समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1055
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
ऐतिहासिक रूप से अवध के नाम से जाने जाने वाले प्रान्तों में से एक लखनऊ हमेशा से ही बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यह शहर शाही अंदाज, खूबसूरत बागों, शायरी, संगीत से नवाबों की शह में सुसज्जित रहा है। लखनऊ नवाबों के शहर के रूप में विख्यात है और यहां के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह थे। नवाब वाजिद अली के विषय में कई बार लिखा जा चुका है, इनके समकालीन लेखकों में दो सम्प्रदाय पाये जाते हैं। कहा जाता है कि 1856 में वाजिद अली के लखनऊ से चले जाने के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इतिहासकारों और लेखकों को अपने पक्ष में कर वाजिद अली शाह को एक अकुशल प्रशासक और दुश्चरित्र राजा के रूप में प्रस्तुत किया।
परंतु कई अन्य लेखकों के अनुसार वास्तव में वाजिद अली शाह एक शक्तिशाली और कुशल प्रशासक थे। इन्होने वाजिद अली शाह के उन पहलुओं पर प्रकाश डाला है जो कि अनछुये थे। इन्ही लेखकों में से एक वाजिद अली शाह के परपोते एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय में उर्दू के भूतपूर्व प्राध्यापक डा. सज्जाद अली मिर्जा कौकब कदर है, जिन्होने “अवध के अंतिम राजा” (अंग्रेजी में – द लास्ट किंग ऑफ़ अवध (The Last King Of Oudh)) विषय पर सन 1990 में शोध कार्य किया और अवध के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला और अपने पूर्वजों की वास्तविकता को लोगों के सामने रखा।
ऊपर दिये गये चित्र में नवाब वाजिद अली शाह और उनके परपोते सज्जाद अली मिर्जा कौकब दिखाए गये हैं।
अपने शोध के दौरान मिर्जा ने हैदराबाद में आंध्र प्रदेश अभिलेखागार का दौरा किया और अपने पूर्वजों के बारे में छिपी हुई कई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की। उनका मानना था कि वाजिद अली शाह के दुर्व्यवहार की कहानियां ब्रिटिश शासक द्वारा जानबूझ कर फैलाई गई थी ताकि वे उन्हें अकुशल प्रशासक बता सके। वास्तव में वाजिद अली शाह को ललित कलाओं विशेषकर संगीत और नृत्य से बहुत प्यार था, वे कुशल सेना नायक, कवि, गायक और वादक थे। उन्होंने इन कलाओं के संरक्षक और प्रवर्तक के रूप में काम किया, लेकिन साथ ही वह एक धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे।
डॉ मिर्जा ने ये भी बताया कि नवाब वाजिद अली शाह ने खुद लखनऊ छोड़कर कलकत्ता जाने का विकल्प चुना ना कि उन्हे अंग्रेज़ों ने देश निकला दिया था। रेजिडेंट (Resident) ने उन्हें पहले ही सूचित किया कि कलकत्ता स्थानांतरित होने का उनका अपना निर्णय है इसलिये ब्रिटिश का प्रशासन उनकी यात्रा या उनके प्रवास का खर्च वहन नहीं करेगा, उन्हे अपनी व्यवस्था खुद करनी होगी।
मिर्जा के अनुसार कहा जाता है कि नवाब कलकत्ता इलाहाबाद और वाराणसी के रास्ते पैदल चलकर तथा पालकी से पहुंचे, जो 1801 तक अवध का हिस्सा थे। वाराणसी से वह मैकलियोड नामक स्टीमर (steamer) से यात्रा करते हुए कलकत्ता पहुँचे। उन्हें फोर्ट विलियम में नज़रबंदी के तहत रखा गया था और उनकी पूरी यात्रा के दौरान उन्हें हर सैन्य छावनी में बंदूक की सलामी दी गई थी। लेकिन वह कलकत्ता में उस सम्मान से वंचित थे, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजो को अपना विरोध जताने के लिए वहां की यात्रा की थी। उन्हें 9 जुलाई, 1859 को फोर्ट विलियम से रिहा किया गया था।
अपने शोध के अंतिम अध्याय में डॉ मिर्जा ने 1857 में बेगम हज़रत महल के विद्रोह के बारे में बताया है जिन्होंने पति नवाब वाजिद अली शाह के कोलकाता जाने के बाद अवध के बागडोर को अपने हाथ में ले लिया और अपने पुत्र नाबालिग बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया। परंतु बिरजिस को सिंहासन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया था और उनका शासन अधिक समय तक नहीं चला। बेगम हजरत महल युद्ध हार चुकी थीं, लेकिन उन्होने हिम्मत नहीं हारी। उन्होने न केवल ब्रिटिश द्वारा पेश कि गयी पेंशन और रखरखाव को अस्वीकार किया बल्कि 1 नवंबर, 1858 को अपने आखिरी दस्तावेज़ में एक प्रति-उद्घोषणा जारी करके रानी विक्टोरिया की उद्घोषणा को चुनौती दी और अवध की उत्तरी सीमाओं में नवंबर 1859 तक लगातार यह संघर्ष जारी रखा। अंततः 1947 के बाद हजरत महल के नेपाल में सेवानिवृत्त होने के बाद भी वाजिद अली शाह कलकत्ता में अपनी व्यक्तिगत संपत्तियों का आनंद लेते थे, पेंशन प्राप्त करते थे।
आज वाजिद अली शाह तो नहीं रहे परंतु उनकी विरासत पर कई सवाल उठते रहे हैं। राजकुमार साइरस रज़ा (इनका सितंबर 2017 में निधन हो गया), जिन्होंने दावा किया था कि वह अवध के आखिरी नवाब के वंशज थे और राजकुमार की मां बेगम विलायत महल का दावा था कि वह अवध के राजघराने की वंशज हैं। वाजिद अली शाह की स्व-घोषित परपोती विलायत महल को कथित तौर पर मई 1984 में पूर्व पीएम राजीव गांधी द्वारा मालचा महल आवंटित किया गया था। इस महल को फिरोजशाह तुगलक ने अपनी शिकार गाह के रूप में बनवाया था।
परंतु वाजिद अली शाह के परपोते सज्जाद अली मिर्जा कौकब कादर का कहना है कि साइरस और उनकी मां विलयात महल शाही परिवार का हिस्सा कभी भी नही थे। उनका शाही परिवार के इतिहास में कोई अस्तित्व नहीं था। वाजिद अली शाह की परपोती मंज़िलात फातिमा का कहना है कि वाजिद अली शाह ने बेगम हज़रत महल से शादी की थी जिन्होने अपने बेटे बिरजिस कादर को अवध का राजा घोषित किया। बिरजिस बेटे मेहर कादर थे और मेहर कादर के बेटे अंजुम कादर, कौकब कादर (मंज़िलात फातिमा के पिता) और नाय्येर कादर है। हमारे पास यह साबित करने के लिए पेंशन दस्तावेज और अन्य प्रासंगिक पत्र हैं कि हम नवाब साहब के वास्तविक वंशज हैं। परंतु दिल्ली के मालचा महल के विलायत महल और प्रिंस साइरस ने कभी भी अपने दावे को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज सामने नहीं रखा।