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                                            मनुष्य यदि किसी एक चीज़ को देख ले या सुन ले तो उसे वह किसी न किसी प्रकार से याद कर लेता है। यह कौशल उसे अपने मस्तिष्क से प्राप्त होता है। कोई तकनीकी सीखना, लेखन सीखना या खान-पान सीखना, हर एक वर्णित चीज़ मनुष्य बड़ी आसानी से सीख लेता है। यह कला मनुष्य में न्यूरोप्लास्टीसिटी (Neuroplasticity) की वजह से आती है। न्यूरोप्लास्टीसिटी ब्रेन प्लास्टीसिटी (Brain Plasticity) के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्तिष्क को ऐसी ताकत प्रदान करता है जिससे मनुष्य का मस्तिष्क प्रत्येक व्यक्ति की ज़िन्दगी के दौरान बदलता रहता है और तमाम जानकारी मनुष्य को प्रदान करता है। माना कि Y व्यक्ति किसी X व्यक्ति से क़ुतुब मीनार के पास मिला था और वहां पर उन दोनों ने चाय पर चर्चा की थी। अब दुबारा मिलने पर यह इंद्री व्यक्ति को पहली मुलाक़ात के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
यह कभी-कभी बदल जाता है और समय के साथ-साथ इसकी क्षमता कम भी हो सकती है। जैसे किसी वृद्ध व्यक्ति को हम देखते हैं और पता चलता है कि उनको कई बातें याद करने में परेशानी होती है। ऐसे में यह न्यूरोप्लास्टीसिटी के ही कमज़ोर होने का या ठीक से काम न करने के कारण होता है। न्यूरोप्लास्टीसिटी का मुख्य ध्येय होता है फायलोजेनेसिस (Phylogenesis), ओंटोजेनी (Ontogeny) और फिज़ियोलॉजिकल (Physiological) सीख के तंत्रिकाओं के जाल को सुधारना। कई प्रकार के शोधों से पता चला कि वयस्कता के दौरान भी दिमाग को बदला जा सकता है (सोच या समझ को)। हांलाकि कम उम्र के विकासशील दिमाग बड़े वयस्कों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से ज्ञान को अपने में समाहित कर सकते हैं। न्यूरोप्लास्टीसिटी को विभिन्न पैमानों पर मापा जा सकता है जिसमें सूक्ष्म बदलाव से लेकर बड़े बदलाव तक शामिल हैं जैसे कि कोर्टीकल रीमैपिंग (Cortical Remapping)। पर्यावरण का बदलाव, और भावनाओं से भी न्यूरोप्लास्टीसिटी में बदलाव देखा जाता है जो कि मानसिक स्थिति और सीखने की कला में बदलाव लाता है।
प्लास्टीसिटी एक ऐसी धारणा है जो कि मस्तिष्क में कई बदलावों को लाने में कुशलता का प्रमाण देता है। यह मस्तिष्क के ज़ख्मी होने पर उसे फिर से सुचारू रूप से चलाने और उस पर हुए प्रभावों को ख़त्म करने का भी कार्य करता है। यह प्रक्रिया मनुष्य के मस्तिष्क के लिए अत्यंत ही लाभकारी है। इसके आधार पर सीखने की परम्परा को और भी तीव्र किया जाना संभव है और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में भी और अनवरत सीखते रहने में भी इसकी भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
न्यूरोप्लास्टीसिटी बचपन में सबसे ज़्यादा तेज़ी से कार्यरत रहती है। बच्चों का दिमाग वयस्कों के दिमाग से ज़्यादा तीव्रता से कार्य करता है क्योंकि उनमें सीखने की ललक तेज़ होती है। जैसा कि वयस्क और बुज़ुर्ग के दिमाग के विषय में ऊपर कहा जा चुका है उसी के विपरीत बच्चों का दिमाग तेज़ी से किसी भी चीज को सीखने और समझने के लिए परिपक्व होता है। 3 साल की उम्र में किसी भी बच्चे का मस्तिष्क एक वयस्क के मस्तिष्क का 80% हो जाता है। इस समय में और बचपन के समय में बच्चों का मस्तिष्क तेज़ी से सेनाप्सिस तैयार करना शुरू कर देता है। यह उनको तीव्रता से सीखने की कला से नवाज़ता है। यही कारण है की बच्चे कम उम्र में ज़्यादा तेज़ी से सीखने की कला में पारंगत हो जाते हैं।
संदर्भ:
1.	https://en.wikipedia.org/wiki/Neuroplasticity
2.	https://brainworksneurotherapy.com/what-neuroplasticity
3.	https://bit.ly/2xJBFU2
4.	http://news.bbc.co.uk/2/hi/health/6172048.stm
5.	https://www.adam-mila.com/brain-development-children-0-6-years/