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लखनऊवासियों, विज्ञान और खोजों की दुनिया हमेशा से मानव प्रगति का सबसे बड़ा आधार रही है। चाहे आप गोमती नगर के किसी कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र हों, अलीगंज में अपने वैज्ञानिक सपनों को पूरा करने की तैयारी कर रहे युवा हों या विज्ञान में गहरी रुचि रखने वाले शोधार्थी, फिज़िक्स (physics) का नोबेल पुरस्कार हमेशा प्रेरणा और उत्सुकता का स्रोत रहा है। जब हमारे शहर के युवा दुनिया के महान वैज्ञानिकों की यात्राओं और उनकी अद्भुत उपलब्धियों के बारे में पढ़ते हैं, तो उनके भीतर भी कुछ नया करने की इच्छा जागती है। इसी कारण आज हम आपके लिए लेकर आए हैं नोबेल पुरस्कार का इतिहास, फिज़िक्स के नोबेल का महत्व और दो महान वैज्ञानिकों सी. वी. रमन और अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) की प्रेरक कहानियाँ।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) ने मानवता के लिए इतना बड़ा कदम क्यों उठाया और कैसे उनकी दूरदर्शिता आज भी दुनिया भर में विज्ञान को दिशा दे रही है। इसके बाद हम समझेंगे कि फिज़िक्स का नोबेल वैज्ञानिकों के लिए सर्वोच्च सम्मान क्यों माना जाता है। फिर हम सी. वी. रमन की महान खोज को जानेंगे जिसने भारत को विज्ञान जगत में विशेष पहचान दिलाई। अंत में हम आइंस्टीन के फोटोइलेक्ट्रिक (Photoelectric) प्रभाव की उस व्याख्या को समझेंगे जिसने आधुनिक भौतिकी की नींव रखी।
विज्ञान और मानवता के लिए अल्फ्रेड नोबेल का समर्पण
अल्फ्रेड नोबेल केवल एक महान वैज्ञानिक नहीं थे बल्कि साहित्य, तकनीक, इंजीनियरिंग और उद्यमिता जैसी अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले बहुमुखी व्यक्तित्व थे। वे दुनिया को सिर्फ ज्ञान या आविष्कार देने में ही विश्वास नहीं रखते थे बल्कि चाहते थे कि विज्ञान मानवता के लिए कुछ अर्थपूर्ण और स्थायी योगदान करे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने महसूस किया कि उनकी उपलब्धियाँ तभी सार्थक हैं जब वे आने वाली पीढ़ियों को बड़े सपने देखने और महान कार्य करने की प्रेरणा दें। इसी सोच के चलते उन्होंने अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा मानवता की भलाई और ज्ञान के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। 27 नवंबर 1895 को लिखी गई उनकी वसीयत में यह स्पष्ट कहा गया कि उनकी संपत्ति का उपयोग उन व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए किया जाए जिन्होंने विज्ञान, साहित्य और शांति के माध्यम से मानवता के हित में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया हो। यह निर्णय उस समय जितना साहसिक था, आज उतना ही दूरदर्शी प्रतीत होता है। इसी वसीयत के आधार पर 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत हुई और तब से हर वर्ष फिज़िक्स, केमिस्ट्री (chemistry), मेडिसिन (medicine), साहित्य और शांति के क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को यह अनमोल सम्मान प्रदान किया जा रहा है। यह पुरस्कार न केवल उपलब्धियों का सम्मान है बल्कि उस मानवीय भावना का प्रतीक है जिसने नोबेल को अपनी विरासत मानवता को सौंपने के लिए प्रेरित किया।
फिज़िक्स का नोबेल पुरस्कार और उसका वैज्ञानिक महत्व
फिज़िक्स का नोबेल पुरस्कार रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज (Royal Swedish Academy of Sciences) द्वारा प्रदान किया जाता है और इसे वैज्ञानिक जीवन का सर्वोच्च गौरव माना जाता है। यह सम्मान उन वैज्ञानिकों को दिया जाता है जिनकी खोजों ने मानवता को समझ, तकनीक और ज्ञान के नए आयाम प्रदान किए हों। इस पुरस्कार के साथ एक स्वर्ण पदक, एक विशेष डिप्लोमा और नगद राशि दी जाती है। पदक पर अल्फ्रेड नोबेल की छवि अंकित होती है जो इसे विशिष्ट पहचान प्रदान करती है और इसे प्राप्त करना किसी भी वैज्ञानिक के जीवन का सर्वश्रेष्ठ क्षण माना जाता है। फिज़िक्स का पहला नोबेल जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम रॉन्टजन (Wilhelm Rontgen) को एक्स रे (X-Ray) की खोज के लिए दिया गया था। यह खोज इतनी असाधारण थी कि उसने चिकित्सा जगत में क्रांति ला दी और मनुष्य के शरीर के भीतर बिना चीर-फाड़ के देखने की क्षमता प्रदान कर दी। वर्ष 2025 तक कुल 229 वैज्ञानिकों को फिज़िक्स का नोबेल प्रदान किया जा चुका है। हर वर्ष 10 दिसंबर को, अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि पर, यह पुरस्कार स्टॉकहोम (Stockholm) में आयोजित भव्य और ऐतिहासिक समारोह में वितरित किया जाता है, जहाँ पूरी दुनिया की निगाहें उन वैज्ञानिकों पर टिकी होती हैं जिन्होंने मानवता को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सी वी रमन की खोज और भारत की वैज्ञानिक पहचान
भारत के महान भौतिक विज्ञानी सी. वी. रमन ने 1930 में फिज़िक्स का नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर भारत को विश्व विज्ञान के मानचित्र पर एक विशिष्ट स्थान दिलाया। रमन की जिज्ञासा और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण उनके जीवन की पहचान थे। उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज रमन प्रभाव थी, जिसमें उन्होंने बताया कि किसी पारदर्शी पदार्थ से गुजरते समय प्रकाश की तरंगदैर्घ्य बदल जाती है। यह खोज बहुत सरल-सी जिज्ञासा से शुरू हुई। एक बार उन्होंने भूमध्य सागर के पानी की नीली रंगत देखी और उनके मन में प्रश्न उठा कि समुद्र का पानी नीला क्यों दिखाई देता है। यही प्रश्न उनके लिए प्रेरणा बना और उन्होंने प्रकाश के व्यवहार तथा उसके बिखराव का गहन अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने एक विशेष स्पेक्ट्रोग्राफ (Spectrograph) तैयार किया और 1928 में इस महत्वपूर्ण खोज को पहली बार दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। रमन की यह खोज बाद में चिकित्सा विज्ञान के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी शरीर में शुरुआती स्तर पर होने वाले जैविक बदलावों को पहचानने में सक्षम है। यह स्वस्थ और अस्वस्थ ऊतकों के बीच अंतर बताती है, मस्तिष्क के ट्यूमर की सीमाओं का पता लगाने में मदद करती है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित रियल टाइम निदान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रकार सी. वी. रमन की खोज ने न केवल भौतिकी बल्कि चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी नए द्वार खोले।
आइंस्टीन की खोज जिसने आधुनिक भौतिकी की दिशा बदल दी
अल्बर्ट आइंस्टीन को 1921 में फिज़िक्स का नोबेल पुरस्कार फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव की व्याख्या के लिए दिया गया। उन्होंने बताया कि प्रकाश केवल एक तरंग नहीं है बल्कि छोटे ऊर्जा कणों से बना होता है जिन्हें फोटॉन (photon) कहा जाता है। ये फोटॉन धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन (electron) निकाल सकते हैं और यही प्रक्रिया फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव कहलाती है। आइंस्टीन की यह खोज अत्यंत क्रांतिकारी सिद्ध हुई क्योंकि इसी से क्वांटम (Quantum) भौतिकी की नींव मजबूत हुई और आधुनिक विज्ञान एक नई दिशा में आगे बढ़ा। हालांकि आइंस्टीन सापेक्षता सिद्धांत के लिए अधिक प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनके नोबेल का आधार फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव था क्योंकि इसके प्रयोगात्मक प्रमाण स्पष्ट, ठोस और क्रांतिकारी थे। उनकी खोजों ने ऊर्जा, प्रकाश, समय और अंतरिक्ष के प्रति मानवता की समझ को नए सिरे से परिभाषित किया। आइंस्टीन ने दुनिया को यह सिखाया कि वैज्ञानिक सोच कभी रुकती नहीं, वह हमेशा आगे बढ़ने, सवाल पूछने और उत्तर खोजने की प्रेरणा देती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/58vk9nnp
https://tinyurl.com/2cbt7ske
https://tinyurl.com/y94mkjfy
https://tinyurl.com/y9h98xuy
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