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भारत में खेती किसानों की मेहनत, उम्मीद और जीवन का आधार है। लेकिन आज की बदलती परिस्थितियों में खेती कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है - मिट्टी की लगातार घटती उर्वरता, रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों की बढ़ती लागत, फसल रोगों का बढ़ता खतरा, और जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की अनिश्चितता। इसी कठिन समय में प्रकृति ने किसानों को एक अनमोल साथी दिया है - सूक्ष्मजीव (Microbes)। ये नन्हें लेकिन अत्यंत शक्तिशाली जीव मिट्टी के भीतर अदृश्य रूप से निरंतर काम करते हैं, पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं, मिट्टी की संरचना और उर्वरता को बढ़ाते हैं, और रासायनिक खाद व कीटनाशकों पर निर्भरता कम करते हैं। सूक्ष्मजीव खेती को अधिक टिकाऊ, सुरक्षित और पर्यावरण - अनुकूल बनाते हैं। इसीलिए आज कहा जाता है कि सूक्ष्मजीव वास्तव में किसानों के सच्चे मित्र हैं - जो धरती को जीवंत और उपजाऊ बनाए रखते हैं।
इस लेख में हम समझेंगे सबसे पहले कि, हम कृषि और सूक्ष्मजीवों के संबंध पर नज़र डालेंगे और जानेंगे कि ये खेती को कैसे नई दिशा देते हैं। इसके बाद, हम राइज़ोबियम बैक्टीरिया (Rhizobium bacteria) द्वारा नाइट्रोजन (Nitrogen) स्थिरीकरण की प्रक्रिया को सरल शब्दों में समझेंगे। फिर, हम राइज़ोबियम आधारित जैव - उर्वरकों, पीजीपीआर-एएमएफ (PGPR-AMF) और अन्य सूक्ष्मजीवों की उपयोगिता और लाभों का अध्ययन करेंगे। अंत में, हम मिट्टी के स्वास्थ्य, खाद निर्माण और टिकाऊ कृषि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका पर विचार करेंगे।

किसानों और सूक्ष्मजीवों का संबंध:
भारत में कृषि केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि किसान के परिश्रम, जीवन और भविष्य की आशाओं का आधार है। मगर हाल के वर्षों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की उर्वरता को कम कर दिया है और उत्पादन लागत बढ़ा दी है। मौसम की अनिश्चितता और भूमि की थकान ने खेती को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। ऐसे समय में प्रकृति ने किसानों को एक अदृश्य लेकिन अत्यंत शक्तिशाली साथी दिया - सूक्ष्मजीव। ये छोटे जीव मिट्टी की गहराई में लगातार काम करते हैं, पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं, मिट्टी की संरचना को सुधारते हैं, और रासायनिक खाद व दवाइयों पर निर्भरता कम करते हैं।
राइज़ोबियम बैक्टीरिया और नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया
राइज़ोबियम एक महत्वपूर्ण ग्राम-नेगेटिव (Gram-Negative) जीवाणु है, जो मिट्टी में पाया जाता है और विशेष रूप से फलीदार पौधों की जड़ों पर छोटे-छोटे रूट नोड्यूल (root nodule) बनाता है। इन नोड्यूल्स के भीतर पौधों और बैक्टीरिया के बीच सहजीवी संबंध स्थापित होता है, जिसमें दोनों एक–दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं। राइज़ोबियम (Rhizobium) वायुमंडल की नाइट्रोजन गैस को अमोनिया में बदलता है, जो नाइट्रोजनेज़ नामक एंज़ाइम की मदद से संभव होता है। पौधे इस अमोनिया का उपयोग अपनी वृद्धि और प्रोटीन बनाने में करते हैं, जबकि बदले में वे प्रकाश संश्लेषण से बने कार्बनिक पदार्थ राइज़ोबियम को प्रदान करते हैं। यही कारण है कि चना, अरहर, मूंग, मसूर, सोयाबीन और लोबिया जैसी फसलों की जड़ों पर दिखाई देने वाले नोड्यूल वास्तव में प्राकृतिक खाद कारखाने की तरह काम करते हैं, जो बिना अतिरिक्त खर्च मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाते हैं और उपज सुधारते हैं।

राइज़ोबियम और जैव–उर्वरकों का कृषि में उपयोग
जैव-उर्वरक वे उर्वरक हैं जिनमें जीवित और लाभकारी सूक्ष्मजीव होते हैं, जिन्हें बीज, पौधों की जड़ों या मिट्टी में मिलाकर उपयोग किया जाता है। राइज़ोबियम आधारित जैव-उर्वरक वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके पौधों की बढ़त को तेज करते हैं और मिट्टी की पोषक क्षमता बढ़ाते हैं। यह प्रक्रिया नाइट्रोजनेज़ एंज़ाइम (Nitrogenase enzyme) द्वारा संचालित होती है, जिसके दो मुख्य घटक होते हैं - आयरन प्रोटीन (Fe-protein) और आयरन-मोलिब्डेनम प्रोटीन (MoFe-protein)। ये दोनों मिलकर नाइट्रोजन गैस को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं, जिसे पौधे सीधे उपयोग कर सकते हैं। जैव-उर्वरकों से रासायनिक खाद की आवश्यकता कम हो जाती है, मिट्टी की सेहत सुधरती है, उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ते हैं और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।
लाभकारी सूक्ष्मजीव: पीजीपीआर-एएमएफ और अन्य जैविक उर्वरक स्रोत
पीजीपीआर यानी प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राइजोबैक्टीरिया (Plant Growth Promoting Rhizobacteria) पौधों की जड़ों के पास रहने वाले ऐसे लाभकारी जीवाणु हैं, जो पौधों की वृद्धि को तेज बनाते हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इनमें एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter), बैसिलस (Bacillus), एस्चेरिचिया (Escherichia) कोली और स्यूडोमोनास जैसे जीवाणु शामिल हैं, जो मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में बदलते हैं, ताकि पौधों को ये आसानी से मिल सकें। इसी तरह एएमएफ यानी आर्बस्कुलर माइकोरिज़ल फंगी (Arbuscular Mycorrhizal Fungi) जड़ों से जुड़कर उनका आकार और क्षमता दोनों बढ़ाते हैं, जिससे पौधे पानी और पोषक तत्व अधिक मात्रा में ग्रहण कर पाते हैं। पीजीपीआर और एएमएफ का संयुक्त उपयोग फसल की रोग - प्रतिरोध क्षमता, उपज और गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाता है।

ट्राइकोडर्मा और अन्य कवकों की कृषि में भूमिका
ट्राइकोडर्मा (Trichoderma spp.) एक लाभकारी कवक है, जो पौधों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करता है। यह मिट्टी में हानिकारक जीवाणुओं और रोग फैलाने वाले कवकों को निष्क्रिय करता है और पौधों को कई प्रकार के जैविक और अजैविक तनावों - जैसे ठंड, सूखा, गर्मी और रोगों - से बचाता है। ट्राइकोडर्मा एंज़ाइम उत्पन्न करके रसायनिक विषाक्तता को कम करता है और पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है। शोध से साबित हुआ है कि ट्राइकोडर्मा हर्ज़ियानम (Trichoderma harzianum) के उपयोग से टमाटर जैसी फसलों में ठंड सहनशीलता और उपज दोनों बढ़ जाती हैं, जिससे यह फसल प्रबंधन का महत्वपूर्ण साधन बन चुका है।
सूक्ष्मजीवों द्वारा खाद निर्माण और मृदा स्वास्थ्य में सुधार
सूक्ष्मजीव मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थ - जैसे सूखे पत्ते, पौधों के अवशेष और पशु खाद - को अपघटित करके पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान नाइट्रोजन, फॉस्फोरस (Phosphorus) और सल्फर (Sulphur) जैसे तत्व मुक्त होते हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। सूक्ष्मजीव मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं, जल धारण क्षमता बढ़ाते हैं और मिट्टी को भुरभुरी और जीवंत बनाते हैं। इसीलिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी को जीवित मिट्टी कहा जाता है, जो स्वस्थ पौधों और बेहतर उत्पादन का आधार होती है।
मिट्टी के स्वास्थ्य पर सूक्ष्मजीवों का व्यापक प्रभाव
मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता ही स्वस्थ मिट्टी और स्वस्थ फसल का आधार है। ये जीव पोषक चक्र को सक्रिय रखते हैं, मिट्टी की मजबूती और स्थिरता को बढ़ाते हैं और पौधों को पर्यावरणीय तनावों तथा रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। खेती को टिकाऊ बनाए रखने के लिए फसल चक्रण, हरी खाद, जैविक खाद, कवर क्रॉपिंग (cover cropping) और कम जुताई जैसी तकनीकें अत्यंत प्रभावी मानी जाती हैं, क्योंकि वे मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या और विविधता दोनों बढ़ाती हैं। इन तरीकों के माध्यम से खेती न केवल लाभप्रद बनती है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संरक्षण भी सुनिश्चित करती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/bd6rrb9d
https://tinyurl.com/mvk4dy6v
https://tinyurl.com/bd7uu4fb
https://shorturl.at/KFYwC
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