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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense Research and Development Organization) रक्षा संबंधी तमाम शोध और प्रयोगशालाओं का गढ़ है, इन्हीं के द्वारा भारत के नाभिकीय शस्त्रागार कार्यक्रम संचालित होते हैं। भारत की क्षमताओं, इसके इस्तेमाल तथा प्रचार-प्रसार की विभिन्न योजनाओं को जानने के लिए यह पता करना जरूरी है कि भारत में नाभिकीय हथियारों के लिए पहला स्थल कौन सा है? नाभिकीय युद्ध के दौरान दोनों नाभिकीय शक्तियों द्वारा होने वाले संभावित नुकसान का आकलन आसान नहीं होगा, ऐसे में नाभिकीय संसाधनों की सुरक्षा और चाक-चौकस देखरेख पहली आवश्यकता है। नाभिकीय बम विस्फोट से शहरवार नुकसान का अंदाजा लगाने के लिए न्यूक मैप (Nuke Map) वेबसाइट मददगार होती है।
क्या है नाभिकीय प्रसार (Nuclear Proliferation)
नाभिकीय प्रसार का सीधा ताल्लुक नाभिकीय हथियारों, विखंडनीय सामग्री, हथियार बनाने की नाभिकीय तकनीक और उन देशों की गतिविधियों से है, जिन्हें नाभिकीय हथियारों से संपन्न होने की मान्यता प्राप्त नहीं है। इसे आम भाषा में एनपीटी (NPT) या परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) कहा जाता है। इसका बहुत से देशों ने विरोध किया है। क्योंकि कई देशों के पास इन हथियारों के जखीरे का मतलब है सिर पर मंडराता नाभिकीय युद्ध का खतरा।
अंतरराष्ट्रीय नाभिकीय निरस्तीकरण दिवस
वैश्वीक स्तर पर नाभिकीय निरस्त्रीकरण का लक्ष्य हासिल करना संयुक्त राष्ट्र का सबसे पुराना लक्ष्य रहा है। 1946 में सामान्य सभा के पहले प्रस्ताव में इस विषय पर चर्चा ने परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की, जो 1952 में समाप्त हो गया। उसके बाद से संयुक्त राष्ट्र ने कूटनीतिक स्तर पर नाभिकीय निरस्तीकरण के लिए आगे बढ़कर प्रयास किए। 1959 में पूर्ण निरस्त्रीकरण का लक्ष्य रखा। 1978 में संयुक्त राष्ट्र का पहला सत्र इसी मुद्दे पर केंद्रित था। सभी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने अपने स्तर पर इसके लिए प्रयास किए। तब भी आज लगभग 13400  नाभिकीय हथियार मौजूद हैं। जिन देशों में यह हथियार हैं, वे इनके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2013 में अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करने के पहले 26 सितंबर 2013 को  न्यूयार्क में नाभिकीय निरस्तीकरण पर उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की थी।
नाभिकीय हथियारों का विनाशक इतिहास
1945 में 2 परमाणु बम ने हिरोशिमा और नागासाकी शहरों को नेस्तनाबूद कर दिया था। 213000 लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई थी। यह काला इतिहास बार-बार इस विनाश की पुनरावृत्ति को रोकने को रेखांकित करता आया है। बार-बार भारत-पाकिस्तान के बीच भी नाभिकीय युद्ध की आशंका व्यक्त की जाती है। ऐसा होने का मतलब होगा अरबों लोगों की मौत।
अंतरराष्ट्रीय नाभिकीय निरस्तीकरण दिवस 26 सितंबर 2020 में अपनी सालगिरह मनाने जा रहा है, क्या नाभिकीय निरस्त्रीकरण का सपना एक कपोल कल्पना ही रहेगा या इससे संभावित नुकसान एक दिन इसे अमलीजामा भी पहना सकेंगे?