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भारतीय वास्तुकला में विश्व की अधिकांश वास्तुकलाओं (यूरोपीय, मुग़ल आदि) की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। इसका कारण विश्व के विभिन्न भागों से भारत आयी कला, संस्कृति, परंपरा है, जिसने भारतीय वास्तुकला को एक नया स्वरूप दिया। यह समय के साथ तथा आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होती रही है। इसका अनुमान आप प्राचीन भारत, मुग़ल काल और औपनिवेशिक काल में बनी इमारतों से लगा सकते हैं। इसका एक उदाहरण नवाबों की नगरी लखनऊ में बनी खुर्शीद मंज़िल है।
आज भारत में ‘ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध खुर्शीद मंज़िल का इतिहास अत्यंत रोचक रहा है। अवध में यहां के छठे नवाब सआदत अली खान की पत्नी खुर्शीद जदी को समर्पित एक महल और एक मकबरा बनाया गया। महल (यूरोपीय वास्तुकला) का निर्माण सआदत अली खान द्वारा प्रारंभ कराया गया, जिसे इनके पुत्र गाजी उद्दीन हैदर (अवध के सातवें नवाब तथा पहले राजा) द्वारा पूरा (1818) कराया गया। साथ ही इन्होंने अपनी माता खुर्शीद जदी की मृत्यु के बाद मकबरे (मुग़ल वास्तुकला) का भी निर्माण करवाया। खुर्शीद जदी की मृत्यु के बाद महल का नाम खुर्शीद मंज़िल रख दिया गया। ब्रिटिश काल के दौरान मोती महल के निकट बनी खुर्शीद मंज़िल की मरम्मत (डिज़ाइन और भवन निर्माण) के लिए नवाब के पास कैप्टन डंकन मैक्लॉड को भेजा गया, जिन्होंने इस इमारत में कुछ हद तक रॉबर्ट स्मिथ के डिज़ाइन का अनुसरण किया तथा इसमें दूसरी मंज़िल का निर्माण करवाया।
ब्रिटिश शासन के दौरान इस मंज़िल पर उनका पूर्ण कब्जा हो गया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह इमारत स्वतंत्रता सैनानियों के नियंत्रण में आ गयी, फैज़ाबाद के नेता अहमद उल्ला शाह ने अपनी अदालत का आयोजन इसी मंज़िल पर करवाया। लेकिन 17 नवंबर 1857 को ब्रिटिशों ने लगातार तीन हमलों के बाद इस मंज़िल पर पुनः कब्जा कर लिया। 1869 में ब्रिटिश सरकार ने यूरोपीय ईसाई महिलाओं की शिक्षा के लिए यहाँ एक उचित संस्थान स्थापित करने के लिए धन देने की योजना बनाई।
अन्ततः ला मार्टिनियर ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष खुर्शीद मंज़िल प्रबंधन को प्रस्तुत किया। खुर्शीद मंज़िल यूरोपीय पब्लिक स्कूल के रूप में जाना गया। ला मार्टिनियर की दिली ख्वाहिश होने के कारण उनके मरणोपरांत, इस मंज़िल को लड़कियों के कॉलेज में परिवर्तित कर दिया गया। जो ला मार्टिनियर के तीन प्रमुख संस्थानों (कलकत्ता, फ्रांस तथा लखनऊ) में से एक है तथा छात्राओं को आज सभी प्रकार की आधुनिक शिक्षा प्रदान कर रहा है।
दरोगा अब्बास अली (सहायक नगरपालिका अधिकारी) द्वारा लिए गये लखनऊ के 50 खूबसूरत तस्वीरों में इस मंज़िल को भी शामिल किया गया। यह एल्बम उस समय के अवध के चीफ कमिश्नर सर जॉर्ज कूपर को समर्पित की गयी थी। इसकी छपाई कलकत्ता में करवाई गयी थी तथा सन 1874 में इसे प्रकाशित किया गया था। ऊपर दिखाया गया चित्र इसी एल्बम से लिया गया है। इनके चित्रण में इसे सुरक्षा के उद्देश्य से गहरी खाई से घिरा हुआ दिखाया गया है जिसे स्कूल के निर्माण के बाद खेल के मैदान में बदल दिया गया।
संदर्भ:
1.http://lucknow.me/Khursheed-Manzil.html
2.http://www.rarebooksocietyofindia.org/book_archive/196174216674_10153539897631675.pdf
3.https://indiaheritagehub.org/2012/07/16/la-martiniere-college-lucknow-more-than-an-institution/
4.http://www.lamartinieregirlscollegelko.com/