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लखनऊवासियो, आपका शहर सिर्फ तहज़ीब और मेहमाननवाज़ी के लिए ही नहीं, बल्कि अपने नवाबी खान-पान और लज़ीज़ अवधी व्यंजनों के लिए भी मशहूर है। यहां का हर पकवान सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति की कहानी कहता है। गलियों में महकते गलौटी कबाब से लेकर, पुराने नुक्कड़ों पर मिलती शर्मा जी की चाय और इदरीस की बिरयानी तक, लखनऊ की रसोई का हर जायका एक अद्वितीय अनुभव है। यह खान-पान नवाबों के दौर से चला आ रहा है, जहां शाही रसोईयों ने फ़ारसी, मुगलई और स्थानीय स्वाद को मिलाकर एक ऐसा पाक-कलात्मक खज़ाना बनाया, जिसे आज दुनिया भर में सराहा जाता है।
इस लेख में हम लखनऊ के खान-पान के सुनहरे सफ़र को पांच रोचक हिस्सों में समझेंगे। पहले, हम जानेंगे लखनऊ के नवाबी खान-पान और अवधी व्यंजनों की ऐतिहासिक जड़ों के बारे में। फिर, हम सुनेंगे गलौटी कबाब और टुंडे की दिलचस्प कहानी, जिसने लखनऊ को कबाब की राजधानी बना दिया। इसके बाद, हम आपको बताएंगे शहर के अन्य लोकप्रिय कबाब और उनकी खासियतें। चौथे हिस्से में, हम घूमेंगे चाय, चाट और बिरयानी के ठिकानों पर, जो रोज़मर्रा में भी लखनऊ का स्वाद बनाए रखते हैं। और अंत में, हम जानेंगे अवधी व मुगलई खाने के बीच का फ़र्क और कैसे इसका स्वाद आज भी दिलों पर राज करता है।
लखनऊ के नवाबी खान-पान की ऐतिहासिक जड़ें
लखनऊ का खान-पान महज़ रोज़मर्रा का भोजन नहीं, बल्कि यह एक जीवित धरोहर है, जिसमें इतिहास, संस्कृति और कला की गहरी छाप है। नवाबों के समय में लखनऊ सिर्फ सत्ता और शायरी का केंद्र नहीं था, बल्कि यह बेहतरीन पाक-कला का भी गढ़ था। फ़ारसी, तुर्की और मध्य एशियाई व्यंजनों के साथ-साथ स्थानीय अवधी स्वाद का संगम यहां की रसोई में एक नई पहचान बना रहा था। उस दौर में भोजन को केवल भूख मिटाने का साधन नहीं, बल्कि एक ऐसी कला के रूप में देखा जाता था, जिसमें स्वाद, सुगंध, रंग और परोसने का अंदाज़, सबका अपना महत्व था। नवाबी रसोइयों, जिन्हें ‘रकाबदार’ कहा जाता था, का काम केवल पकाना नहीं, बल्कि हर निवाले को शाही अनुभव में बदलना था। दम पुख्त जैसी तकनीक, जिसमें घंटों तक धीमी आंच पर व्यंजन पकाए जाते थे, ने लखनऊ के भोजन को वह नफ़ासत दी, जो आज भी दुनिया भर के खाने के शौकीनों को अपनी ओर खींचती है।
गलौटी कबाब और टुंडे की अनोखी कहानी
लखनऊ का नाम लेते ही गलौटी कबाब की तस्वीर आँखों के सामने आना स्वाभाविक है। इसकी कहानी स्वाद जितनी ही दिलचस्प है। नवाब आसफ़-उद-दौला को उम्र के अंतिम दिनों में दांतों की समस्या हो गई थी, लेकिन मांसाहार का प्रेम इतना गहरा था कि उन्होंने रकाबदारों को चुनौती दी कि ऐसा कबाब बनाया जाए जिसे बिना चबाए खाया जा सके। नतीजा था गलौटी कबाब, मुलायम, रसदार, और मसालों के जादुई मेल से भरपूर। इसमें 150 से अधिक मसालों का इस्तेमाल होता है, जिनकी खुशबू दूर से ही भूख जगा देती है। समय के साथ यह कबाब टुंडे कबाबी की पहचान बन गया। चौक और हज़रतगंज में इसकी दुकानें आज भी हर राहगीर को रुकने पर मजबूर कर देती हैं। एक बार मुंह में जाते ही यह कबाब जैसे पिघलकर आपको नवाबी दौर की सैर करवा देता है।
लखनऊ के अन्य लोकप्रिय कबाब और उनकी खासियतें
लखनऊ की पाक-कला में कबाबों का साम्राज्य बहुत बड़ा है और गलौटी केवल इसकी शुरुआत है। काकोरी कबाब, जो काकोरी कस्बे से आया है, अपनी नर्मी और हल्के मसालों के लिए मशहूर है, मानो हर बाइट आपके स्वादेंद्रियों को सहलाती हो। शामी कबाब बाहर से कुरकुरा और भीतर से मुलायम, एक ऐसा संतुलन है, जो हर बार खाने वाले को चौंका देता है। बोटी कबाब और सीक कबाब शादियों, दावतों और त्योहारों की रौनक बढ़ाने वाले व्यंजन हैं। चौक, अमीनाबाद और हुसैनगंज की गलियों में कबाबों की महक हर समय हवा में घुली रहती है। दिलचस्प बात यह है कि हर दुकान का अपना ‘गुप्त मसाला’ (secret spice) होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी केवल परिवार के भीतर ही सुरक्षित रहता है, जिससे हर जगह का स्वाद थोड़ा अलग और खास हो जाता है।

चाय, चाट, बिरयानी और अवधी-मुगलई का फ़र्क
लखनऊ की शाम का मज़ा तब तक अधूरा है, जब तक आप शर्मा जी की दुकान पर मलाईदार चाय और बन मस्का का स्वाद न लें। यह सिर्फ चाय नहीं, बल्कि एक ऐसी आदत है, जो पीढ़ियों से शहर के दिल में बसी हुई है। बिरयानी के शौकीनों के लिए चौक की बासमती बिरयानी अपने सुगंधित चावल और नर्म मांस के साथ एक लाजवाब अनुभव है, जबकि टुंडे के पराठे के साथ कबाब का मेल खाने वालों को हमेशा याद रहता है। लखनऊ की चाट, खासतौर पर टमाटर चाट और मटर चाट, खट्टे-मीठे स्वाद का ऐसा संगम है, जो ज़ुबान पर जाते ही दिल जीत लेता है। अवधी और मुगलई खाने में फर्क बेहद दिलचस्प है, मुगलई खाना भारी मसालों और गाढ़ी ग्रेवी (gravy) के लिए जाना जाता है, जबकि अवधी खाना धीमी आंच पर पकने से हल्का, सुगंधित और नफ़ासत भरा होता है। यही वजह है कि लखनऊ का खान-पान केवल भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि हर कौर में इतिहास, संस्कृति और मोहब्बत का स्वाद समेटे होता है।
संदर्भ-