराकर मारे जाते हैं, जबकि 5.6 मिलियन पक्षी बिजली के झटकों से मारे जाते हैं। जब इस आंकड़े को भारत के संदर्भ में देखा जाए, तो स्थिति और भी जटिल हो जाती है क्योंकि भारत में कई क्षेत्रों में जैव विविधता अधिक है और निगरानी संसाधन सीमित हैं। गुजरात के कच्छ और कर्नाटक के हरपनहल्ली क्षेत्रों में किए गए दो महत्वपूर्ण अध्ययनों में यह सामने आया कि टरबाइनों से 50 से अधिक पक्षियों की मौतें हुईं, जिनमें डेलमेटियन पेलिकन (Dalmatian Pelican) और चित्रित सारस जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल थीं। इन अध्ययनों में बताया गया कि पवन टरबाइनों की ऊँचाई, गति, और दिशा पक्षियों के उड़ान मार्गों के अनुरूप होती है, जिससे टकराव की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इससे न केवल पक्षियों की जान जाती है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका गहरा असर पड़ता है।

रैप्टर्स की प्रजातियाँ सबसे अधिक संवेदनशील
रैप्टर्स (Raptors), यानी शिकारी पक्षी जैसे ईगल्स (Eagles), हैरियर्स (Harriers) और केस्ट्रेल्स (Kestrels), आमतौर पर ऊँचाई पर उड़ते हैं और खुले मैदानों या जंगलों में शिकार खोजते हैं। उनकी उड़ान ऊँचाई पवन टरबाइनों के संचालन क्षेत्र से मेल खाती है, जिससे वे सीधे ब्लेड से टकरा जाते हैं। इन पक्षियों का जीवन चक्र धीमा होता है। वे कम संतानें उत्पन्न करते हैं और लंबी उम्र तक जीवित रहते हैं। ऐसे में यदि किसी वर्ष थोड़े से पक्षियों की मृत्यु भी हो जाए, तो अगली पीढ़ी का विकास रुक सकता है और पूरी प्रजाति खतरे में पड़ सकती है। कच्छ जैसे क्षेत्रों में जहां रैप्टर्स बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, पवन टरबाइनों की मौजूदगी उनकी प्रजातिगत सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। यह खतरा सिर्फ इन पक्षियों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी चक्र को प्रभावित करता है क्योंकि ये शिकारी पक्षी पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

प्रवासी पक्षियों के लिए टरबाइन बनते हैं जानलेवा पड़ाव
प्रवासी पक्षी हर साल हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर भारत के अनुकूल मौसम और समृद्ध पारिस्थितिकी का लाभ उठाने आते हैं। ये पक्षी भारत के आर्द्रभूमि, जलाशयों, घास के मैदानों और नदी किनारों में रुकते हैं और वहां प्रजनन भी करते हैं। लेकिन जब इन स्थलों के बीच पवन टरबाइनों की कतार लग जाती है, तो यह उनके पारंपरिक मार्गों को काट देती है। कच्छ में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 47 पक्षी मौतों में से 43 प्रवासी मौसम के दौरान हुईं, जो यह दर्शाता है कि ये टरबाइन इन प्रजातियों के लिए सीधे तौर पर घातक सिद्ध हो रहे हैं। चित्रित सारस और डेलमेटियन पेलिकन जैसे दुर्लभ प्रवासी पक्षियों की मृत्यु न केवल उनकी प्रजातियों के लिए खतरा है, बल्कि उन स्थानों के लिए भी चिंता का विषय है जहां पक्षी पर्यटन एक स्थानीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है।

निगरानी की कमी और निजी आंकड़ों की गोपनीयता
भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र में निगरानी की प्रक्रिया बेहद कमजोर है। अधिकांश पवन टरबाइन परियोजनाएं निर्माण से पूर्व पक्षियों के उड़ान मार्ग और जैव विविधता की समुचित जाँच नहीं करतीं। जो कंपनियां कुछ अध्ययन करवाती भी हैं, वे अपने डेटा को सार्वजनिक नहीं करतीं, जिससे पारदर्शिता की कमी होती है और वैज्ञानिक समाज के लिए प्रभावी संरक्षण योजना बनाना मुश्किल हो जाता है। जैसे हरपनहल्ली के अध्ययन में हर टरबाइन से औसतन 0.5 मौत दर्ज की गई, वह भी 40 दिनों के अंतराल पर किए गए सीमित निरीक्षणों के आधार पर — इसका मतलब है कि वास्तविक आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता है। अगर कंपनियां अपने अध्ययन रिपोर्टों को साझा करें, तो पक्षियों की मौत की प्रवृत्ति को समझकर प्रभावी उपायों को लागू किया जा सकता है।

समाधान की दिशा: संतुलित विकास ही उपाय
हम पवन ऊर्जा के उपयोग को पूरी तरह नकार नहीं सकते, क्योंकि यह स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अहम भूमिका निभा रही है। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि इसके पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जाए। सबसे पहला कदम होगा टरबाइन लगाने के स्थानों का वैज्ञानिक मूल्यांकन। जैव विविधता हॉटस्पॉट (hotspot) और प्रवासी पक्षियों के उड़ान पथ से दूर टरबाइन लगाना जरूरी है। इसके अलावा, टरबाइनों की गति को नियंत्रित करने, ब्लेड डिज़ाइन (blade design) में बदलाव लाने, राडार (Radar) आधारित पक्षी ट्रैकिंग तकनीकों (Bird Tracking Techniques) का उपयोग, और प्रवासी मौसम के दौरान कुछ टरबाइनों को अस्थायी रूप से बंद करना जैसे उपाय उठाए जा सकते हैं। साथ ही, सरकार को कंपनियों को उनके पर्यावरणीय डेटा (data) सार्वजनिक करने के लिए बाध्य करना चाहिए, जिससे वैज्ञानिक समुदाय पारिस्थितिक संकटों को समय रहते पहचान सके और उन्हें टाल सके।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/mvabjpc2