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कलकत्ता यानी सिटी ऑफ़ जॉय (City of Joy) वह पिघलता हुआ बर्तन है जहाँ सपनों को हर रोज़ ताजा पकाया जाता है। यह एक छोटे लड़के की कहानी है, जिसकी दुनिया पुराने कलकत्ता की बाइ-लेन (by-Lanes) के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां वह नवीनतम सुर्खियां बंटोरता है और उन्हें सबके दरवाज़ों तक पहुँचाकर फिर अपने दिन के बाकी सपने छोटे चाय के स्टाल पर बिताता है।
फिल्म साफ़ और स्पष्ट सन्देश देती है बालमन के सपनों की जो गरीबी या अमीरी नही देखते, जो हालात नही देखते, जो वारिस या लावारिस नही देखते बस वो हर इंसान के मन में होते हैं। कुछ बच्चों की मजबूरियां होती है कि वे कही काम करें, कहीं भीख मांगे किन्तु समाज का भी इनके प्रति एक कर्त्तव्य होना चाहिए। हमें भी समझना होगा कि ये बच्चे भी हमारी सामाजिक जिम्मेदारी हैं। ये भी हमारे पड़ोस में, हमारे शहर में, हमारे देश में ही रहते हैं। ऐसे बच्चे जिन्हें मजबूरन ये काम करना पड़ रहा होता है, अक्सर देखा जाता है कि अधिकतर ये शिक्षा के प्रति ललायित होतें हैं। अगर ऐसे बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ कर दिया जाए तो हो सकता है की यही बच्चे जो आज अपने सपनों के साथ ना चाहते हुए भी समझोता कर रहे हैं भविष्य में हमारे देश की तरक्की और विकास में भागीदार बने।
ये चलचित्र ऐसे ही बालमन के सपनों की उड़ान दिखाती है जो हर रोज़ खुद से लड़ रहे हैं। इस फिल्म में जूते मिलने के बाद बच्चे के मन की खुशी और अंत में ड्राइंगबुक (Drawing Book) पाने के बाद उसके चेहरे के भाव आपको भावविभोर कर देंगे। साथ ही आपका ऐसे बच्चों के प्रति नजरिया भी बदलने की कोशिश करेंगे जो हर रोज़ हमारे सामने हमारे देश में बाल श्रम (Child Labour) प्रतिबंधित होने के बाद भी चाय की दुकानों में, सड़क किनारे जूतों पर पॉलिश (Polish) करते हुए और मजदूरी इत्यादि जैसे कई अन्य काम करते हुए दिखाई दे जाते हैं।
इस चलचित्र को प्रसारित किया है पॉकेट फिल्म्स (Pocket Films) ने और इसे निर्देशित किया है अनिकेत मित्र ने।
सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=neWPK3fRg5c