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सनातन धर्म में कई वृक्षों का विवरण हमें देखने को मिलता है। उन्ही वृक्षों में से एक है पारिजात का पेड़। पारिजात के वृक्ष का विवरण हमें विभिन्न पुराणों और महाकाव्यों में दिखाई दे जाता है। लखनऊ के समीप स्थित बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) के पास किंटूर गाँव में स्थित यह पारिजात वृक्ष पूरे देश में (मध्य प्रदेश में एक अलग उप-प्रजाति के अलावा) अपनी तरह का एकमात्र है, और यदि आप स्थानीय लोगों और स्थान से संबंधित किंवदंतियों पर भरोसा करें, तो यह पूरी दुनिया में एक ही है। इसे कल्पवृक्ष के रूप में भी जाना जाता है, जिसका मूल अर्थ यह है कि यह किसी भी इच्छा को पूरा करता है। इस वृक्ष का सम्पूर्ण जीवन काल 1000 से 5000 वर्ष का है। बारबंकी में पेड़ की वास्तविक उम्र ज्ञात नहीं है, लेकिन यह अनुमान है कि यह काफी पुराना है और इसके तने की परिधि लगभग 10 मीटर है। पर क्या आपको पता है की इस पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?
इस वृक्ष का वानस्पतिक वैज्ञानिक नाम 'अडेनसोनिया डिजीटाटा' (Adansonia digitata) है। पुराणों और महाकाव्यों में कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमे महाभारत में कुंती और सुनहरे पुष्प की कहानी, श्री कृष्णा और उनकी पत्नी सत्यभामा की कहानी और समुद्रमंथन में निकले पारिजात वृक्ष की कहानी सबसे प्रसिद्ध हैं। और प्रारंग भी एक पोस्ट इन किवदंतियों पर आप तक पहले ही पहुंचा चुका है, उन कहानियों को पढ़ने के लिए इस लिंक "https://lucknow.prarang.in/posts/1320/postname" पर क्लिक करें।
किंवदंतियों को अलग रखते हुए देखें, तो यह सच है कि पारिजात एक भारतीय वृक्ष नहीं है, पेड़ को आधुनिक विज्ञान में वैश्विक रूप से बाओबाब (baobab) के रूप में जाना जाता है, जो उप-सहारा अफ्रीका में उत्पन्न होता है और इसलिए गंगा की उपजाऊ भूमि में इसकी उपस्थिति इसे दुर्लभ बनाती है। यह प्राचीन काल में होने वाले भारत और अफ्रीका के संबंधों पर भी प्रकाश डालने को आकर्षित करता है। परन्तु उस पर फिर किसी दिन चर्चा करेंगे।
14वीं शताब्दी की शुरुआत में, एक युवक उप-सहारा देश मोरक्को में पैदा हुआ था, जिसने पूरी दुनिया की यात्रा की। इस युवक का नाम इब्न बतूता (Ibn Battuta) था और अपनी व्यापक यात्राओं के दौरान, उन्होंने भारत का दौरा भी किया और कई साल देश के उत्तर में रहकर बिताए। बुद्धिजीवी (जो प्रत्येक विषय को वैज्ञानिक तर्क से जोड़ते हैं) की माने तो उनके अनुसार इब्न बतूता अपने भारत भ्रमण के दौरान बाओबाब का एक छोटा पौधा अपने देश से साथ लाये थे, जो वहाँ बहुतायत में पाए जाते हैं और जब उन्होंने भारत को अपना घर बनाया (वह मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में छह साल से अधिक समय तक यहां रहे), उन्होंने यह पेड़ यहाँ लगाने का फैसला किया। और इस तरह से पारिजात उप-सहारा देश मोरक्को से बाराबंकी के वर्णनातीत किंटूर गाँव में आ गया।
सन्दर्भ:
1. https://www.sid-thewanderer.com/2017/08/parijat-tree-barabanki.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Parijaat_tree,_Kintoor
3. https://lucknow.prarang.in/posts/1320/postname