बरसात और मच्छरों का ख़तरा: लखनऊवासियों, मलेरिया से बचाव ही सबसे बड़ी जीत

तितलियाँ व कीड़े
21-08-2025 09:28 AM
बरसात और मच्छरों का ख़तरा: लखनऊवासियों, मलेरिया से बचाव ही सबसे बड़ी जीत

लखनऊवासियों, हमारा शहर अपनी तहज़ीब, नफ़ासत और नवाबी अंदाज़ के लिए जितना मशहूर है, उतना ही बरसात के मौसम में एक बड़ी चुनौती का सामना भी करता है। बारिश की बूँदें भले ही ठंडक और राहत लेकर आती हैं, लेकिन यही मौसम हर साल हमारे स्वास्थ्य के लिए चिंता का सबब बन जाता है। जगह-जगह पानी का जम जाना, नालों का रुक जाना, गली-मोहल्लों में गंदगी और तालाबों का ठहराव, ये सब मच्छरों के पनपने के लिए मानो खुला न्योता होते हैं। नतीजा यह होता है कि बरसात शुरू होते ही मलेरिया (malaria), डेंगू (dengue) और दूसरी मच्छर जनित बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ने लगता है। इस मौसम में अस्पतालों में बुखार, कमजोरी और मलेरिया जैसे मामलों की भरमार हो जाती है। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोग शुरुआत में इन बीमारियों को साधारण बुखार समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि एक मामूली लापरवाही बड़ी समस्या का रूप ले सकती है। मलेरिया की शुरुआत भले ही एक छोटे से मच्छर के काटने से होती है, लेकिन शरीर के भीतर यह धीरे-धीरे खून और अंगों को प्रभावित कर देता है।
इस लेख में हम बरसात और मलेरिया के गहरे संबंध को समझेंगे। सबसे पहले जानेंगे कि कैसे बरसात के मौसम में जगह-जगह पानी के ठहराव से मलेरिया का खतरा बढ़ जाता है। इसके बाद मलेरिया के संक्रमण का पूरा चक्र और प्लास्मोडियम (Plasmodium) नामक परजीवी के फैलने की प्रक्रिया को समझेंगे। हम मलेरिया के शुरुआती और गंभीर लक्षणों पर बात करेंगे ताकि समय रहते इसकी पहचान हो सके। चौथे भाग में मलेरिया के आधुनिक इलाज, बचाव के उपाय और पारंपरिक तरीकों की जानकारी देंगे। और अंत में यह भी जानेंगे कि आखिर क्यों कुछ लोगों को मच्छर बाकी लोगों की तुलना में ज्यादा काटते हैं, इसके पीछे कौन-कौन से वैज्ञानिक कारण जिम्मेदार हैं।

बरसात और मलेरिया का संबंध: कारण और खतरे
बरसात का मौसम अपने साथ राहत और ठंडक लाता है, लेकिन इसके साथ ही बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। जब लगातार बारिश होती है, तो जगह-जगह पानी जमा हो जाता है। गली-मोहल्लों की नालियों, तालाबों और खाली पड़ी ज़मीन पर यह पानी कई दिनों तक रुका रहता है। गंदे और रुके हुए पानी में मच्छरों के लार्वा तेजी से पनपते हैं। ऐसे माहौल में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी खतरनाक बीमारियों के फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। खासकर बरसात के समय जुलाई से अक्टूबर तक यह बीमारी सबसे ज्यादा फैलती है। निचले इलाकों और नदी किनारे का पानी जल्दी सूख नहीं पाता, जिससे मच्छरों के लिए यह जगह प्रजनन केंद्र बन जाती है। साफ-सफाई की कमी और पानी के निकास की सही व्यवस्था न होना इस समस्या को और गंभीर बना देते हैं। यह समस्या सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लेती है। इसीलिए कहा जाता है कि बरसात की असली चुनौती मौसम से नहीं, बल्कि इस मौसम में फैलने वाली बीमारियों से होती है।

मलेरिया का संक्रमण चक्र और प्लास्मोडियम परजीवी
मलेरिया एक साधारण बुखार नहीं बल्कि मादा एनोफिलीस (Anopheles) मच्छर के काटने से फैलने वाली गंभीर बीमारी है। इस बीमारी के पीछे असली कारण है प्लास्मोडियम नामक परजीवी, जो इस मच्छर की लार में मौजूद होता है। जब मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो यह परजीवी खून के साथ शरीर में प्रवेश करता है। सबसे पहले यह लिवर तक पहुंचता है और वहां तेजी से अपनी संख्या बढ़ाता है। फिर यह परजीवी खून में वापस आकर लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करना शुरू कर देता है। इस प्रक्रिया के चलते शरीर में कमजोरी, थकावट और बुखार होने लगता है। इनमें से प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum)  सबसे खतरनाक माना जाता है, जो तेजी से गंभीर मलेरिया में बदल सकता है। इसलिए समय पर इसका पता लगाना और इलाज करना बेहद जरूरी है। एक छोटा सा मच्छर अपने साथ कितनी बड़ी बीमारी लेकर आता है, यह जानकर हम समझ सकते हैं कि क्यों मच्छरों से बचाव करना जीवन के लिए जरूरी है।

मलेरिया के लक्षण: प्रारंभिक और गंभीर अवस्थाएँ
मलेरिया की पहचान शुरुआती लक्षणों को समझकर ही की जा सकती है। जब किसी को अचानक ठंड लगकर तेज बुखार आता है, सिर दर्द होने लगता है, उल्टी होती है, शरीर टूटने लगता है और बहुत थकान महसूस होती है, तो यह शुरुआती संकेत हो सकते हैं। ये लक्षण अक्सर 6 से 10 घंटे तक रहते हैं और फिर कुछ समय बाद दोबारा लौट आते हैं। अगर इस समय ध्यान न दिया जाए, तो बीमारी गंभीर रूप ले सकती है। गंभीर मलेरिया में मरीज़ को बेहोशी, दौरे पड़ना, सांस लेने में कठिनाई, खून की कमी, पीलिया और अंगों पर असर जैसी गंभीर समस्याएँ हो सकती हैं। इस स्थिति में देरी करना जानलेवा हो सकता है। इसलिए जैसे ही बुखार के साथ ठंड लगने के लक्षण आएं, तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। मलेरिया को हल्के में लेना बहुत बड़ी गलती हो सकती है।

मलेरिया का उपचार और रोकथाम के आधुनिक तथा पारंपरिक तरीके
मलेरिया का इलाज सही समय पर हो तो यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है। डॉक्टर इसके लिए विशेष दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें आर्टेमिसिनिन-आधारित (Artemisinin-based) संयोजन चिकित्सा (ACT) सबसे प्रभावी है। यह दवा प्लास्मोडियम परजीवी को खत्म करने का काम करती है और इसे पौधे आर्टेमिसिया एनुआ से प्राप्त किया जाता है। इलाज के दौरान मरीज़ को पूरी तरह आराम और निगरानी में रखा जाता है। इसके साथ-साथ कुछ घरेलू और आयुर्वेदिक उपाय भी शरीर को मजबूत बनाने में मदद करते हैं, जैसे नीम, आंवला और कुटकी का प्रयोग। रोकथाम के लिए मच्छरदानी का इस्तेमाल करना, घर के आसपास पानी जमा न होने देना, खिड़कियों पर जाली लगाना और मच्छर भगाने वाली क्रीम (cream) का उपयोग करना जरूरी है। हर व्यक्ति को अपनी और अपने आसपास की सफाई का ध्यान रखना चाहिए। याद रखें, मलेरिया से बचाव इलाज से ज्यादा आसान है।

क्यों कुछ लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं: वैज्ञानिक कारण
आपने कभी गौर किया होगा कि मच्छर कुछ लोगों को ज्यादा काटते हैं और कुछ को कम। लोग अक्सर कहते हैं कि ऐसा खून मीठा होने की वजह से होता है, लेकिन असली कारण विज्ञान में छिपा है। मच्छरों के पास बहुत संवेदनशील एंटीना (antenna) होते हैं, जो 100 फीट दूर से ही इंसान की गंध को पहचान सकते हैं। उन्हें सबसे ज्यादा आकर्षित करती है कार्बन डाईऑक्साइड (carbon dioxide) की गंध। जो लोग ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते हैं, उन्हें मच्छर जल्दी निशाना बनाते हैं। गर्भवती महिलाएं और व्यायाम करने वाले लोग इसलिए ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, O ब्लड ग्रुप (blood group) वाले लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं। पसीने की गंध, लैक्टिक एसिड (lactic acid) और इत्र जैसी तेज़ सुगंधें भी मच्छरों को अपनी ओर खींच लेती हैं। इस जानकारी का फायदा उठाकर हम अपने बचाव की योजना बना सकते हैं, साफ-सफाई रखें, तेज सुगंध से बचें और कीटनाशक दवाओं का उपयोग करें। जितना हम इन कारणों को समझेंगे, उतना ही मच्छरों से बचना आसान होगा।

संदर्भ-
https://shorturl.at/3Y9cU 
https://shorturl.at/v9NVy 

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