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लखनऊ शहर आपनी नजाकत, जायके, और शान-ऐ-शौकत के किये जाना जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, यदि पुरानी और ऐतिहासिक धरोहरों की बात करें, तो यह शहर हमेशा से ही बेशकीमती और अद्भुत स्मारकों का आर्कषण का केंद्र रहा है। यहां की प्रत्येक इमारत अपने आप में कुछ कहती है। ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत लखनऊ शहर के केसर बाग इलाके के पास स्थित है। जिसका निर्माण अवध के छठे नवाब, सआदत अली खान (1798-1814) ने करवाया था। हम बात कर रहे हैं नूर बख्श की कोठी की, जिसे रोशनी देने वाले महल के नाम से भी जाना जाता है। ये नाम इसे इसलिये दिया गया क्योंकि जब इसमें रोशनी जलती थी तो इसकी ऊंचाई के कारण वो मीलों दूरी तक दिखाई देती थी।
पहले नूर बख्श की कोठी को एक भूतिया कोठी भी माना जाता था। इसके मकबरे पर बने होने के कारण लोगों को लगता था कि यहां एक भूत रहता है। परंतु यह बस एक अफवाह थी, आज इस कोठी में जिला मजिस्ट्रेट का निवास स्थल और कैंप कार्यालय है जिस वजह से ये जिला प्रशासन का केंद्र बन गयी है।
कहा जाता है कि सआदत अली खान ने यह कोठी अपने पौते रफी-उश-शान (नसीर-उद-दौलाह के पुत्र जो बाद में मोहम्मद अली शाह के रूप में जाने गये) के लिये एक स्कूल के रूप में बनवायी थी। सआदत अली खान की ताजपोशी 21 जनवरी 1798 को लखनऊ में अंग्रेजों द्वारा की गई, और इस उद्देश्य के लिए विशेष रूप से उन्हे बनारस से बुलाया गया था। हालांकि नवाब अवधि के समकालीन इतिहासकार शेख मोहम्मद अजमत अली नामी काकोरवी शेख मोहम्मद अजमत अली नामी काकोरवी में प्रकाशित अपनी पुस्तक में बताया है कि नूर बख्श की कोठी उन इमारतों में से एक है जो नवाब सआदत अली खान के बेटे नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर (1814-1827) द्वारा बनाई गई थी। जिन्होंने अंग्रेजों के आदेश पर 19 अक्टूबर 1819 को मुगलों से स्वयं को स्वतंत्र अवध का बादशाह घोषित कर दिया था।
लखनऊ की गाइड के साथ प्रकाशित 1913 के हिल्टन के नक्शे में भी आप डिप्टी कमिश्नर के निवास स्थान के साथ नूर बख्श कोठी को भी देख सकते है। यह स्थान वो स्थान है जहां आज जिला मजिस्ट्रेट का निवास स्थल स्थित है। नूर बख्श की कोठी का विशिष्ट उल्लेख 1857-1858 के संघर्ष के वर्णन के दौरान, सितंबर 1857 में रेजीडेंसी की पहली राहत के दौरान और मार्च 1858 में स्वतंत्रता सेनानियों से लखनऊ (विशेष रूप से कैसर बाग) के पुन: प्राप्त करने के दौरान देखने को मिलता है।
सर हेनरी हैवेलॉक ने इस इमारत की मदद से कैसर बाग में प्रवेश करने की योजना बनाई थी, लेकिन उनकी इस योजना का ज्ञात उनके दुशमनों को हो गया था और उन्होंने बंदुक से उस पर मुनक्कों की बरसात की, जिसके निशान आज भी इस घर की दिवारों पर है। इसके ठीक पीछे एक अन्य इमामबाड़ा जहूर बख्श-की-कोठी है, जो आज चर्च मिशन प्रेस (Church Mission Press) का परिसर है। सड़क के विपरीत तरफ इन दोनों इमारतों की उच्च दीवारें एक घेरा बनाए हुए हैं। विद्रोह के दौरान दुश्मनों द्वारा इस पर कब्जा कर लिया गया था, जिसकी वजह से इसकी दिवारें भी काफी क्षतिग्रस्त हो गई थी। इमारत को लगभग पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया गया और इसकी मूल उपस्थिति का कोई निशान नहीं बचा।
वहीं कैसर बाग में उत्तरी तरफ से प्रवेश करने पर उसके दाएं ओर चीनी बाग देखने को मिलता है। और इसके अगले मेहराब से हजरत बाग में प्रवेश किया जा सकता है। थोड़ा आगे जाकर दाएं ओर चंदेली बारहदरी है, यह अवध का कार्यालय भी रहा, लेकिन अवधियों के जाने के बाद इस इमारत को एक निजी व्यक्ति को बेच दिया गया। वहीं इस जगह में एक खास महल भी हुआ करता था, जिसे तोड़ दिया गया और जगह को समतल कर दिया गया।
दरोगा अब्बास अली (सहायक नगरपालिका अधिकारी) द्वारा लिए गये लखनऊ के 50 खूबसूरत तस्वीरों में इस कोठी को भी शामिल किया गया था। यह एल्बम उस समय के अवध के चीफ कमिश्नर सर जॉर्ज कूपर को समर्पित की गयी थी। इसकी छपाई कलकत्ता में करवाई गयी थी तथा सन 1874 में इसे प्रकाशित किया गया था। ऊपर दिखाया गया चित्र इसी एल्बम से लिया गया है।
संदर्भ:
1.http://lucknow.me/Noor-Bakhsh-Kothi.html
2.https://archive.org/details/gri_000033125008608313/page/n31