रूढ़िवाद पर ब्रह्म समाज का प्रहार

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
19-11-2018 12:04 PM
रूढ़िवाद पर ब्रह्म समाज का प्रहार

भारतीय इतिहास में 19वीं सदी में समाजिक-धार्मिक सुधारों की तेज लहर चल पड़ी थी, जिसका श्रीगणेश राजा राममोहन राय ने धर्म एवं समाज में सुधर लाने के लिए हिंदू जाति-प्रथा के खिलाफ विद्रोह करके किया था। 1828 ई. में कोलकाता में ब्रह्म समाज की स्थापना कर इस विद्रोह को पूरे भारत में फैलाया गया। इस संगठन का उद्देश्य एक ऐसा आंदोलन चलाना था जो एकेश्वरवाद को बढ़ावा दे और मूर्ति पूजा की आलोचना करे तथा समाज को ब्राहमणवादी सोच से और महिलाओं को उनकी दयनीय दशा से बाहर निकाले। ब्रह्म समाज से काफी लोग जुड़ने लगे और इसका फैलाव भी काफी स्तर तक पहुंच गया।

राममोहन राय की मृत्यु के बाद, ब्रह्म समाज आंदोलन की लगाम देवेंद्रनाथ टैगोर ने थाम ली और उन्होंने इस आंदोलन में नए प्राण फूंक दिए। उन्होंने अपने चतुर मस्तिष्क की मदद से समाज के विकास में अनेक नवीन उपाय दिए। सन् 1857 में केशवचंद्र देव इस समाज से जुड़े और उनके नेतृत्व में ब्रह्म समाज ने असाधारण क्रियाकलापों से भरे एक नए अध्याय में प्रवेश किया। इनके नेतृत्व के दौरान भारी संख्या में युवा वर्ग ब्रह्म समाज से जुड़ गया।

जैसे-जैसे समय गुज़रता गया केशवचंद्र सेन अपने सभी अनुयायियों का विश्वास जीतने में असफल रहे। वहीं ब्रह्म समाज में मतभेदों के चलते, 1878 में शिवनाथ शास्त्री ने नए संगठन ‘साधारण ब्रह्म समाज’ का गठन कर लिया। उसके बाद साधारण समाज ने कई उपलब्धियां प्राप्त की जो कुछ इस प्रकार हैं।

I. शैक्षिक संस्थाएं खोलना जैसे: सिटी स्कूल, ब्रह्म कन्या स्कूल, सिटी कॉलेज (कोलकाता), राममोहन राय सेमीनार (Seminar) (बांकीपुर, पटना)।
II. मिशन के कार्य का प्रशिक्षण देने के लिए साधारण आश्रम की स्थापना, जिसकी तीन शाखाएं बांकीपुर, लाहौर और ढाका में प्रारंभ की गई।
III. समाज के साहित्य तथा पत्रिकाओं के प्रकाशनार्थ ब्रह्म समाज प्रेस की स्थापना करना।
IV. प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत पहुंचाने के लिए राहत निधि की स्थापना की गई।
V. समाज और समाज के बाहर जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए चैरिटी (Charity) निधि की स्थापना की गई।

साधारण ब्रह्म समाज ने वर्ष 2018 में अपने 140 वर्ष पूरे कर लिए और यह आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संगठन, प्रकाशन, समाज कल्याण और शिक्षा के क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है।

संदर्भ:
1.सांस्कृतिक एटलस, राष्ट्रीय एटलस एवं थिमैटिक मानचित्रण संगठन (NATMO)
2.https://www.thebrahmosamaj.net/