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उपभोक्ताओं की दृष्टि से भारत एक समृद्ध राष्ट्र है, जिसकी ओर विश्व के बड़े-बड़े व्रिकेता नज़र गढ़ाए बैठे हैं। उपभोक्ताओं को उत्पादों की आपूर्ति खुदरा विक्रेताओं द्वारा की जाती है, जो मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- संगठित खुदरा विक्रेता और असंगठित खुदरा विक्रेता। संगठित खुदरा विक्रेताओं के अंतर्गत वे विक्रेता आते हैं जो लाइसेंस (License) प्राप्त करके अपनी व्यापारिक गतिविधियां संपादित करते हैं। यह विक्रय कर, आयकर आदि के लिए पंजीकृत होते हैं। इनमें सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाले सुपरमार्केट (Supermarkets), कॉर्पोरेट-बैक्ड हाइपरमार्केट (Corporate-backed Hypermarkets) और खुदरा श्रृंखलाएं और निजी तौर पर बड़े खुदरा व्यापार शामिल हैं। असंगठित खुदरा विक्रय के अंतर्गत कम लागत वाले खुदरा विक्रय के पारंपरिक संरूप, जैसे स्थानीय किराने की दुकानें, सामान्य स्टोर (Store), पान / बीड़ी की दुकानें, ठेले और फुटपाथ (Footpath) विक्रेता, आदि आते हैं।
आज लोग पैसे से ज़्यादा सुविधाओं को वरीयता दे रहे हैं। जिस कारण उपभोक्ताओं का संगठित खुदरा व्यापारियों की ओर झुकाव बढ़ता जा रहा है। इनके द्वारा प्रदान की जाने वाले उत्पादों की प्राथमिक विशेषताएं (बेहतर गुणवत्ता, उत्पादों की विविधता और उत्पाद की सजावट) तथा द्वितीयक विशेषताएं (उत्पादों का उचित प्रदर्शन और उत्पादों की वारंटी) उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं। आज शहरी क्षेत्र के उपभोक्ता खरीददारी हेतु दुकानों की अपेक्षा मॉल (Mall) में जाना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इनके द्वारा उपभोक्ताओं को पार्किंग (Parking) सुविधा, प्रशिक्षित विक्रय कर्मी, पूर्ण सुरक्षा, स्वच्छ वातावरण, पर्याप्त ड्रेसिंग रूम (Dressing Room) जैसी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। उपभोक्ता न केवल खरीददारी के लिए, बल्कि मनोरंजन और पसंदीदा भोजन का आनंद लेने के लिए उभरते खुदरा प्रारूपों की ओर रुख कर रहे हैं। संगठित खुदरा व्यापार निस्संदेह उपभोक्ताओं को व्यापक लाभ, अधिक सुविधा और बेहतर खरीददारी का माहौल देता है। संगठित खुदरा विक्रेता घनी आबादी वाले छोटे क्षेत्रों से लेकर विशाल मॉल जैसी सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम हैं।
भारत में संगठित खुदरा के विकास में योगदान करने वाले महत्वपूर्ण कारक उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण के अनुसार, समग्र आर्थिक विकास, उपभोक्ताओं की बढ़ती चेतना, जीवन शैली में बदलाव और बुनियादी ढाँचे का विकास हैं। खुदरा विक्रेता आधुनिक अर्थव्यवस्था में निर्माता और उपभोक्ता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी प्रदान कर रहे हैं। भारत में खुदरा सबसे गतिशील उद्योग है।
भारत में संगठित खुदरा विक्रय लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान कर रहा है तथा हज़ारों निर्माता लंबे समय से इस उद्योग में लगे हुए हैं। संगठित खुदरा क्षेत्र भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां पर सभी प्रकार के खुदरा व्यापारी मौजूद हैं। 20वीं शताब्दी के दौरान भारत में कुछ शीर्ष उद्यमियों जैसे श्री अनिल अंबानी, श्री रतन टाटा, श्री किशोर बियानी आदि ने खुदरा बिक्री को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। भारत में उत्पादों की शैली, डिज़ाइन (Design) और गुणवत्ता में भी बदलाव आया है। उत्पादों की घरेलू स्तर पर ही नहीं वरन् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मांग बढ़ी है।
उत्तर प्रदेश में, लखनऊ संगठित खुदरा विक्रेताओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। लखनऊ में वर्तमान समय में चार मॉल (सहारा गंज, फन मॉल, ईस्ट एंड (वेव मॉल), फीनिक्स मॉल) हैं। लखनऊ का संगठित खुदरा क्षेत्र भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में छोटी मात्रा में योगदान दे रहा है। लखनऊ में संगठित खुदरा क्षेत्र के आगमन से यह यहां के लोगों के लिए मुख्य पेशा बन गया है। इसने लखनऊ में लगभग 15,000 (महिला, पुरूष दोनों) लोगों को रोज़गार दिया है। लखनऊ में संगठित खुदरा क्षेत्र के लिए भावी सकारात्मक अवसर मौजूद हैं, जहां बढ़ती जनसंख्या, साक्षरता दर, रोज़गार, आय, बदलते खर्च पैटर्न (Pattern) आदि लखनऊ में संगठित खुदरा बिक्री के विकास में योगदान दे रहे हैं। निम्न बुनियादी सुविधाओं को जोड़कर लखनऊ में संगठित खुदरा क्षेत्र का व्यापक विस्तार किया जा सकता है:
मॉल में खेल के मैदान, मनोरंजन सुविधा और बिलिंग (Billing) प्रक्रिया के बारे में सुझाव:
• यदि मॉल में बच्चों के लिए खेल का मैदान बना दिया जाए तो वे खरीददारी के दौरान माता पिता के लिए कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगें। खेल के मैदान में बच्चों की उम्र और रूचि के अनुरूप खेल सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
• बिलिंग काउंटर (Billing counter) एक से अधिक होने चाहिए ताकि भीड़ के समय में काउंटरों के सामने लंबी कतारें न लगें।
• बिलिंग काउंटर पर अधिक कुशल प्रबंधक होने चाहिए ताकि बिलिंग प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रहे।
• व्यवस्था पर्याप्त अच्छी होनी चाहिए, ताकि उनकी कार्य गति तीव्र हो।
• उत्पादों पर बार कोड (Bar Code) होना चाहिए ताकि बिलिंग प्रक्रिया में कोई देरी न हो।
परिवेश की स्थिति, खिड़की प्रदर्शन (Window display) और उचित प्रकाश व्यवस्था के बारे में सुझाव:
• स्टोर का माहौल अच्छा होना चाहिए। स्टोर में हल्का संगीत जैसे सूफी संगीत बजाया जाना चाहिए। उपभोक्ताओं पर संगीत का विशेष प्रभाव पड़ता है। संगीत से खरीददारी के समय उनका मूड (Mood) अच्छा बना रहता है।
• स्टोर मैनेजर (Manager) को कर्मचारियों को निर्देशित करना चाहिए कि नयी आयी हुयी वस्तुओं को प्रदर्शन के लिए खिड़की पर रखें। यह वस्तुएं ग्राहक का ध्यान आकर्षित करती हैं तथा ग्राहक को वह मिल जाता है जिसे वे अच्छी कीमत पर प्राप्त करना चाहते हैं।
• उचित प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि ग्राहक को उत्पाद चुनने में कोई कठिनाई महसूस न हो। इससे उत्पाद को खरीदने का निर्णय लेना आसान हो जाता है।
वातावरण और कर्मचारियों के व्यवहार के संबंध में सुझाव:
• स्टोर कर्मचारियों का व्यवहार उपभोक्ताओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। उनके द्वारा किया गया किसी भी प्रकार का नकारात्मक व्यवहार उपभोक्ताओं को वहां दोबारा आने से रोक सकता है।
• समय-समय पर कर्मचारियों का प्रशिक्षण होना चाहिए।
• स्टोर में कुछ प्रशिक्षकों को भर्ती करना चाहिए ताकि स्टोर कर्मचारियों को समय पर प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके।
खुदरा विक्रय के लिए कानूनी सुझाव:
• संगठित खुदरा क्षेत्र को उद्योगों का दर्जा दिया जाए।
• संगठित खुदरा क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन दिया जाए।
• इनसे संबंधित व्यापक कानूनी खाका तैयार किया जाना चाहिए तथा भावी दृष्टिकोण के साथ इसे लागू किया जाना चाहिए।
• कानून, आवश्यक वस्तु अधिनियम APMC अधिनियम, लाइसेंस प्रतिबंध, आंतरिक कर, स्टांप (Stamp) शुल्क को सरल बनाया जाना चाहिए तथा उन्हें उचित रखा जाना चाहिए ताकि यह खुदरा क्षेत्र के विकास में बाधा न बनें।
आधुनिक खुदरा विक्रेता पारंपरिक दुकानों के लिए कोई समस्या नहीं बन रहे हैं क्योंकि अधिकांश उपभोक्ताओं ने बताया कि उन्होंने कभी भी किराना स्टोर जाना बंद नहीं किया है। वे दोनों के सह-अस्तित्व पर सहमत हैं तथा दोनों को ही अपनी आवश्यकता बताते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.igi-global.com/dictionary/organized-retailing/52738
2.https://www.igi-global.com/dictionary/unorganized-retailers/52739
3.https://bit.ly/33NeM37