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महाकाव्य, रामायण, एक क्रौंच (बगुला की एक प्रजाति) पक्षी की मृत्यु से प्रेरित है। ऋषि वाल्मीकि ने गंगा नदी के किनारे एक पेड़ पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा और जैसे ही वे उन्हें निहार रहे थें, एक शिकारी के तीर ने उनमें से एक को मार दिया। शोक से त्रस्त उन पक्षियों को देख वाल्मीकि नें उस शिकारी को श्राप दिया (यह श्राप 32 शब्दांश और दो-पंक्ति कविता में थी) और कहा –
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।
इस उपर्युक्त पंक्ति का अर्थ है - हे निषाद, आप अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि आपने क्रौंच पक्षियों के चरणों में से कार्य संभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है।
वाल्मीकि द्वारा इस दो पंक्ति के कविता को ही श्लोक का नाम दिया गया और उनके इस श्लोक से सभी ब्राह्मण इतना प्रभावित हुए कि उन सब नें मिल कर वाल्मीकि से पूरे रामायण को एक महा काव्य (श्लोक) का रूप दे कर समस्त संसार के हित और कल्याण लिए लिखने का अनुरोध किया। इस प्रकार संत वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना 500 ई.पू. से 100 ई.पू. के बीच हुई। रामायण को 16वी शताब्दी में तुलसीदास द्वारा पुनः अवधी भाषा में रामचरितमानस के नाम से लिखा गया जिसे उन्होंने 7 खण्डों में विभाजित किया था। यह 7 खंड निम्न है जिनसे संबंधित तस्वीरें प्रत्येक के शीर्ष पर दी गई हैं:
1. बालकाण्ड (बचपन का अध्याय: 361 दोहा): यह रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पहला और सबसे लंबा अध्याय है। यह विभिन्न देवी-देवताओं के आह्वान के साथ शुरू होता है। इस काण्ड में शिव और पार्वती की कई कहानियाँ भी शामिल है। इस अध्याय में अयोध्या में श्री राम का जन्म, उनके बचपन, ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की सुरक्षा, जनकपुर में प्रवेश, भगवान शिव के धनुष को तोड़ने, सीता से विवाह और अयोध्या लौटने का वर्णन किया गया है।
2. अयोध्याकाण्ड (अयोध्या का अध्याय: 326 दोहा): रामचरितमानस का दूसरा अध्याय अयोध्या में राम के राज्याभिषेक की तैयारियों के साथ शुरू होता है। इस अध्याय में वर्णित अन्य घटनाओं में श्री राम का वनवास, राजा दशरथ की मृत्यु, अयोध्या में भरत की वापसी और उनका माता कैकई पर क्रोध और भरत और राम के वन में मिलन और उसके पश्चात भरत के साथ अयोध्या के सिंहासन पर राम की पादुकाओं (चप्पलों) की स्थापना का वर्णन है।
3. अरण्यकाण्ड (वन का अध्याय: 46 दोहा): इस संक्षिप्त लेकिन घटनापूर्ण अध्याय में माता सीता और लक्ष्मण के साथ वन में राम के जीवन का वर्णन किया गया है, और विभिन्न ऋषियों (अत्रि, अनसूया, अगस्त्य) के साथ कैसे उनकी मुलाकात होती है, का वर्णन किया गया है। रावण की बहन शूर्पणखा से मिलना और लक्षमण द्वारा उसका अपमान, और सीता हरण जैसे घटनाओं का भी वर्णन किया गया है।
4. किस्किन्धकांड (किष्किंधा का अध्याय: 30 दोहा): यह रामचरितमानस का सबसे छोटा अध्याय है। इसमें हनुमान और श्री राम का मिलन, सुग्रीव से राम की मित्रता, बालि का वध और सुग्रीव की सेना द्वारा माता सीता की खोज की शुरुआत को दिखाया गया है।
5. सुन्दरकाण्ड (सौंदर्य का अध्याय: 60 दोहा): यह रामचरितमानस का पाँचवाँ अध्याय है और इसे कई लोग पूरे ग्रंथ का हृदय भी मानते हैं। इसमें हनुमान के कारनामों का वर्णन किया गया है: उनका समुद्र पार कर लंका में प्रवेश, विभीषण से उनकी मुलाकात, अशोक वाटिका में माता सीता के साथ उनकी मुलाक़ात और पूरे लंका को अपने पूँछ से जलाना। इस अध्याय में वर्णित अन्य प्रकरणों में विभीषण का अपमान, राम और रावण के बीच संदेशों का आदान-प्रदान और राम के समुद्र का नामकरण शामिल है।
6. लंकाकाण्ड (लंका का अध्याय: 121 दोहा): इस अध्याय में रावण के लंका में श्री राम के रहने की पूरी अवधि का वर्णन है। श्री राम का पूरे वानर सेना के साथ समुद्र पर एक पुल का निर्माण और लंका में प्रवेश करना और रावण के राज्य दरबार में अंगद का विफल शान्ति प्रस्ताव शामिल है। फिर लक्ष्मण का मूर्छित होना और अंत में रावण के वध के साथ लड़ाई का अनुसरण का भी वर्णन है। लंका के राजा के रूप में विभीषण की ताजपोशी, सीता की वापसी और अयोध्या की यात्रा के बाद युद्ध के आयोजन का भी उल्लेख इस काण्ड में किया गया है।
7. उत्तरकाण्ड (बाद के घटनाक्रम या उपसंहार का अध्याय: 130 दोहा): यह रामचरितमानस का सातवां और अंतिम अध्याय है, जिसमें लंका के युद्ध के बाद होने वाली घटनाओं की बात की गई है। प्रमुख घटनाएं राम के वनवास और अयोध्या में उनकी वापसी, अयोध्या के राजा के रूप में राम की ताजपोशी और उनके अनुकरणीय शासन (रामराज्य) का वर्णन है। इसके बाद भगवान राम के अवतार का प्रस्थान, गरुड़ और काकभुशुंडी के बीच संवाद और पाठ के समापन आह्वान का विवरण है।
संदर्भ:
1. https://www.ramcharitmanas.iitk.ac.in/content/about-book