समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1055
मानव और उनके आविष्कार 830
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
                                            सम्पूर्ण भारत में भोजन पकाने की कई तकनीकियाँ विकसित हैं जो कि एक क्षेत्र विशेष से सम्बंधित होती हैं। इन्ही में से एक है अवधी भोजन, अवधी भोजन मुख्य रूप से लखनऊ और आस पास के क्षेत्रों से सम्बंधित व्यंजन बनाने की कला है। अवधी खाना पकाने की शैली मध्य एशिया (Central Asia), मध्य पूर्व और उत्तर भारत में एक जैसी है, अवधी खाने में शाकाहार और मांसाहार दोनों ही शामिल हैं। अवधी खाने की बात करें तो यह मुग़ल खाना पकाने के तरीके से काफी प्रभावित हुआ है। अवध के खानसामों के विषय में बात करें तो उन्होंने धीमी आंच पर खाना पकाने की शैली का आविष्कार किया जो कि आज भी लखनऊ में देखा जा सकता है। अवध की बात करें तो यह शुरूआती दौर में अयोध्या के नाम से जाना जाता था, कालान्तर में नवाबों के समय में इस भूभाग को अवध का नाम मिला।
  
शुरूआती दौर में अवध की राजधानी फैजाबाद थी जो कि नवाब असफ उद दौला के समय में लखनऊ को विस्थापित हो गयी तथा इन्होने ही यहाँ की संस्कृति आदि में परिवर्तन किया। यह वही समय था जब यहाँ पर विभिन्न रसोइये आने शुरू हुए, यह वह समय था जब रसोइये बड़ी सभाओं के लिए भोजन पकाने का कार्य करते थे और इन रसोइयों को बावर्चिस नाम से जाना जाता था। इस समय में बावर्चियों के बीच में कई प्रतियोगिताएं भी हुयी जहाँ पर वे बावर्ची मुख्य अतिथि (दरोगा-ऐ-बावर्चियन) को खुश करने के लिए तमाम प्रकार के व्यंजन बनाते थे।
 
अवध में खाना बनने के उपरान्त यहाँ के लोग जिस स्थान पर खाना खाते थे उस स्थान को दस्तरख्वान के नाम से जाना जाता था। अवधी खाने में कबाब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, प्रारंभिक समय से ही यहाँ पर कबाब बड़े पैमाने पर बनाया जाता था, और आज भी बनाया जाता है। कबाबों में विभिन्न किस्मे भी हैं जैसे की काकोरी कबाब, शमी कबाब, बोटी कबाब, घुटवा कबाब और सीक कबाब आदि।
 
भारत के पंजाब प्रांत में भी कबाब बनाया जाता है लेकिन अवधी कबाब और पंजाबी कबाब में एक ख़ास अंतर है और वह यह है कि अवधि कबाब चूल्हे पर तथा कडाही में बनाया जाता है जिस कारण से इसे चूल्हा कबाब के नाम से जाना जाता है तथा पंजाबी कबाब को तंदूर से पकाया जाता है इस कारण यहाँ के कबाब को तंदूरी कबाब के नाम से जाना जाता है। मुग़ल खाने और अवधी खाने में मुख्य भिन्नता यही है कि जहाँ मुग़ल खाने में दूध, क्रीम (Cream) का प्रयोग किया जाता है वहीँ अवधि खाने में मसालों का ही प्रयोग किया जाता है। अवधी खाने में मुख्य रूप से 20 मसालों का प्रयोग किया जाता है लेकिन उन बीसों मसालों का पूर्ण स्वाद यहाँ के भोजन में हमें देखने को मिलता है।
अवधी खाना बनाने की कुछ प्रमुख तकनीकें निम्नवत हैं-
 
दम देना, गिले हिकमत, भगोना, डेगची, घी दुरुस्त करना, धुंआ, गलावट आदि। इन्ही तकनीकों में से एक है भागर जो कि करी में तड़का लगाने की विधि है, धुंगर या धुआं लगाने की तकनिकी जिसमे खाद्य पदार्थ में धुंआ लगाया जाता है। दम देना अर्थात एक बर्तन को पूर्ण रूप से बंद कर के अधपका खाना धीमी आंच पर पकाया जाता है, दम देकर पकाने के पकवानों में बिरयानी आती है। गलावट तकनिकी में मांस को नरम करके पकाने की प्रक्रिया है। घी दुरुस्त करना अर्थात घी के सुगंध को केवड़ा का पानी और इलायची आदि डाल के कम करना आदि तकनीकें हैं।
चित्र सन्दर्भ :
1. मुख्य चित्र में लखनऊ की ख़ास नवाबी दम बिरयानी दिखाई गयी है। (Wikimedia)
2. दूसरे चित्र में कुछ ख़ास अवधी व्यंजनों का संग्रह दिखाई दे रहा है। (Piqsels)
3. तीसरे चित्र में अवधी शैली में तैयार होने वाले कुछ मशहूर व्यंजन दिखाई दे रहे हैं। (Prarang)
4. चौथे चित्र में सुगन्धित महक वाले मसाले दिख रहे हैं, जो अवधी व्यंजनों में चार चाँद लगाते हैं। (Awadhi Cuisine/Wikimedia)
सन्दर्भ :
1. https://indiacanteen.tastyfix.com/the-origin-and-cooking-techniques-of-awadhi-cuisine/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Awadhi_cuisine#Culinary_terms_and_techniques
3. http://www.indiamarks.com/awadhi-cuisines-culinary-terms-you-should-know-about/