लखनऊवासियो, जानिए जंगली जानवरों की माताओं में छिपे वात्सल्य के अद्भुत रूप

व्यवहारिक
05-08-2025 09:30 AM
लखनऊवासियो, जानिए जंगली जानवरों की माताओं में छिपे वात्सल्य के अद्भुत रूप

लखनऊवासियो, हमारे शहर की पहचान केवल नवाबी तहज़ीब, इमामबाड़ों या चिकनकारी तक सीमित नहीं है, हमारी सोच, संवेदनशीलता और परिवारों के प्रति जुड़ाव भी उतना ही गहरा है। इंसानों की तरह ही जानवरों की दुनिया में भी कुछ रिश्ते इतने भावुक और जटिल होते हैं, जो हमें हैरान कर सकते हैं। जंगलों में रहने वाले जानवर, जिनकी ज़िंदगी संघर्षों और ख़तरों से भरी होती है, वे भी अपने बच्चों की परवरिश में असाधारण समर्पण और ममता दिखाते हैं। कुछ जानवर तो अपने बच्चों के लिए खुद को जोखिम में डाल देते हैं, जबकि कुछ उन्हें जीवन जीने के हुनर सिखाने में वर्षों लगा देते हैं। आज का लेख इसी प्रकृति के अनदेखे और अविस्मरणीय पहलू को आपके सामने रखेगा।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि जानवरों में पालन-पोषण की कौन-कौन सी शैलियाँ देखने को मिलती हैं और वे एक-दूसरे से कैसे भिन्न होती हैं। फिर हम एलोपेरेंटिंग (alloparenting) यानी गैर-जैविक माता-पिता द्वारा बच्चों की परवरिश की अवधारणा को समझेंगे और देखेंगे कि यह व्यवहार प्रजातियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है। अंत में, हम उन विशेष जानवरों से परिचित होंगे, जो ममत्व, सुरक्षा और समर्पण के अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं — जैसे ओरंगुटान (Orangutan), मगरमच्छ, चीता और कंगारू (Kangaroo)।

जानवरों में पालन-पोषण की विभिन्न शैलियाँ
प्रकृति के विशाल संसार में जानवरों के पालन-पोषण की शैलियाँ बेहद विविध, जटिल और दिलचस्प होती हैं। कुछ जानवर अपने बच्चों के लिए जीवन भर समर्पित रहते हैं, उन्हें सुरक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, तो कुछ केवल जन्म देने के बाद उन्हें स्वाभाविक विकास की ओर छोड़ देते हैं। यह अंतर न केवल प्रजातियों की ज़रूरतों को दर्शाता है, बल्कि उनकी जीवनशैली, पर्यावरण और सामाजिक संरचना को भी उजागर करता है। उदाहरण के लिए, गिलहरी को एक "कृपालु माता-पिता" (Indulgent Parent) के रूप में देखा जाता है। वह अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाती है, भोजन का भंडार करती है और अत्यंत सतर्कता से उनकी देखभाल करती है। इसके विपरीत, खरगोश जैसे जानवर "लेज़े फ़ेयर" (Laissez-faire) शैली अपनाते हैं। वे बच्चों को जन्म देकर उनका ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं करते। माँ खरगोश बच्चों को अपने बिल में छोड़कर दिन में केवल एक या दो बार उन्हें दूध पिलाने आती है। 
अब बात करते हैं रासू (Weasel) जैसे जानवरों की, जो सही मायनों में "टाइगर पेरेंट्स" (tiger parents) कहलाते हैं। ये जानवर अपने बच्चों को जीवित रहने की जटिल रणनीतियाँ सिखाते हैं, जैसे शिकार करना, छुपना, और खतरे से निपटना। कुछ पक्षी, जैसे किंगफ़िशर (Kingfisher), पालन-पोषण में नर और मादा दोनों की बराबर भागीदारी से उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अंडों को सेने से लेकर चूज़ों को खाना खिलाने तक, दोनों मिलकर यह ज़िम्मेदारी निभाते हैं। यह "लोकतांत्रिक पालन" की शैली है, जो संतुलन और समन्वय की मिसाल पेश करती है। सबसे अनूठी शैली देखने को मिलती है बिज्जू जैसे जानवरों में, जो विस्तारित, सामाजिक और सहायक पारिवारिक समूहों में रहते हैं। यहाँ हर सदस्य, चाहे वह माँ, पिता, भाई, बहन या चाचा-चाची हों, बच्चों की परवरिश में योगदान देता है। यह सामूहिक प्रयास बच्चों को सामाजिक मूल्यों, सहयोग, और साझा ज़िम्मेदारियों की शिक्षा देता है, जो किसी भी समुदाय के लिए अमूल्य धरोहर है।

एलोपेरेंटिंग क्या है और जानवरों में इसका सामाजिक महत्व
एलोपेरेंटिंग वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चों की देखभाल केवल जैविक माँ-बाप ही नहीं, बल्कि समुदाय के अन्य सदस्य भी करते हैं। यह व्यवहार उन जानवरों में पाया जाता है जो सामाजिक संरचना में रहते हैं और सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना रखते हैं। इंसानी समाज में जैसे दादी-दादा, मौसी, मामा या बड़े भाई-बहन बच्चों की परवरिश में हाथ बंटाते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ जानवरों में भी यह व्यवस्था देखने को मिलती है।
प्राइमेट्स (Primates) की कई प्रजातियों में एलोपेरेंटिंग आम है। रीसस मैकाक (rhesus macaque) इसका स्पष्ट उदाहरण है, जहाँ युवा मादाएँ छोटे बच्चों की देखभाल करना सीखती हैं, उन्हें संभालती हैं, खिलाती हैं और सामाजिक व्यवहारों में प्रशिक्षित करती हैं। इससे न केवल बच्चों को सुरक्षा और प्यार मिलता है, बल्कि युवा मादाओं को भविष्य के लिए माँ बनने की तैयारी भी होती है। कुछ पक्षी जैसे फ्लेमिंगो (Flamingo) में एलोपेरेंटिंग का एक अनूठा स्वरूप देखने को मिलता है, जहाँ समलैंगिक जोड़े भी बच्चों की परवरिश करते हैं। वे बच्चों को अपने अंडों की तरह ही पालते हैं, उन्हें भोजन देते हैं और उड़ना सिखाते हैं। यह दिखाता है कि प्रकृति में पालन-पोषण की भावना केवल जैविक संबंधों तक सीमित नहीं है।
लेकिन एलोपेरेंटिंग का सबसे मार्मिक उदाहरण हाथियों में मिलता है। हाथियों के झुंड मातृसत्तात्मक होते हैं, जहाँ कई पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं। मादा हाथी अपने बच्चों के लिए बहुत स्नेही और सुरक्षात्मक होती है, लेकिन जब किसी कारणवश बच्चा अपनी माँ या झुंड से बिछुड़ जाता है, तो पूरा समूह शोक में डूब जाता है। यह सामाजिक जुड़ाव न केवल संरक्षण का प्रतीक है, बल्कि उस गहरे भावनात्मक रिश्ते को भी दर्शाता है, जो इंसानों के पारिवारिक रिश्तों से कम नहीं है। एलोपेरेंटिंग से प्रजातियों में न केवल सामाजिक स्थायित्व आता है, बल्कि यह बच्चों के लिए विविध दृष्टिकोण और सुरक्षा का एक मज़बूत ढाँचा भी बनाता है। यह व्यवहार यह भी दर्शाता है कि प्रकृति में "पालन" केवल एक जैविक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक सामूहिक सामाजिक दायित्व है।

जंगली जानवरों में मातृत्व और समर्पण के अद्वितीय उदाहरण
माँ का रिश्ता दुनिया में सबसे निष्कलंक और निःस्वार्थ माना जाता है, और यह सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है। जंगली जानवरों की दुनिया में भी कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ माताएँ अपने बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिए अनोखा समर्पण और भावनात्मक गहराई दिखाती हैं।

ओरंगुटान मादा का उदाहरण लें, वह एक समय में केवल एक ही बच्चे को जन्म देती है और उसे लगभग सात से आठ वर्षों तक अपने साथ रखती है। इस दौरान वह न केवल बच्चे को पेड़ों पर चढ़ना, खाना ढूँढना, और ख़तरों से बचना सिखाती है, बल्कि 200 से अधिक पौधों की पहचान कराती है ताकि बच्चा स्वतंत्र रूप से जीवित रह सके। यह निरंतर साथ और प्रशिक्षण किसी शिक्षक और माता दोनों का संगम है।

मगरमच्छ, जिन्हें अक्सर केवल हिंसक शिकारी समझा जाता है, अपनी संतानों के लिए बेहद संवेदनशील होते हैं। मादा मगरमच्छ अपने अंडों को सही तापमान पर रखने के लिए मिट्टी की ऊपरी परत को बार-बार समायोजित करती है, क्योंकि तापमान से ही बच्चों का लिंग निर्धारित होता है। जब अंडे फूटते हैं, तो वह अपने बच्चों को अपने जबड़ों में उठाकर सावधानी से पानी तक ले जाती है — और यह कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि ये वही जबड़े हैं जो किसी शिकार को चीर सकते हैं। दो साल तक वह बच्चों की हर खतरे से रक्षा करती है, चाहे खुद को ही खतरे में क्यों न डालना पड़े।

चीता की मादा अपने बच्चों को हर दिन एक सुरक्षित स्थान पर ले जाती है, ताकि शिकारी उनकी गंध न पकड़ सकें। वह बच्चों को शिकार करना, छिपना और दौड़ना सिखाती है। जब वह खुद शिकार से थककर लौटती है, तो बच्चों से लिपटकर उन्हें स्नेह देती है, जैसे कोई माँ दिन भर की थकान के बाद अपने बच्चों की मुस्कान में राहत ढूँढती हो।

कंगारू की माँ तो मातृत्व की मिसाल बन चुकी है। वह अपने एक साथ तीन बच्चों की देखभाल करती है — एक गर्भ में, एक थैली में और एक थैली से बाहर। उसका शरीर इस तरह अनुकूलन करता है कि वह तीनों को अलग-अलग ज़रूरत के अनुसार दूध दे सके। यह निरंतर देखभाल और पोषण उसकी मातृत्व क्षमता की अद्वितीयता को दर्शाता है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/yvzw3mzb 

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