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                                            पृथ्वी आज अपनी आखिरी साँसे गिन रही है और यह कोई प्राकृतिक मौत नहीं बल्कि मनुष्यों द्वारा एक सोची समझी शिकश्त है। जिस पृथ्वी ने जन्म दिया, एक मकसद दिया और रहने का घर दिया उसे क्या पता था की यही मनुष्य उसके सबसे बड़े भक्षक बन जायेंगे। मनुष्यों ने जब से बसाव का जीवन अपनाया है तभी से जंगलों, जीवों, नदियों, सरोवरों आदि को ख़त्म करना शुरू कर दिया। आज लखनऊ के समीप बहने वाली जीवनदायनी गोमती बजबजाते हुए नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। दिल्ली पूरी तरीके से गैस चेंबर बन चूका है। तमाम प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं परन्तु मनुष्य आज भी सीख नहीं ले रहा है।
मनुष्य यह भी नहीं समझ पा रहा है की आखिर जब पृथ्वी ही नहीं रहेगी तो वह खुद कहाँ रहेगा। यह एक हास्यात्मक नमूने का ही उदाहरण है कि पृथ्वी को नष्ट करें और मंगल और चाँद जैसे ग्रहों पर जीने के संकेत खोजे। आज लखनऊ भी दिल्ली की तरह एक गैस चेम्बर हो चूका है जो कभी गोमती के जल को पी कर तरता का आभाष करता था। यहाँ की ऐ क्यू आई रीडिंग 464 पहुँच चुकी है जो की एक आपातकाल के रूप में बदल चुकी है। हमारे गाड़ियों से निकला धुआं, फैक्टरियों से निकला दूषित जल और धुआं, हमारे द्वारा फोड़े गए फटाके यहाँ के आबो हवा को इस प्रकार से दूषित कर दिए हैं की यहाँ पर सांस लेना भी दुश्वार हो चुका है।
ए क्यू आई एक ऐसी तकनीक है जो की हवा के गुणवत्ता की जाँच करती है। यदि इस गुणवत्ता का रेट 300 से 500 से मध्य है तो यह सन्देश मिलता है की उस स्थान की हवा अत्यंत ही दूषित हो चुकी है और उस हवा में प्रदुषण के अनगिनत कण उड़ रहे हैं जो की मनुष्य के जीवन पर भारी प्रभाव डाल सकने में समर्थ हैं। इस प्रकार का हवा लेने पर मनुष्य का ह्रदय, फेफड़े आदि बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। ग्लोबल वार्मिंग में वायु प्रदुषण का सबसे बड़ा हाथ होता है और ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी के सतह का तापमान बड़ी तेजी से बढ़ता है जिसके कारण पृथ्वी के वायुमंडल और इसके पारिस्थितिकी तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है। आज विश्व भर में वायु प्रदुषण एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है और इससे यदि निजात नहीं पाया गया तो हमारा जीवन, घर बार सब कुछ कालकवलित हो जाएगा। हवा के प्रदुषण से करीब सालाना 7 मिलियन अर्थात 70 लाख लोग मरते हैं जो की एक बहुत बड़ी समस्या है और इससे कितने लोग बीमारी से जूझ रहे हैं उसका कोई गिनत आंकड़ा नहीं मौजूद है।
सेंटर ऑफ़ साइंस एंड इन्वायरमेंट की सांभवी शुक्ला के पीएम 2.5 पर TERI-ARAI में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार परिवहन से 39 प्रतिशत, सड़क की धुल 18 प्रतिशत, निर्माण गतिविधियों से 8 प्रतिशत और बिजली के आपूर्ति में 11 प्रतिशत का उत्सर्जन होता है। इस हिसाब से हम देख सकते हैं की प्रदुषण के कौन कौन से कारक हैं जो की प्रदुषण को बढ़ावा दे रहे हैं। इनसे बचने के लिए हम आप मास्क का प्रयोग कर सकते हैं, ज्यादा से ज्यादा पानी पि सकते हैं, बाहरी कठिन गतिविधियों से बाख सकते हैं और जरूरत रहने पर ही घर से बहार निकल सकते हैं। निजी गाड़ियों से ज्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करके भी हम वायु प्रदुषण को रोकने में मदद कर सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण कर के भी हम वायु प्रदुषण को रोक सकते हैं।
सन्दर्भ:
1. https://airnow.gov/index.cfm?action=aqibasics.aqi
2. https://bit.ly/36y9Kc6
3. https://www.wri.org/our-work/topics/air-quality
4. https://bit.ly/2qmUi1T