लखनऊ में मौजूद था, अपना बन्दूक का कारखाना

हथियार और खिलौने
05-05-2020 11:30 AM
लखनऊ में मौजूद था, अपना बन्दूक का कारखाना

ब्रितानी शासन ने पूरे विश्व भर में अपने जड़ों को फैला कर रखा था, वह यह भी कहते थे की ब्रितानी राज में कभी सूर्य अस्त नहीं होता। यह कथन अपनी स्थिति पर सही भी था, यह वह दौर था जब ब्रितानी हुकूमत के आगे बड़े से बड़े देशों ने अपने घुटनों को टेक दिया था। उनके शासन का एक पहलु इस प्रकार से है कि उन्होंने अपने ज्ञान और तकनीकी को किसी अश्वेत के हाथों में नहीं लगने दिया। ऐसा ही एक वाक्या यह है कि भारत में इन ब्रितानी शासन ने यहाँ के लोगों को ब्रितानी ज्ञान के समीप न आने दिया और उनको दबाने का कार्य किया। बंदूकों का इतिहास सदैव से ही एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण रूप से देखा गया है, बारूद के इतिहास के बाद से ही इसके बनने के आसार खुल गए थे। तोप बंदूकों के आविष्कार की पहली कड़ी थी तथा बंदूकों के आविष्कार ने तो पूरे समाज की रूप रेखा को ही बदल कर रख दिया था। बन्दूक के आविष्कार ने युद्ध, लड़ाइयों का नया आयाम गढ़ दिया था। जैसा की हमें ज्ञात है कि भारत 17वीं शताब्दी में उपनिवेशवाद के चंगुल में फंस चुका था तथा यहाँ पर ब्रितानी शासन का आगाज हो चुका था तो भारत में भी बन्दूक के एक दिलचस्प दौर ने जन्म लिया।

यह वाकिया है लखनऊ और इसके तत्कालीन नवाब शुजा-उद-दौला से सम्बंधित। यह दौर था सन 1760 के दशक का जब ब्रितानी शासन ने शुजा-उद-दौला को हथियार देने से मना कर दिया था अब ऐसे में शुजा के पास एक ही विकल्प था कि वो खुद ही हथियार का निर्माण करना शुरू कर दे और उन्होंने ऐसा ही किया। ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) जो कि शुरूआती दौर में ब्रितानी शासन के रूप में भारत में कार्य कर रही थी। कप्तान रिचर्ड स्मिथ (Captain Richard Smith) के अनुसार फैजाबाद की कंपनी में ताम्बे की आठ पाउंडर (8 Pounder) की बंदूकों को डच माडल (Dutch Model) से ढाला जा रहा था जिसमें 1000 नए मैचलॉक (Matchlock) तथा बढिया फायर लॉक (Firelock) लगाया जा रहा था। वहां पर दो बंगाली कामगारों को बड़ी बंदूकों को बनाने के कार्य में लगाया गया था। उन बड़ी तोप नुमा बंदूकों को ले जाने के लिए फ्रांस (France) के एक अभियंता को कार्यान्वित किया गया था जो गाड़ियों का निर्माण करता था तथा वह वहां के मजदूरों को इस काम के लिए प्रशिक्षित करने का भी कार्य करता था। यह देख कर ब्रितानी लोगों ने शुजा उद दौला पर नकेल कसने के लिए 1773 में लखनऊ में एक कार्यबल की नियुक्ति की। उन्होंने शुजा उद दौला को 2000 मसकट (Musket) बंदूकें भी दी। बंदूकें देने का एक कारण यह भी था कि वे शुजा उद दौला के कार्यशाला को ठप करने के फिराक में थें। यह असफ उद दौला का कार्यकाल था जब कम्पनी (East India Company) लखनऊ की ताकत को कम करने के फिराक में थी तथा उन्होंने अवध के सैनिक बल को अपने नियंत्रण में लिया तथा उन्होंने यह कार्य अवधि बन्दूक कार्यशाला के साथ भी किया। इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांसीसी अभियंता ने यह कार्यशाला छोड़ दी तथा ब्रितानियों ने पूर्ण रूप से बन्दूक के कारखाने पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।

कालांतर में क्लोद मार्टिन (Claude martin) को कंपनी ने उस कारखाने का अध्यक्ष बनाया। अब यहाँ पर जो बंदूकें बनना शुरू हुयी वे ब्रितानी तरीकें की बनने लगीं। यह 1787 सन था जब अवधि बंदूकों के निर्माण पर पूर्ण रूप से रोक लग गयी। लखनऊ में बनी बंदूकें अत्यंत ही सुन्दर हुआ करती थी जिसपर कई प्रकार की नक्कासियाँ की जाती थी। यहाँ की बनी बंदूकें आज वर्तमान में एक संग्रहण की वस्तु बन चुकी हैं।

चित्र (सन्दर्भ):
1.
भारत में बनाई जाने वाली बन्दूक जिसके ऊपर नक्काशी भी दिखाई गयी है। (Aeon)
2. एक भारतीय ब्रिटिश सैनिक बन्दूक पकडे हुए। (Pexels)
3. मस्कट राइफल (Wikipedia)
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/3f3LoLK
2. https://aeon.co/essays/is-the-gun-the-basis-of-modern-anglo-civilisation