क्या पूंजीवाद मिटा पा रहा है समाज की तकलीफें ?

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
17-05-2018 02:26 PM
क्या पूंजीवाद मिटा पा रहा है समाज की तकलीफें ?

पूँजीवाद आज के समाज में एक प्रमुख समस्या है, यह समाज के कुछ एक तबके को धनी और अधिक धनी बनाने का काम करता है। पूंजीवाद हमें भ्रम देता है कि यह बड़ी समस्याओं को हल कर रहा है। पूँजीवादी विचारधारा का ही असर है जो हमें वर्तमान काल में दिखाई देता है। फेसबुक को देखिये- मित्र मानवता के लिए किसी प्रकार से खतरा नहीं होते, वे तो मनुष्य शुरुआत से बनाते आ रहा है परन्तु यदि देखा जाये तो वो जरूर ही खतरा हैं जो कि झूठे मित्र हैं। अमेज़न को देखिये, अपने सामान का शीघ्र वितरण वास्तव में किसी प्रकार से हानिकारक नहीं है, परन्तु यदि वह सामान कुछ घंटे या कुछ दिन की भी देरी से आये तो कोई पहाड़ तो नहीं टूट पड़ेगा, जब तक वह सामान किसी के इलाज के लिए कोई आवश्यक वस्तु ना हो।

पूँजीवाद क्या है इसको समझने के लिए इसकी परिभाषा जानना ज्यादा जरूरी है-
“पूंजीवाद एक सामाजिक व्यवस्था है, तथा यह व्यक्तिगत अधिकारों के सिद्धांत पर आधारित है। पूँजीवाद राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में आर्थिक स्वतंत्रता की बात करता है। यह पूर्णरूप से वस्तुनिष्ठ नियमों की बात करता है। पूँजीवाद एक खुले बाज़ार की बात करता है।”

पूँजीवाद को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है-
(i) पूंजीवादी विचारधारा में हम यह पाते हैं कि यहाँ पूंजीपति अपना धन व्यय करता है जिससे वह और अधिक धन बना सके।
(ii) पूंजीवादी विचारधारा में संपत्ति को विभिन्न प्रकार से संस्थाओं और तंत्रों के उपयोग से पूँजी या फायदे में परिवर्तित किया जाता है।
(iii) मजदूरी पूँजीवाद में एक अहम भूमिका का निर्वहन करती है। इसी के सहारे कई बड़े उद्योग कार्य करते हैं।
(iv) आधुनिक बाजार पूंजीवादी विचारधारा के आधार पर ही कार्य करता है।
(v) निजी संपत्ति और विरासत की व्यवस्था पूँजीवाद में दिखाई देती है। इसमें विरासत के रूप में संपत्ति एक से दूसरे तक जाती है।
(vi) पूंजीवादी विचारधारा में अनुबंध, आर्थिक स्वतंत्रता, किसी भी निर्णय को लेने व संपत्ति के मन मुताबिक़ प्रयोग की स्वतंत्रता पायी जाती है।
(vii) इस व्यवस्था में समस्त क्रेता, विक्रेता अपने हित के लिए कार्य करते हैं तथा इस व्यवस्था में प्रतियोगिता को देखा जाता है।
(viii) इस व्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप बेहद ही कम होता है या यूँ कहें कि न के बराबर होता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि इसमें बड़े पैमाने पर मुनाफा बनाने का अवसर मिलता है।

विभिन्न लेखकों व विचारकों ने अपने कई मत पूंजीवादी विचारधारा पर दिए हैं उन्ही मतों में से समाजवादी लेखक मैक्स वेबर एक हैं। वेबर यह कहते हैं कि “तर्कसंगत एवं व्यवस्थित ढंग से लाभ कमाने की प्रवृत्ति ही पूंजीवाद की आत्मा है”। इन सभी आधारों पर यदि पूंजीवाद को रखकर देखा जाये तो मजदूरी व अन्य कई ऐसी बातें सामने आती हैं जिन्हें सोचा जाना जरूरी होता है। इलोन मस्क ने हाल में कहा कि वो लोगों को पृथ्वी की तबाही के दौरान मंगल पर भेजना चाहते हैं। अब यहाँ पर यह समझने की जरूरत है कि यह व्यवस्था मात्र अरब ख़रब पतियों अर्थात पूँजीवादियों के लिए है। ऐसी विचारधारा में यदि देखा जाए तो मानवता का कहीं दूर-दूर तक प्रभाव दिखाई नहीं देता। विभिन्न आविष्कारों ने भी पूँजीवादियों की मदद की जैसे बल्ब का आविष्कार करने के बाद इसको विभिन्न स्थान पर पहुंचाने के लिए विभिन्न उद्योग बने।

यह समझने की जरूरत है कि मानवता के अस्तित्व के सामने आने वाली क्या समस्याएं हैं? स्वच्छ, सस्ती ऊर्जा, गृह पर हर बच्चे के लिए शिक्षा और नौकरी, आय, बचत, एक घर, स्वास्थ्य देखभाल, असमानता को कम करना आदि। ऐसा हमें प्रतीत होता है कि पूंजीवाद मानव इतिहास के इस चरण में इन सभी चीजों को संभव बनाता है। परन्तु जब हम इनका व्यवस्थित अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि इन सभी जरूरतों की एक कीमत होती है और यहीं पर पूँजीवाद का असर दिखाई देता है।

1. https://eand.co/why-capitalism-is-obsolete-d10197b5bca2
2. http://capitalism.org/
3. http://www.jstor.org/stable/4288032