समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1054
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
| Post Viewership from Post Date to 08- Oct-2025 (31st) Day | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1701 | 92 | 10 | 1803 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
गणेश चतुर्थी भारत के सबसे लोकप्रिय और हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चाहे कोई भी जाति, धर्म या समुदाय हो, भगवान गणेश सभी के आराध्य माने जाते हैं। विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में प्रसिद्ध गणेश जी को नए आरंभ और सफलता का प्रतीक माना जाता है। यह दस दिवसीय उत्सव न केवल गणेश जी के जन्मोत्सव का प्रतीक है, बल्कि समाज में भाईचारा, सद्भाव और एकजुटता का संदेश भी देता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इन दस दिनों में गणेश जी धरती पर आकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, और इसी भाव से उन्हें घर में अथवा पंडालों में विशेष अतिथि की तरह आदर-सत्कार के साथ स्थापित किया जाता है।
पहले वीडियो में हम गणपति बप्पा को श्रद्धांजलि और गणेश चतुर्थी का समापन देखेंगे।
नीचे दिए गए वीडियो में हम मुंबई के प्रसिद्ध गणपति दर्शन देखेंगे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और महाराष्ट्र में महत्व
गणेश चतुर्थी प्राचीन काल से भारत के विभिन्न राज्यों में मनाई जाती रही है, लेकिन महाराष्ट्र में इसकी भव्यता अद्वितीय है। मराठा शासनकाल में यह पर्व यहां प्रचलित हुआ, किंतु इसे जन-आंदोलन और जन-उत्सव का रूप देने का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है। 1893 में तिलक ने इसे पारिवारिक उत्सव से एक सार्वजनिक पर्व में परिवर्तित किया, ताकि ब्रिटिश शासन के दमन के बीच लोगों में एकता और राष्ट्रीय चेतना जागृत हो सके। अंग्रेज़ धार्मिक आयोजनों में हस्तक्षेप नहीं करते थे, इसलिए यह पर्व लोगों को एक मंच पर लाने का साधन बन गया।
अनुष्ठान और रीति-रिवाज़
गणेश चतुर्थी की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं, जब कारीगर मिट्टी से विभिन्न आकार-प्रकार की गणेश प्रतिमाएं बनाते हैं। पहले दिन गणपति जी की प्रतिमा को घर या पंडाल में स्थापित कर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ की जाती है, जिसमें मंत्रोच्चारण, पूजा-अर्चना और भोग अर्पण किया जाता है। दस दिनों तक प्रतिदिन पूजा और आरती होती है। अंतिम दिन, जिसे ‘अनंत चतुर्दशी’ कहते हैं, भव्य शोभायात्राओं के साथ गणपति विसर्जन किया जाता है। यह विसर्जन सृष्टि के चक्र और अनित्यत्व का प्रतीक है, जो बताता है कि सब कुछ अंततः निराकार में विलीन हो जाता है।
भोग और प्रसाद की परंपरा
गणेश चतुर्थी का एक विशेष आकर्षण इसका समृद्ध प्रसाद है। गणपति जी को मोदक, लड्डू और अन्य मिठाइयाँ अति प्रिय मानी जाती हैं। मोदक को तो उनका सर्वप्रिय भोग माना जाता है, और उन्हें ‘मोदकप्रिय’ भी कहा गया है। परंपरागत मोदक चावल के आटे और गुड़ से बनते हैं, किंतु आजकल चॉकलेट (chocolate), ड्राई फ्रूट (dry fruit) और तले हुए मोदक भी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा मोतीचूर लड्डू, नारियल लड्डू, तिल के लड्डू, सत्तोरी, नारियल भात, श्रीखंड, बनाना (केले का) शीरा और पुरण पोली जैसे व्यंजन भी भोग में शामिल किए जाते हैं। इनमें से केले का भोग विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह गणपति जी का प्रिय फल माना जाता है।
नीचे दिए गए वीडियो में हम मुंबई का प्रतीक्षित गणेश उत्सव देखेंगे।
संदर्भ-
https://shorturl.at/FeDWY
https://shorturl.at/8iMPB
https://short-link.me/16F85
https://short-link.me/1b4P5
https://short-link.me/1b4Pa