सावन, झूले और लखनऊ की तीज़: रिश्तों, रंगों और रौनक का उत्सव

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
11-08-2025 09:28 AM
सावन, झूले और लखनऊ की तीज़: रिश्तों, रंगों और रौनक का उत्सव

लखनऊवासियों, तीज का त्योहार जब सावन की हल्की फुहारों के साथ आता है, तो पूरा शहर एक खास रंग में रंग जाता है, हरियाली, उत्साह और स्त्री शक्ति के सम्मान के रंग में। लखनऊ में तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह एक लोक-उत्सव है, जिसमें नवाबी तहज़ीब और ग्रामीण परंपराएँ मिलकर स्त्रियों के आत्मबल, प्रेम और सौंदर्य की अभिव्यक्ति बन जाती हैं। यहाँ तीज का उल्लास कई रूपों में दिखाई देता है। गोमती नगर और इंदिरा नगर जैसे आधुनिक इलाकों में महिलाएं सामूहिक झूला कार्यक्रम और सांस्कृतिक आयोजन करती हैं, वहीं पुराने लखनऊ, जैसे चौक, अमीनाबाद और हुसैनगंज की गलियों में पारंपरिक लोकगीतों की गूंज सुनाई देती है। महिलाएं हरे परिधान पहनती हैं, सजी-धजी चूड़ियों, महावर और मेंहदी से सोलह श्रृंगार करती हैं, और पारिवारिक आंगनों में झूले डाले जाते हैं। शहर के मंदिरों, जैसे कि मनकामेश्वर मंदिर और दुर्गा पूजा पार्क में विशेष पूजा-अर्चना होती है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और शाम को कथा सुनती हैं। पूजा के बाद विशेष पकवानों का भोग चढ़ाया जाता है, जैसे घेवर, मालपुआ, खीर और बेसन की बर्फी। 
लखनऊ के कई घरों में आज भी यह परंपरा है कि बेटियों को "सिंजारा" भेजा जाता है, जिसमें साड़ी, मिठाई और सौंदर्य प्रसाधन होते हैं। इसके साथ ही कई सामाजिक संस्थाएं और महिला मंडल इस अवसर पर “तीज महोत्सव” आयोजित करते हैं। यहां पारंपरिक नृत्य, गायन, तीज क्विज़ और फैशन शो (fashion show) जैसे कार्यक्रम होते हैं, जिनमें नवयुवतियों से लेकर बुज़ुर्ग महिलाएं तक उत्साह से भाग लेती हैं। यह समूचा आयोजन स्त्रियों को उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का कार्य करता है, साथ ही समाज में उनकी भूमिका को सम्मान भी देता है।

इस लेख में हम लखनऊ में मनाई जाने वाली तीज के पाँच प्रमुख पहलुओं पर गहराई से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम तीज के आध्यात्मिक मूल को समझेंगे और देवी पार्वती की उस पौराणिक कथा की ओर लौटेंगे, जिसमें उन्होंने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। दूसरे हिस्से में हम लखनऊ की परंपराओं में तीज व्रत, पूजा विधि और सुहाग चिन्हों के महत्व को देखेंगे। तीसरे भाग में तीज के सांस्कृतिक सौंदर्य जैसे झूले, लोकगीतों और मेहंदी की परंपरा को समझेंगे, जो इस पर्व को जीवंत बनाते हैं। इसके बाद हम भारत और नेपाल में तीज की विविध परंपराओं और लखनऊ में बनने वाले खास व्यंजनों जैसे घेवर, मिठाई और खजूर पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि आधुनिक लखनऊ में तीज किस प्रकार सामूहिक आयोजनों, महिलाओं की भागीदारी और सशक्तिकरण के माध्यम से नई ऊर्जा प्राप्त कर रही है।

तीज का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल: देवी पार्वती की कथा से आरंभ
तीज पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह स्त्री-शक्ति, प्रेम और संकल्प की एक गूढ़ सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। इसकी जड़ें देवी पार्वती की उस तपस्या में हैं, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए 108 जन्मों तक कठिन तप किया। उनकी यह साधना आज भी स्त्रियों के धैर्य, आस्था और निष्ठा की प्रेरणा बन चुकी है। इस कथा को सुनना और सुनाना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने वाली विरासत भी है। तीज इसलिए भी खास है क्योंकि यह स्त्री के आत्मबल और उसकी सूक्ष्म इच्छाओं का सम्मान करता है। जब माँ अपनी बेटी को यह कथा सुनाते हुए यह कहती है कि ‘सच्चा प्रेम तपस्या चाहता है’, तो वह सिर्फ एक कहानी नहीं सुना रही होती, वह उसे जीवन जीने का एक गूढ़ संदेश दे रही होती है। तीज का यही आयाम इसे धार्मिकता से ऊपर उठाकर आध्यात्मिकता की श्रेणी में रखता है।

व्रत, पूजा और पारंपरिक रीति-रिवाज़: आस्था का स्त्री रूप
तीज का व्रत नारी आस्था, संयम और शक्ति का एक जीवंत उदाहरण है। यह निर्जला व्रत, जिसमें महिलाएँ पूरे दिन बिना जल-अन्न के रहती हैं, केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि अपनी आंतरिक शक्ति और आत्मनियंत्रण को प्रकट करने का माध्यम है। महिलाएँ पारंपरिक पोशाकों में सजी होती हैं, हरी साड़ी, हरी चूड़ियाँ, बिंदी और महावर से संपूर्ण श्रृंगार करती हैं। पूजा की थाली में हर वस्तु, दूब, बेलपत्र, फल, मिठाई और रक्षा-सूत्र, एक प्रतीकात्मक अर्थ लिए होती है। सामूहिक पूजन का आयोजन, जिसमें महिलाएँ एक साथ बैठकर कथा सुनती हैं, गीत गाती हैं, सामाजिक जुड़ाव का एक सुंदर अवसर बन जाता है। यह वह समय होता है जब घर की बहुएँ, बेटियाँ, माँएँ एक साथ बैठती हैं और त्योहार को साझा करती हैं। यह एक निजी साधना के साथ-साथ सामूहिक सौहार्द का भी प्रतीक है। इस तरह तीज स्त्री जीवन के सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पक्षों का समन्वय है।

नारी सृजनशीलता और सौंदर्य: झूले, गीत, मेहंदी और परिधान
तीज नारी सौंदर्य और उसकी रचनात्मकता के उत्सव की तरह है, जहाँ वह स्वयं को प्रकृति के साथ एकाकार महसूस करती है। हरियाली के इस मौसम में जब झूले पेड़ों पर सजते हैं, तब वे केवल मनोरंजन नहीं होते, वे स्त्री जीवन की लय और स्वतंत्रता के प्रतीक बन जाते हैं। पारंपरिक गीत, जो पीढ़ियों से गाए जाते रहे हैं, उनमें स्त्री की पीड़ा, उसकी आशाएँ, उसका प्रेम और उसका सौंदर्य सहज रूप से झलकता है। मेहंदी की रचना एक कला है, और तीज में महिलाएं इसे पूरे मनोयोग से रचती हैं, हाथों पर नाम, आकृतियाँ, फूल और कभी-कभी भगवान शिव-पार्वती की छवियाँ भी उकेरी जाती हैं। पारंपरिक पोशाकों में जब महिलाएँ सजी होती हैं, चिकनकारी, बनारसी या बंधेज की साड़ियों में, तो पूरा वातावरण किसी लोककथा की तरह लगता है। यह पर्व एक मौका देता है जब महिलाएं स्वयं को संपूर्ण सौंदर्य और रचनात्मकता में प्रकट कर सकती हैं। यह एक दिन होता है जब वे केवल ‘रोल निभाने वाली स्त्री’ नहीं, बल्कि ‘स्वयं’ होती हैं।

क्षेत्रीय विविधताएँ और व्यंजन: भारत और नेपाल में तीज के रंग
तीज की खूबसूरती उसकी विविधता में है। भारत और नेपाल में यह पर्व अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, और हर क्षेत्र इसे अपनी सांस्कृतिक समझ और पारंपरिक रीतियों के अनुसार ढालता है। नेपाल में हरितालिका तीज तीन दिनों तक मनाया जाता है, जहाँ स्त्रियाँ नृत्य करती हैं, गीत गाती हैं और उपवास के साथ देवी की आराधना करती हैं। राजस्थान में तीज माता की शोभायात्रा निकलती है, जिसमें लोकनृत्य और पारंपरिक संगीत शामिल होता है, और सारा शहर रंगीन हो जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में तीज का सामाजिक संदर्भ भी होता है, जहाँ इसे सास-बहू और बहन-बेटियों के रिश्तों को मजबूती देने वाला अवसर माना जाता है। तीज के विशेष पकवान - घेवर, मालपुआ, पूड़ी-हलवा, खीर - न केवल स्वाद को समृद्ध करते हैं, बल्कि पारिवारिक मेलजोल का माध्यम भी बनते हैं। ये व्यंजन पीढ़ियों से घर की स्त्रियाँ स्वयं बनाती आई हैं, और उनमें मां के हाथ की खुशबू आज भी बरकरार है। यही विविधता तीज को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव बनाती है।

आधुनिक तीज: नारी सशक्तिकरण, शहरी उत्सव और टिकाऊ परंपराएँ
समय के साथ तीज का स्वरूप भी बदला है, लेकिन उसका मूल भाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है। आज की महिला तीज को केवल धार्मिक कर्मकांड के रूप में नहीं देखती, बल्कि इसे अपनी पहचान, शक्ति और स्वतंत्र सोच के उत्सव के रूप में मनाती है। कई जगहों पर अब महिला संगठन, क्लब (club) और स्वयंसेवी समूह इस दिन को महिला सशक्तिकरण, स्वावलंबन और शिक्षा जैसे मुद्दों से जोड़ते हैं। वे इस दिन सामूहिक पौधारोपण, महिला स्वास्थ्य जागरूकता, और प्लास्टिक-मुक्त पूजा जैसे अभियानों का आयोजन करती हैं। सोशल मीडिया (social media) ने भी इस पर्व को नया आयाम दिया है, अब महिलाएं अपनी मेहंदी की तस्वीरें, परिधान, और अनुभव साझा करती हैं, जिससे तीज व्यक्तिगत से सामाजिक हो गई है। कई महिलाएँ अब व्रत रखने के साथ-साथ अपने सपनों की साधना भी करती हैं, किसी के लिए यह आत्मनिर्भरता है, तो किसी के लिए यह रचनात्मक अभिव्यक्ति। यह बताता है कि तीज अब सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि परिवर्तन और प्रेरणा का उत्सव बन चुकी है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/xArrI 

https://shorturl.at/BZdPq 

https://shorturl.at/bmA4Y 

https://shorturl.at/2Ayad 

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