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                                            सम्पूर्ण भारत भर में विभिन्न प्रकार के पंछी पाए जाते हैं जो की अपनी किसी न किसी खूबी के लिए जाने जाते हैं। उन्ही पंछियों में से एक है साइक्स लार्क जिसे की (गैलेरिडा देवा) के नाम से भी जाना जाता है। यह पंछी भारत के सूखे मैदानी भागों में पाया जाता है। यह पंछी मुख्य रूप से मध्य भारत तक पाया जाता है। इसकी पहचान इसके शिखा से होती है तथा इसके स्तन भाग पर धारियां पायी जाती हैं। इस पंछी की विशेषता यह है की यह अपने रहने के स्थान पर पाए जाने वाले 34 अन्य पंछियों के आवाज की भी नक़ल कर सकने में सक्षम हैं। यह मुख्य रूप से प्रायद्वीप भारत में पायी जाती हैं। इतने की संख्या के पंछियों के आवाज की नक़ल करने के कारण यह पंछी अन्य कितने ही पंछियों से भिन्न हो जाती है।
 
यह पंछी आकार में गौरैया के आकार का होता है और इसका रंग भूरा होता है। यह पंछी अपने घोसले को जमीन पर बनाती हैं। इस पंछी के प्रजनन के पारिस्थितिकी के विषय में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। यह प्रजनन के दौरान विभिन्न गाने गाता है जो की मादा को अपनी ओर आकर्षित करता है। 2011-14 के समय में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च तिरुपति में एक शोध के दौरान इस पंछी के 16 धुनों को रिकॉर्ड किया गया। इनका प्रजनन का महीना मार्च से सितम्बर के समय में होता है और इस दौरान नर पंछी आक्रामक रूप का रवैया प्रस्तुत करते हैं। इनकी दो और अन्य प्रजातियाँ यहाँ पायी जाती हैं। शोर्ट टो लार्क ग्रीन बी ईटर या ब्लैक द्रोंगों। इनकी आवाजों की नक़ल करने की कला वास्तव में अद्वितीय है। चीन के एक विश्वविद्यालय के विज्ञानी इसे यौन प्रदर्शन से प्रेरित हो कर के नक़ल करने की कला मानते हैं।
 
इस पंछी के विषय में कहा जाता है की शायद इस प्रजाति में पंछियाँ में मादाएं विभिन्न आवाजों से प्रेरित होती हैं। ये पंछियाँ मोटर बैक, चरवाहे की धुन, सीटी की आवाज की भी नक़ल कर सकने में सक्षम हैं। इन पंछियों में ऐसा माना जाता है की जो नर सबसे ज्यादा प्रकार के आवाजों को निकाल सकने में सक्षम होता है उसे मादा पंछी अपने लिए चुनती हैं। ये पंछी शुक्र यह है की किसी भी प्रकार के संकट के श्रेणी में नहीं आते हैं और ये बड़ी संख्या में हमारे यहाँ पर घास के मैदानों में पाए जाते हैं। लखनऊ में भी ये पंछी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं यहाँ पर जूट आदि के झाड़ियों में ये बड़ी संख्या में अपने घोसले बनाते हैं। गोमती नदी के किनारे घास के कई मैदान हैं जहाँ पर इन पंछियों को देखा जाना संभव है। इस पंछी की टेक्सोनोमी के विषय में अभी तक ज्यादा ज्ञान हमें नहीं प्राप्त हो सका है। इस पंछी को देखकर यह तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है की प्रकृति कितनी खूबसूरत है और इसके ना जाने कितने ही रूप हमारे आस पास छुपे हुयें हैं।
 सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sykes%27s_lark
2. https://india.mongabay.com/2017/12/sykess-lark-the-male-with-more-voices-gets-the-mate/
3. https://www.hbw.com/species/sykess-lark-galerida-deva