संग्रहालय के लिए क्यों महत्वपूर्ण होते हैं, संग्रहाध्यक्ष (curator)

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
18-05-2020 12:55 PM
संग्रहालय के लिए क्यों महत्वपूर्ण होते हैं, संग्रहाध्यक्ष (curator)

आप सभी लखनऊ के निवासियों को विश्व संग्रहालय दिवस की हार्दिक शुभकामानाएं। संग्रहालय एक ऐसा स्थान है जो कि हमारे जीवन और इतिहास से जुड़े हुए विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं तथा सहेज के भी रखने का कार्य करते हैं। इन संग्रहालयों का ही योगदान है कि आज हम और आप विभिन्न पुरावस्तुओं को देख और समझ पा रहे हैं। संग्रहालयों में हजारों, लाखों और करोड़ो साल पुराने अवशेषों को भी इस प्रकार से संभाल के रखा जाता है कि वे खराब न होने पाएं।संग्रहालय के विषय में कहा जाता है कि वे एक प्रकार के विद्यालय हैं जहाँ पर लोग पढ़ कर नहीं बल्कि वस्तुओं को देखकर ज्ञानार्जन करते हैं।

लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है और यहाँ पर प्राचीन काल से सम्बंधित अनेकों पुरावशेष मिलते हैं। यही कारण है लखनऊ का राजकीय संग्रहालय एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख इमारत है। लखनऊ के इस राज्य संग्रहालय की शुरुआत सन 1863 में लखनऊ के तत्कालीन कमिश्नर कर्नल अब्बोट (Colonel Abbott) द्वारा कैसर बाग़ में छोटी छतर मंजिल भवन में उपस्थित कलाकृतियों के संग्रह से की गयी थी। यह संग्रहालय शुरूआती दिनों में 1883 तक नगरपालिका संस्थान के रूप में कार्य करता था फिर बाद में इसे प्रांतीय संग्रहालय का दर्जा दिया गया। जून 1884 में इस संग्रहालय को लाल बारादरी में अवध के नवाबों के पुराने राज्याभिषेक हॉल में स्थान्तरित कर दिया गया। लखनऊ के इस संग्रहालय के लिए एक विशेष पुरातत्त्व अनुभाग सन 1909 में कैसर बाग़ के पुराने कनिंग कालेज के परिसर में स्थापित किया गया था और इसी वर्ष इस संग्राहलय के प्रबंधन सिमित की औपचारिक गठन भी किया गया था। इस संग्रहालय के निर्माण में ए. ओ. ह्युम (A.O. Hume) जो प्रबंध सिमित के महत्वपूर्ण सदस्य थे और संग्रहालय के प्रथम क्यूरेटर डॉ ए.ए. फ्ह्युरर (Curator Dr. A.A. Fuhrer) ने इस संग्राहलय के निर्माण में प्रमुख योगदान दिया।

ये फ्य्हुरर की ही देन थी कि उन्होंने कंकाली टीला मथुरा, अहिक्षत्र आदि पुरस्थलों की वस्तुओं को यहाँ पर प्रदर्शित किया। क्यूरेटर किसी भी संग्रहालाय का अत्यंत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है जिस पर पूरे संग्रहालय के वस्तुओं को प्रदर्शित करने से लेकर उनके रख रखाव आदि का ध्यान रखना पड़ता है। किसी भी संग्रहालय को क्युरेट (Curate) करना एक अत्यंत ही कठिन विषय है इसमें सम्बंधित व्यक्ति को विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होना आवश्यक है।

किसी भी संग्रहालय में हजारों लाखों साल पुराने पुरावशेष रखे जाते हैं तथा ये तमाम वस्तुए भिन्न-भिन्न माध्यमों से बनायी गयी होती हैं उदाहरण के लिए – पत्थर, कागज़ , हाथी के दांत, हड्डियों आदि से। अब ऐसी स्थिति में इन सभी वस्तुओं के छरण को रोकने तथा उन तमाम पुरा वस्तुओं के लिए जिस नियत तापमान की जरूरत होती है उसकी पूरी जिम्मेदारी एक क्यूरेटर के ही कंधे पर होती है। क्यूरेटर को मात्र रखरखाव या गैलरी को व्यवस्थित करने वाला ही नहीं कहा जा सकता क्यूंकि क्यूरेटर को नयी चीजें भी बनानी पड़ती है जिसमें कई नए विधान शामिल होते हैं जो कि दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किये जाते हैं। क्युरेटर को किसी भी संग्रहालय का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। लखनऊ संग्रहालय में जिस प्रकार से विभिन्न पुरावशेषों को दिखाया जाता है वह एक क्यूरेटर की ही मेनहत का फल है।

चित्र (सन्दर्भ):
सभी चित्र राजकीय संग्राहलय, लखनऊ और वहाँ प्रतिस्थापित कलाकृतियों के चित्र हैं।

सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/State_Museum_Lucknow
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Curator
3. https://www.theguardian.com/culture-professionals-network/2016/jan/22/museum-curator-job-secrets-culture-arts
4. https://www.museumsassociation.org/comment/27082013-the-importance-of-curators-sw-fed