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ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी किए जाने वाले अंतिम पदक को उसके अधिकार से पहले क्राउन (भारत सरकार अधिनियम, 1858) के हाथ में स्थानांतरित कर दिया गया था। इस पदक के अग्र भाग में सिंह के साथ रानी विक्टोरिया की तस्वीर को उकेरा गया है। साथ ही तस्वीर के नीचे इंडिया लिखा गया है। इस पदक में 1857-1858 की तारीख़ों का भी उल्लेख किया गया है। वहीं इसके रिबन में सफेद रंग के साथ दो लाल धारियाँ भी देखने को मिलती हैं। इसमें 5 बार हैं इनमें से 3 बार लखनऊ की रक्षा, लखनऊ की राहत और लखनऊ के लिए थे। इसे 1858 और 1859 में विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के लिए अधिकृत किया गया था और 1868 में इसके क्षेत्र को बड़ा दिया गया। आइए इस दुर्लभ पदक पर एक नजर डालते हुए जानते हैं, कंपनी के शासन और ब्रिटिश राज को थोड़ा करीब से।
1857 की क्रांति ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव को हिला कर रख दिया। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती क्रुरता ने भारतीय जनमानस के सब्र के बांध को तोड़ दिया। जिसने भयानक विद्रोह का रूप धारण किया। हालांकि विद्रोह को दबा दिया गया किंतु इस विद्रोह का प्रभाव ब्रिटेन तक देखने को मिला। इस विद्रोह ने अंग्रेजों के मन में भारतीयों के प्रति दृष्टिकोण ही बदलकर रख दिया। ब्रिटिश सरकार के लिए भारत प्रमुख आय के स्त्रोंतों में से था। वे इतनी आसानी से भारत छोड़ नहीं सकते थे। 1858 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री, पामर्स्टन ने भारतीय सत्ता को क्राउन के हाथों में हस्तांतरित करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया। लेकिन बिल पास होने से पहले पूर्व ही पामर्स्टन को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में, लॉर्ड स्टैनली ने एक और विधेयक पेश किया, जिसे मूल रूप से "भारत की बेहतर सरकार के लिए एक अधिनियम" नाम दिया गया था तथा यह 2 अगस्त, 1858 को पारित किया गया। इसे भारत सरकार अधिनियम 1858 या 1858 अधिनियम कहा जाता है। इसके पारित होते ही भारत की सत्ता ब्रिटिश क्राउन के हाथ में चली गयी तथा क्राउन ने कंपनी के दायित्वों की संभाला। इस अधिनियम के तहत भारत में कई बड़े परिवर्तन किये गये:
भारत का शासन प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश ताज को दे दिया गया। इस अधिनियम ने कंपनी के नियमों को समाप्त कर दिया, निदेशकों के न्यायालय और नियंत्रण बोर्ड को समाप्त कर दिया। इस अधिनियम ने पिट्स इंडिया अधिनियम द्वारा शुरू की गई लागू द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया। व्यपगत का सिद्धान्त वापस ले लिया गया, ब्रिटिश शासकों के अधीन भारतीय शासकों को स्वतंत्रता दी गई और इसने कुछ सरकारी सेवाओं में भारतीयों के लिए द्वार भी खोले। कंपनी का प्रथम प्रतिनिधि गवर्नर जनरल अब वायसराय कहलाया। भारत सरकार अधिनियम ने भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का नियंत्रण स्थापित किया। संसद के सदस्य भारतीय प्रशासन के बारे में भारत के विदेश मंत्री से प्रश्न पूछ सकते थे। भारत में महत्वपूर्ण कार्यालयों में नियुक्ति का अधिकार भी ब्रिटिश क्राउन के हाथ में या भारत-राज्य परिषद के सचिव के पास निहित था। देश का प्रशासन अब अत्यधिक केंद्रीकृत हो गया था। भारत में सचिव पद का निर्माण किया गया तथा भारत में प्रशासन के सभी अधिकार तथा नियंत्रण उसे दे दिये गए। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य था तथा केवल ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था। लार्ड स्टैनली प्रथम भारतीय सचिव थे। भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय सलाहकार परिषद का गठन किया गया। राज्य सचिव को डायरेक्टर बोर्ड तथा नियंत्रण बोर्ड, दोनों की संयुक्त शक्तियां प्रदान की गयी थी|
साथ ही ब्रिटिश सरकार ने अपने सेना का भी पूर्नगठन प्रारंभ किया गया। इन्होंने अपनी सेना में यूरोपीय सैनिकों की संख्या में वृद्धि की तथा देशी सैनिकों की संख्या कम की। इसके अलावा यह भी तय किया गया था कि सैनिकों को देश के विभिन्न हिस्सों से भर्ती किया जाएगा, विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में जो ब्रिटिशों के लिए तटस्थ थे और विभिन्न भाषाओं में बात करते थे, जिससे सिपाही एकता को रोका जा सके। साथ ही मजिस्ट्रेट को घरों में प्रवेश करने और और हथियारों की खोज करने की शक्ति दे दी गयी। बिना लाइसेंस के हथियार रखने वालों पर जुर्माना लगाने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया। इस अधिनियम ने भारतीय इतिहास की एक नई अवधि की शुरुआत की।
संदर्भ:
1. https://ebay.to/2ETtqLK
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Government_of_India_Act_1858
3. https://www.gktoday.in/gk/government-of-india-act-1858/
4. https://bit.ly/2EJdI4y