लखनऊ के बाग़ों की शोभा, बूगनविलिया की बेलों में छिपा रंगीन जादू

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लखनऊ के बाग़ों की शोभा, बूगनविलिया की बेलों में छिपा रंगीन जादू

लखनऊ अपनी ऐतिहासिक इमारतों, अदब-ओ-तहज़ीब और सांस्कृतिक धरोहर के लिए मशहूर है। लेकिन इस शहर की पहचान केवल उसकी हवेलियों, इमामबाड़ों और महलों तक सीमित नहीं है। यहाँ की गलियाँ, मोहल्ले और बाग-बगीचे भी इसकी खूबसूरती और रौनक का अहम हिस्सा हैं। इन्हीं बाग-बगीचों की शोभा बढ़ाने वाला और हर किसी की नज़र को अपनी ओर खींच लेने वाला पौधा है बूगनविलिया (Bougainvillea)। बूगनविलिया एक ऐसी बेल है जो लखनऊ के मौसम में न सिर्फ आसानी से फलती-फूलती है बल्कि शहर के घरों, दीवारों और बाड़ों को भी जीवंत और रंगीन बना देती है। जब यह बेल फैलकर किसी दीवार या गेट को ढक लेती है और उस पर गुलाबी, बैंगनी, नारंगी, लाल या सफेद रंग के अनगिनत फूल लहराने लगते हैं, तो वह जगह किसी चित्र की तरह मनमोहक दिखने लगती है। इसकी यही खूबी है कि यह साधारण-सी जगह को भी खास और आकर्षक बना देती है। आज लखनऊ के लगभग हर मोहल्ले में आप बूगनविलिया की झलक देख सकते हैं - कहीं यह घर की छत से झूलती हुई नज़र आती है, कहीं यह दीवार पर चढ़ी हुई रंगों की चादर बन जाती है, तो कहीं यह किसी बाड़ को प्राकृतिक आड़ की तरह ढक लेती है। इस पौधे की मौजूदगी शहर की फिज़ाओं में न केवल खूबसूरती भरती है, बल्कि इसमें रहने वालों के दिलों को भी खुशगवार एहसास से भर देती है।
आज हम इस लेख में बूगनविलिया पौधे के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे। हम जानेंगे कि बूगनविलिया का परिचय क्या है और इसकी खास विशेषताएँ कौन-सी हैं, जिनकी वजह से यह पौधा इतना लोकप्रिय है। इसके बाद हम विस्तार से देखेंगे कि इसके फूल और पत्तियाँ रंग क्यों बदलते हैं और इस अद्भुत बदलाव के पीछे क्या कारण छिपे हैं। आगे हम समझेंगे कि बगीचों और घरों की सजावट में बूगनविलिया का उपयोग कैसे किया जाता है और यह साधारण जगह को कैसे रंगीन बना देता है। इसके साथ ही हम जानेंगे कि बूगनविलिया की रोपाई और देखभाल कैसे की जाए ताकि यह लंबे समय तक खूबसूरती से पनप सके।

बूगनविलिया का परिचय और विशेषताएँ
बूगनविलिया एक उष्णकटिबंधीय बारहमासी झाड़ीदार बेल है, जिसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका से हुई थी, लेकिन लखनऊ जैसी जलवायु में यह आसानी से पनप जाती है। यह पौधा 20 फ़ीट या उससे अधिक लंबाई तक बढ़ सकता है और अक्सर दीवारों, बाड़ों और जालियों को ढककर उन्हें आकर्षक बना देता है। इसके तनों पर काँटे होते हैं, जो इसे सहारा देते हैं और यह अन्य संरचनाओं पर चढ़कर फैल जाता है। इसकी दो प्रमुख किस्में मानी जाती हैं - ग्लबरा (glabra) और स्पेक्टाबिलिस (spectabilis)। ग्लबरा की पुष्प-ट्यूब पंचकोणीय और छोटे खंडों वाली होती है, जबकि स्पेक्टाबिलिस में पुष्प-ट्यूब गोल और लंबे खंडों वाली होती है। इनकी विशेषता यही है कि कम देखभाल में भी ये पौधे सालों तक खूबसूरती बिखेरते रहते हैं।

फूलों और पत्तियों के रंग बदलने के कारण
बूगनविलिया की अनोखी पहचान इसके बदलते रंग हैं। जो फूल हमें बड़े और चमकीले दिखाई देते हैं, वे वास्तव में पंखुड़ियाँ नहीं बल्कि पत्तीनुमा खंड (bract) होते हैं। इनके भीतर छोटे-छोटे असली फूल छिपे रहते हैं। रंग बदलने के पीछे कई कारण होते हैं। एक कारण है आनुवंशिकी और क्रॉस-ब्रीडिंग (cross-breeding)। नर्सरी (Nursery) में तैयार की गई किस्में अक्सर आनुवंशिक विविधताओं के कारण एक ही पौधे पर अलग-अलग रंगों के फूल दिखा सकती हैं। इसके अलावा, पर्यावरणीय स्थितियाँ - जैसे मिट्टी की क्षारीयता, पानी की मात्रा, तापमान और धूप की तीव्रता - भी फूलों के रंग को प्रभावित करती हैं। यही वजह है कि लखनऊ जैसे शहर में कई बार गुलाबी फूल लाल हो जाते हैं, या फिर एक ही पौधे पर एक साथ अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं।

बगीचे और घर में बूगनविलिया के उपयोग
लखनऊ के बागवानी प्रेमियों के बीच बूगनविलिया बेहद लोकप्रिय है, क्योंकि यह पौधा घर और बगीचे को सजाने में कई तरह से काम आता है। दीवारों और बाड़ों की सजावट में इसका कोई जोड़ नहीं, क्योंकि यह तेजी से फैलकर उन्हें हरे और रंग-बिरंगे आवरण में बदल देता है। लगातार छँटाई करके इसे प्राकृतिक गोपनीयता स्क्रीन (screen) की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो सुंदर और उपयोगी दोनों होती है। इसके अलावा, जब इसकी टहनियाँ फूलों से भर जाती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे रंग-बिरंगे फूलों की चादर बिछ गई हो। यही कारण है कि बूगनविलिया न केवल बगीचों बल्कि घर की छतों और आँगनों को भी जन्नत जैसी खूबसूरती दे देता है।

बूगनविलिया का रोपण और देखभाल के सुझाव
बूगनविलिया को सजावटी पौधा माना जाता है, लेकिन इसकी सही देखभाल बेहद ज़रूरी है। इसे प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे की सीधी धूप चाहिए। मिट्टी हमेशा अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए, क्योंकि भारी मिट्टी में इसकी जड़ें जल्दी सड़ सकती हैं। शुरुआती दिनों में हर हफ्ते पानी देना ज़रूरी होता है, लेकिन पौधा परिपक्व हो जाने के बाद पानी बहुत कम मात्रा में देना चाहिए। छँटाई का सबसे अच्छा समय सर्दियों का अंत और हर फूल चक्र के बाद होता है, जिससे नई टहनियाँ निकलती हैं और ज्यादा फूल खिलते हैं। लखनऊ की ठंडी रातों में यदि तापमान बहुत नीचे चला जाए, तो पौधे को ढककर बचाना आवश्यक होता है, क्योंकि यह ज्यादा ठंड सहन नहीं कर पाता।

संदर्भ- 
https://shorturl.at/9xAHY 



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