ला मार्टिनियर कॉलेज की चतुर वास्तु-कला

वास्तुकला I - बाहरी इमारतें
24-07-2018 01:32 PM
ला मार्टिनियर कॉलेज की चतुर वास्तु-कला

लखनऊ का ला मार्टिनियर कालेज अपने आप में एक अद्भुत वास्तु का नमूना है। यह 1845 में स्थापित किया गया था। यह कालेज क्लॉउड़ मार्टिन ने अपने रहने के लिए बनाया था जो कि उनकी मृत्यु के बाद वसीयत नामे के अनुसार कॉलेज का रूप ले लिया।

जैसा कि यह ईमारत मार्टिन के रहने के लिए बनाई जा रही थी तो इसे रोमन गोथिक, इस्लामिक आदि कला का समावेश कर के बड़ी शिद्दत के साथ बनाया गया था। यह "कॉन्स्टेंटिया" के नाम से भी जाना जाता है। इस ईमारत को वास्तु के एक महत्वपूर्ण नमूने के रूप में देखा जाता है।

इस पूरी ईमारत को बनाने में एक भी लकड़ी की बीम का प्रयोग नहीं किया गया है जो कि अपने में ही एक अत्यंत आश्चर्य करने वाला तथ्य है। इस इमारत के मूल स्वरुप में केवल केन्द्रीय भाग शामिल था जिसे कालांतर में 1840 के करीब और फैलाव में बनाया गया था।

इस ईमारत के घुमावदार पंखे, सामने झील में खड़ा खम्बा आदि कालांतर के ही जोड़ हैं। झील के खम्बे का निर्माण 1880 के दौर में आये हुए अकाल के समय में करवाया गया था। इस ईमारत की छतों को हरे, नीले, गुलाबी रंग के प्लास्टर से बनाया गया है जो कि इतालवी शैली का नमूना हैं। तकनीकी भाषा में इसे फ्रेस्को (Fresco) कलाकारी के नाम से जाना जाता है। इस ईमारत के तहखाने में जनरल मार्टिन को दफनाया गया है। यह ईमारत कई मंजिलों में बनाई गई है परन्तु इसकी सबसे निचली मंजिल गर्मियों के दिनों के लिए बनाई गई थी।

यह बेहतरीन तरीके से ठंडा माहौल बनाये रखने के लिए बनाई गई थी। इस ईमारत के तहखाने में अनेकों नहरों का निर्माण किया गया है जिसमें पानी की धारा बहती रहती है और फर्श पर कई सुरंगों का निर्माण किया गया है जिससे ठंडी हवा ऊपर की तरफ आती रहती है। इस ईमारत के गलियारों का भी निर्माण इस प्रकार से किया गया है जिसमें हवा को ठंडा करने की क्षमता है। इस को संकरा बनाया गया है जिसमें हवा के चलने पर वह ठंडी हो जाती है।

इस ईमारत में विभिन्न प्रकार के कांच का प्रयोग किया गया है जिन्हें स्टेन्ड ग्लास (Stained Glass) के नाम से जाना जाता है। ये कांच हस्त निर्मित कांच होते हैं जिनपर विभिन्न रंग, आकृति आदि बनायी जाती हैं। इस ईमारत पर विशाल पत्थर के शेरों की मूर्ती भी बनायी गयी है और उनके सर में लालटेन रखने के लिए जगह का निर्माण किया गया है। इस ईमारत की छत को प्रमुख तीन परतों में बनाया गया है पहला गारा, फिर लकड़ी के डंडे आदि और अंत में पलस्तर, इस से छत का वजन कम होता है और वह ईमारत पर ज्यादा बोझ नहीं डालती है। इसकी दीवारों में छिद्रकों का निर्माण किया गया है जिससे तपमान ठीक रहता है। इस ईमारत के पहले मंजिले पर दोहरा पट्ट लगाया गया है जिसे शायद से बम आदि के हमले से बचने के लिए बनाया गया था।

संदर्भ:

1. http://www.lamartinierelucknow.org/about/history
2. http://indpaedia.com/ind/index.php/Lucknow:_K-O