लखनऊ में 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' योजना: प्रवासी श्रमिकों के लिए नई जीवनरेखा

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
26-09-2025 09:16 AM
लखनऊ में 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' योजना: प्रवासी श्रमिकों के लिए नई जीवनरेखा

लखनऊवासियो, क्या आपने कभी सोचा है कि घर से दूर किसी अनजान राज्य में राशन की ज़रूरत पड़ जाए तो क्या होगा? पहले यह बड़ी चुनौती होती थी, क्योंकि राशन कार्ड (Ration Card) केवल उसी राज्य या ज़िले की उचित मूल्य की दुकान पर मान्य होता था, जहाँ से वह जारी किया गया हो। प्रवासी श्रमिकों और दूर रहने वाले लोगों को इस कारण कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। अब "एक राष्ट्र एक राशन कार्ड" योजना ने इस समस्या का समाधान कर दिया है। इसके तहत कोई भी लाभार्थी पूरे देश में कहीं भी अपने राशन कार्ड का उपयोग कर सकता है। चाहे आप किसी अन्य राज्य से लखनऊ जैसे महानगर में रहें, अब राशन की चिंता नहीं करनी पड़ती। परिवार के अन्य सदस्य भी अपने राज्य में उसी कार्ड से अनाज प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा प्रवासी श्रमिकों और आम जनता दोनों के लिए अत्यंत उपयोगी है, खाद्य सुरक्षा को नया स्वरूप देती है और पारदर्शिता बढ़ाकर भ्रष्टाचार को कम करती है। यही कारण है कि "एक राष्ट्र एक राशन कार्ड" योजना को भारत की सामाजिक सुरक्षा और खाद्य वितरण प्रणाली की बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है।
इस लेख में हम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की मूल संरचना के बारे में जानेंगे। इसके साथ ही स्मार्ट पीडीएस (Smart PDS) और इसकी आवश्यकता को समझेंगे। आगे देखेंगे कि डिजिटलीकरण (digitization) और सरकारी पहलें इस व्यवस्था को कैसे मज़बूत बना रही हैं। साथ ही विस्तार से चर्चा करेंगे कि 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' योजना कैसे काम करती है और इसकी विशेषताएँ क्या हैं। अंत में जानेंगे कि यह योजना प्रवासी श्रमिकों और आम जनता के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की मूल संरचना
सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत में गरीब और ज़रूरतमंद परिवारों की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ कही जाती है। इस व्यवस्था के अंतर्गत गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी का तेल जैसी आवश्यक वस्तुएँ उचित मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops) से वितरित की जाती हैं। इस प्रणाली में केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से बाँटी गई हैं। केंद्र सरकार अनाज की खरीद, उसका भंडारण और परिवहन की पूरी ज़िम्मेदारी संभालती है, जबकि राज्य सरकारें लाभार्थियों की पहचान करती हैं, राशन कार्ड जारी करती हैं और वितरण व्यवस्था की देखरेख करती हैं। आज पूरे भारत में लगभग 5.43 लाख राशन की दुकानें इस नेटवर्क (Network) से जुड़ी हुई हैं, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े खाद्य वितरण प्रणालियों में से एक बनाती हैं। लखनऊ जैसे बड़े शहर में हज़ारों परिवार पूरी तरह इस प्रणाली पर निर्भर रहते हैं। हर महीने लाखों क्विंटल अनाज इस व्यवस्था के ज़रिए वितरित होता है, जिससे गरीब परिवारों की रसोई चलती है। यही नहीं, यह प्रणाली कुपोषण जैसी गंभीर समस्याओं से बचाने में भी मदद करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी ज़रूरतमंद व्यक्ति भूखा न सोए।

स्मार्ट पीडीएस और इसकी आवश्यकता
परंपरागत पीडीएस.व्यवस्था में गड़बड़ियों और अनियमितताओं की कोई कमी नहीं थी। कई बार ऐसा होता था कि लाभार्थियों तक अनाज समय पर नहीं पहुँचता था, और कई जगहों पर कालाबाज़ारी व फर्जीवाड़े की समस्या सामने आती थी। नतीजतन, बहुत से ज़रूरतमंद परिवार अपने अधिकार का राशन पाने से वंचित रह जाते थे। इन चुनौतियों से निपटने और व्यवस्था को अधिक पारदर्शी व प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सरकार ने स्मार्ट सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की। इसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी और डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics) का उपयोग किया जा रहा है, ताकि वितरण व्यवस्था में सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित हो सके। स्मार्ट कार्ड, ई-पीओएस मशीनें (e-POS machines) और आधार प्रमाणीकरण की मदद से यह गारंटी दी जा रही है कि सही लाभार्थी तक सही समय पर और उचित मात्रा में अनाज पहुँचे। लखनऊ में भी अब कई उचित मूल्य की दुकानों पर बायोमेट्रिक सिस्टम (biometric system) लगाए गए हैं, जिससे लाभार्थियों की पहचान पुख़्ता हो जाती है और किसी भी प्रकार की हेराफेरी की गुंजाइश नहीं रहती। इस बदलाव ने पूरी प्रणाली को अधिक मज़बूत, भरोसेमंद और लाभार्थियों के लिए सुविधाजनक बना दिया है।

डिजिटलीकरण और सरकारी पहलें
आज पीडीएस व्यवस्था को आधुनिक स्वरूप देने के लिए डिजिटलीकरण पर विशेष बल दिया जा रहा है। वर्तमान में लगभग 93% वितरण आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे धोखाधड़ी और फर्जी कार्डों पर अंकुश लगा है। साथ ही, राशन कार्ड का 100% डिजिटलीकरण किया जा चुका है, जिसके कारण लाभार्थियों का पूरा डेटा अब ऑनलाइन (online) उपलब्ध है और प्रबंधन कहीं अधिक सरल हो गया है। आपूर्ति श्रृंखला का कम्प्यूटरीकरण होने से अनाज की हेराफेरी लगभग समाप्त हो चुकी है और वितरण की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी व तेज़ हो गई है। इसके अलावा, आईएम-पीडीएस (IM-PDS - Integrated Management of Public Distribution System) योजना के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत डेटा संग्रहालय और बुनियादी ढाँचा तैयार किया गया है। इसका सीधा असर लखनऊ जैसे शहरों में दिखाई देता है, जहाँ अब लाभार्थियों को राशन वितरण के लिए लंबी कतारों, अव्यवस्था या अतिरिक्त कागज़ी कार्यवाही का सामना नहीं करना पड़ता। इस प्रकार डिजिटलीकरण ने न केवल प्रणाली को पारदर्शी बनाया है, बल्कि लाभार्थियों में सरकार के प्रति विश्वास भी मज़बूत किया है।

'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' योजना और इसकी विशेषताएँ
"एक राष्ट्र एक राशन कार्ड" योजना पीडीएस प्रणाली में सबसे बड़ा और क्रांतिकारी बदलाव साबित हुई है। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब लाभार्थी अपने राशन कार्ड का उपयोग पूरे देश में कहीं भी कर सकते हैं। पहले राशन केवल उसी राज्य या ज़िले में उपलब्ध होता था, जहाँ कार्ड बना होता था, लेकिन अब प्रवासी श्रमिक भी आसानी से किसी भी स्थान पर अपना राशन ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई प्रवासी श्रमिक लखनऊ में काम करता है और उसका परिवार बिहार या झारखंड में रहता है, तो दोनों अपने-अपने स्थान पर एक ही राशन कार्ड से अनाज प्राप्त कर सकते हैं। यह सुविधा पूरी तरह तकनीकी-आधारित है, जिसमें आधार नंबर और ई-पीओएस मशीनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आँकड़ों के अनुसार, आज इस योजना से 77 करोड़ से अधिक लोग जुड़ चुके हैं और हर महीने लगभग 3.5 करोड़ लेनदेन इसके अंतर्गत सफलतापूर्वक किए जा रहे हैं। इस योजना ने न केवल खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ किया है बल्कि पीडीएस को एकीकृत रूप देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रवासी श्रमिकों और आम जनता के लिए महत्व
भारत में लाखों प्रवासी श्रमिक रोज़गार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य जाते हैं। पहले उन्हें अपने राशन कार्ड का लाभ नहीं मिल पाता था और उनके परिवार को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। लेकिन "एक राष्ट्र एक राशन कार्ड" योजना ने उनके लिए यह समस्या समाप्त कर दी है। अब वे जिस भी राज्य में रहते हैं, वहीं पर राशन प्राप्त कर सकते हैं। इससे न केवल उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है बल्कि उनके परिवार को भी अपने गृह राज्य में अनाज की कमी का सामना नहीं करना पड़ता। लखनऊ जैसे महानगर में काम करने वाले हज़ारों मज़दूर और उनके परिवार इस योजना का प्रत्यक्ष लाभ उठा रहे हैं। इसके अलावा, इस प्रणाली ने पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाया है, जिससे भ्रष्टाचार कम हुआ है और लाभार्थियों तक अनाज सही समय पर पहुँचने लगा है। भूखमरी जैसी समस्याओं को समाप्त करने में यह योजना एक मज़बूत कदम साबित हुई है। इस प्रकार यह न सिर्फ़ प्रवासी श्रमिकों बल्कि आम जनता के लिए भी खाद्य सुरक्षा का भरोसेमंद साधन बन गई है।

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