समय - सीमा 261
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                                            कला किसे नहीं पसंद है? कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को कला की परख ना हो वो व्यक्ति, व्यक्ति नहीं रह जाता। हमारे आस पास हर स्थान पर कला और प्रेम हमें दिखाई देता है, वृक्षों में किसी को कला दिखाई देती है तो किसी को पत्थरों में, किसी को किताबों में तो किसी को कहीं और। कला के विषय में सदैव से यह कहा गया है कि नजर होनी चाहिए देखने वाले में, कला तो हर स्थान पर ही व्याप्त है। हमारा लखनऊ ऐसा शहर है, जो कि मानो किसी शायर द्वारा सजाया गया हो, यहाँ की इमारतों से लेकर यहाँ की गलियां आदि इसी का उदाहरण पेश करती हैं। लखनऊ को कला के रंग में रंगने वाला कोई और नहीं बल्कि यहाँ का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह था, वाजिद अली शाह कला का प्रेमी होने के साथ साथ एक हुनरमंद लेखक और शायर भी था। आज भी हम कहीं न कहीं वाजिद अली शाह द्वारा लिखी शायरियों को सुनते रहते हैं-
			उल्फत ने तिरी हम को रक्खा ना कहीं का।
यह पुस्तक भूरे रंग के जिल्द के साथ पुष्पों को उकेर कर गिल्ट (Gilt), सोने और चांदी के सजावटी कार्य से तैयार की गयी है। यह पुस्तक वाजीद अली शाह के कला प्रेम को दिखाने का कार्य करती है तथा इसको देखने से यह जीवंत प्रतीत होती है। 
इस पुस्तक में बनी महिलाओं के चित्रण उस समय की महिलाओं की स्थिति तथा उनके प्रेम को प्रदर्शित करने का कार्य करती है, हांलाकि इसमें जिस प्रकार से चित्रों को दर्शाया गया है, वो पारंपरिक रूप से तथा सामाजिक औरतों के भिन्न हैं। वाजिद अली शाह के अफ़्रीकी (African) मूल की महिलाओं के प्रति उठने वाले प्रेम को भी यह पुस्तक दिखाने का कार्य करती है। नवाब वाजिद अली शाह के पास अपना खुद का एक फोटो स्टूडियो (Photo Studio) था, जिसके कारण इस पुस्तक में बने चित्र उनके वास्तविक पोट्रेट हैं। इस पुस्तक में हम नवीन उभरती हुई फोटोग्राफी तकनीकी और इस्लामिक सचित्र पाण्डुलिपि की प्रणाली को देख सकते हैं। यह पांडुलिपि या किताब सन 1858 में सिखों द्वारा जब लखनऊ पर धावा बोला गया था, तो उन्होने इसे लखनऊ की रॉयल लाइब्रेरी (Royal Library) से उठा लिया था तथा सिखों द्वारा ही इसे सर जॉन लोरेंस (Sir John Lawrence) को भेंट में दे दिया गया था। लोरेंस ने सन 1859 में यह किताब महारानी विक्टोरिया (Queen Victoria) को भेंट स्वरुप दे दी थी। 
नवाब वाजिद अली शाह स्त्रियों के अत्यंत ही नजदीक रहना पसंद करते थे और यही कारण है कि उन्होंने परीखाने का निर्माण करवाया था। वर्तमान समय में जिस स्थान पर भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय है, कभी वही वाजिद अली शाह का परीखाना हुआ करता था। परीखाने में वे औरतें रहा करती थी, जिनपर वाजिद अली शाह का दिल आ जाता था। वाजिद अली शाह एक दिलफेंक इंसान थे तथा भारतीय इतिहास में वे पहले ऐसे नवाब हुए जो अपना एक स्तन कपड़ों के ऊपर दिखाने वाला वस्त्र पहनते थे। यह 1857 की क्रान्ति थी जिसने पूरे अवध के साम्राज्य को ढहा दिया और इसी तरह से एक कला प्रेमी और शायर नवाब पूर्ण रूप से टूट गया। अभी हाल ही में परीनामा नामक पुस्तक लिखी गयी है, जिसमे वाजिद अली शाह के जीवन के विषय में और भी जानकारियाँ प्रदान की गयी हैं। आज भी वाजिद अली शाह द्वारा लिखित किताबों और लेखों से उनके जीवन के विभिन्न आयामों के विषय में हमें जानकारी प्राप्त होती है।