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                                            पूरा भारत आज के दिन को बैसाखी के पर्व के रूप में मना रहा है। पूरे विश्व में भी ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां रहने वाले हिन्दू धर्म के लोग इस जीवंत पर्व को मनाते हैं। भारत और दुनिया के अनेक हिस्सों में इस पर्व को मनाने के पीछे विभिन्न कारण निहित हैं। यह पर्व विशेष रूप से किसानों के लिए अति महत्वपूर्ण है क्योंकि किसानों द्वारा इसे फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य के लिए, बैसाखी रबी (सर्दियों) की फसलों की कटाई का समय है और इसलिए किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इन राज्यों में बैसाखी के पर्व को धन्यवाद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें लोग प्रातः काल जल्दी उठकर, स्नान कर और नए कपडे पहनकर मंदिर और गुरुद्वारे जाते हैं तथा अच्छी फसल के लिए भगवान का आभार व्यक्त करते हैं तथा भविष्य की फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। किसानों द्वारा आवत पौनी की परंपरा भी निभाई जाती है। आवत पौनी फसल कटाई से जुड़ी परंपरा है, जिसमें लोगों को गेहूं की कटाई करने के लिए एकजुट होना पड़ता है। जब लोग खेतों में काम करते हैं तब ढोल बजाए जाते हैं। दिन के अंत में, लोग ढोल की धुन पर दोहे गाते हैं। किसान ऊर्जावान भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करके और बैसाखी मेलों में भाग लेकर बैसाखी मनाते हैं।
किसानों के लिए महत्वपूर्ण होने के अलावा, यह पर्व सिख धर्म के लोगों के लिए भी अत्यंत ख़ास है क्योंकि वे इसे खालसा पंथ की स्थापना दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ या ऑर्डर ऑफ प्योर ओन्स (Order of Pure Ones) की स्थापना की और सिखों को एक विशिष्ट पहचान दी। सिख एकमात्र ऐसे लोग हैं जो इस दिन को अपना जन्मदिन मनाते हैं क्योंकि वे इस दिन एक नए राष्ट्र के रूप में पैदा हुए थे। दसवें गुरु ने इसी दिन पंज प्यारों (गुरू के पांच प्यारे) की अवधारणा को भी आरंभ किया। बैसाखी का पर्व ज्योतिषीय कारणों से भी शुभ है, क्योंकि इस दिन सूर्य का प्रवेश मेष राशि में होता है। इसी कारण से बहुत से लोग बैसाखी को माशा संक्रांति के नाम से भी जानते हैं। बैसाखी का हिंदुओं के लिए विशेष महत्व है, क्योंकि यह हिन्दू नववर्ष की शुरुआत का समय भी है। यह माना जाता है कि हजारों साल पहले, देवी गंगा पृथ्वी पर उतरीं और उनके सम्मान में, कई हिंदू लोग पवित्र स्नान के लिए गंगा नदी के किनारे इकट्ठा हुए। बैसाखी का यह हिंदुओं के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। बैसाखी का पर्व पूरे भारत में विभिन्न नामों और अनुष्ठानों के तहत मनाया जाता है। असम में इसे 'रोंगाली बिहू' (Rongali Bihu), बंगाल में 'नबा बरसा' (Naba Barsha), तमिलनाडु में 'पुथंडु' ('Puthandu'), केरल में 'पूरम विशु' (Pooram Vishu) और बिहार राज्य में 'वैशाख' (Vaishakha) के नाम से जाना जाता है।
वैसाखी के मेले जम्मू शहर, कठुआ, उधमपुर, रियासी और सांबा, चंडीगढ़ के पास पिंजौर परिसर में सहित कई स्थानों पर लगते हैं। लखनऊ के लिए भी यह पर्व अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि लगभग 20,000 से अधिक सिखों का घर यहां हैं। इसके अलावा प्रमुख गुरुद्वारे जैसे कि याहीगंज गुरुद्वारा, मान सरोवर गुरुद्वारा आदि भी यहां स्थित हैं। वर्तमान समय में कोरोना विषाणु के प्रकोप के कारण लखनऊ में इस पर्व को पिछले वर्षों जैसा रुप नहीं दिया जा सकेगा। महामारी के मद्देनजर एक ओर जहां घरों में ऑनलाइन (online) सिमरन होगा तो वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन (lockdown) से प्रभावित मजदूरों की मदद कर सेवा का संकल्प दोहराया जाएगा। हालांकि पर्व के आयोजन की रौनक भले की गुरुद्वारों में नहीं दिखेगी, लेकिन समाज के लोग प्रशासन के साथ मिलकर गरीबों की मदद करेंगे। लोग घरों में रहकर ही कोरोना से मुक्ति के लिए स्मरण करेंगे तथा जरूरतमंदों की सेवा करेंगे।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/3b18jFb
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Vaisakhi#Aawat_pauni
3. https://www.speakingtree.in/blog/significance-of-baisakhi-in-india
चित्र सन्दर्भ:
1.	Wikimedia commons - खालसा के पहले पांच सदस्यों (पंज प्यारे) की प्रथा का आरंभ करने वाले गुरु गोविंद सिंह का चित्रण
2.	Wikimedia commons - वैसाखी मेला
3.	Wikimedia commons - वैशाखी पर भांगड़ा नृत्य