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लखनऊवासियों, जिस तहज़ीब, शिल्प, और विचारशीलता पर हम आज गर्व करते हैं, उसकी शुरुआत उस समय से हुई थी, जब न तो आलीशान इमारतें थीं, न लिपियाँ, और न ही किसी शासन की परछाईं, सिर्फ़ पत्थरों के औज़ार, आग की रोशनी और एक जिज्ञासु मन था। गोमती के किनारे बसे हमारे इस ऐतिहासिक शहर में भले ही सीधे पुरापाषाण युग (Paleolithic Age) के प्रमाण न मिलते हों, लेकिन मानव सभ्यता की उस प्रारंभिक यात्रा को जानना हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना नवाबी लखनऊ की ज़बान और ज़ायका। यह वही समय था जब इंसान ने पहली बार अपने आसपास के जंगल, जानवरों और आकाश को एक नए नज़रिए से देखना शुरू किया। उसने सिर्फ़ जीवित रहने के लिए नहीं, बल्कि समझने और सहेजने के लिए जीना सीखा। लखनऊ जैसे सांस्कृतिक शहरों की आत्मा, जिसमें सौंदर्य, विवेक और समाज का बोध शामिल है, उस आदिम सोच की ही एक विकसित कड़ी है। आज जब हम चिकनकारी के महीन धागों या तंज़ की नफासत पर मुग्ध होते हैं, तब यह याद रखना ज़रूरी है कि यह संवेदनशीलता उस समय से आकार लेनी शुरू हो गई थी जब इंसान ने पहली बार किसी गुफा की दीवार पर आकृति उकेरी थी या दो पत्थरों को रगड़कर आग की चिंगारी जलाई थी। उस चिंगारी में ही आज की सभ्यता की पहली लौ छिपी थी।
इस लेख में हम उच्च पुरापाषाण युग की पाँच प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा करेंगे: इस युग में आधुनिक मानव का आगमन कैसे हुआ, क्रो-मैग्नन (Cro-Magnon) मानव की जीवनशैली, भारत में मिले प्रमुख पुरातात्विक स्थल और औज़ार, क्रो-मैग्नन और निएंडरथल (Neanderthal) के बीच का अंतर, और अंततः यह युग मानव सभ्यता की नींव कैसे बना। आइए, लखनऊ की ज्ञानपिपासा के अनुरूप इन ऐतिहासिक पलों में झांकें।
उच्च पुरापाषाण युग: आधुनिक मानव विकास की शुरुआत
उच्च पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic Age), लगभग 50,000 से 10,000 ईसा पूर्व तक फैला वह काल था जब मानव जाति ने ‘होमो सेपियन्स’ (Homo sapiens) के रूप में धरती पर कदम रखा। यह वह समय था जब मनुष्य ने केवल शिकार करना ही नहीं सीखा, बल्कि जीवन के तमाम क्षेत्रों में नवाचार की शुरुआत भी की। पत्थर से बनाए गए धारदार ब्लेड (blade), स्क्रैपर (spear), अंकुश जैसे औज़ारों का इस्तेमाल पहली बार इसी युग में शुरू हुआ। मनुष्य ने गुफाओं में आग जलानी सीखी, जिससे अंधेरे में जीवन की रोशनी आई और सामाजिकता की बुनियाद पड़ी। आग के साथ-साथ भाषा के संकेतों और गुफा चित्रों के माध्यम से संप्रेषण की भावना विकसित हुई। यह युग मानव इतिहास का वह मोड़ था, जहाँ जीव मात्र सोचने-समझने वाले प्राणी में बदल गया।
क्रो-मैग्नन: पहले आधुनिक मानव
क्रो-मैग्नन मानवों को सबसे पहले पूर्ण विकसित ‘होमो सेपियन्स’ के रूप में पहचाना गया। ये शिकारी जीवन जीते थे, लेकिन साथ ही इनका कला, प्रतीकात्मकता और सामाजिकता से गहरा जुड़ाव भी था। दीवारों पर चित्र बनाना, मूर्तियाँ गढ़ना, और शवों को विशेष रीति से दफनाना, यह सब दर्शाता है कि इनका जीवन केवल अस्तित्व तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने जीवन में अर्थ और सौंदर्य की खोज शुरू कर दी थी। क्रो-मैग्नन की खोपड़ी बड़ी, माथा ऊँचा और शरीर संतुलित था, जिससे ये निएंडरथल से अलग दिखाई देते थे। उनकी कला और सोचने-समझने की क्षमता मानव इतिहास में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत मानी जाती है।
भारत में उच्च पुरापाषाण युग के प्रमुख स्थल और उपकरण
भारत में उच्च पुरापाषाण युग के कई प्रमाण प्राचीन घाटियों और गुफाओं में मिले हैं। बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश), कुरनूल की गुफाएँ (आंध्र प्रदेश), बाघोर (मध्य प्रदेश) और पैसरा (झारखंड) इस युग के प्रमुख स्थल हैं। इन स्थानों पर पाए गए पत्थर के औज़ार जैसे ब्लेड, स्क्रैपर, नुकीले औज़ार, और हथियार उस युग की तकनीकी समझ का प्रमाण हैं। औज़ारों के निर्माण में परिष्कृत तकनीक का उपयोग होता था, जैसे खोदनी तकनीक और सीधा कटकटी विधि। इन उपकरणों से जानवरों की खाल निकालना, मांस काटना और लकड़ी तराशना आसान हुआ। ये स्थल दर्शाते हैं कि तकनीकी नवाचार, शारीरिक दक्षता और सामूहिक श्रम ने मिलकर सभ्यता की नींव रखी थी।
क्रो-मैग्नन और निएंडरथल में अंतर
क्रो-मैग्नन और निएंडरथल - दोनों मानव प्रजातियाँ एक ही समय में पृथ्वी पर विद्यमान थीं, लेकिन उनमें गहरे जैविक और सांस्कृतिक अंतर थे। निएंडरथल शारीरिक रूप से अधिक बलवान थे, लेकिन वे सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सीमित थे। दूसरी ओर, क्रो-मैग्नन मानव मानसिक रूप से अधिक विकसित थे, उन्होंने कला, भाषा, संगीत और प्रतीकात्मक व्यवहार का विकास किया। क्रो-मैग्नन ने औज़ारों का जटिल और बहु-उद्देश्यीय प्रयोग किया, जबकि निएंडरथल तकनीकी दृष्टि से तुलनात्मक रूप से सीमित थे। यह अंतर केवल शरीर का नहीं था, बल्कि सोचने की शक्ति, रचनात्मकता और सामाजिक संगठनों की शुरुआत में भी दिखाई देता है, जिसने आगे चलकर सभ्यता को दिशा दी।
मानव सभ्यता की नींव और इस अध्ययन का महत्व
उच्च पुरापाषाण युग सिर्फ गुफाओं, आग और पत्थरों का युग नहीं था, यह वह युग था जब मानव समाज ने जीवन में उद्देश्य, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संबंधों की शुरुआत की। कला, भाषा, अनुष्ठान और स्मृति, ये सभी तत्व इसी समय विकसित होने लगे। पहली बार मनुष्य ने न केवल ज़िंदा रहना सीखा, बल्कि अपनी पहचान बनाना भी शुरू किया। यही वह समय था जब वह प्रकृति को देखकर सीखने, उसे समझने और अनुकूल बनने की प्रक्रिया में आगे बढ़ा। यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि सभ्यता सिर्फ भवनों या लिपियों से नहीं बनती, वह बनती है विचारों, संबंधों और सामूहिक प्रयासों से, जिसकी नींव इस युग में रखी गई।
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