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गणित के संदर्भ में हम अक्सर यह बात सुनते हैं, कि “मेरी गणित में रूचि नहीं है या मेरी गणित अच्छी नहीं है”। क्यों कि, अक्सर यह माना जाता है कि, गणित में रूचि रखना या गणित की समझ होना, सबसे आत्म-विनाशकारी विचार है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। गणित में सभी को रूचि लेनी चाहिए और अगर आप ऐसा नहीं सोचते हैं, तो आप संभवतः अपने कैरियर (Career) में बाधा डाल रहे हैं। इससे भी बदतर, आप एक नुकसानदायक मिथक – यह मानना कि, गणित करने की क्षमता जन्मजात आनुवंशिक होती है - को स्थिर करने में भी मदद कर सकते हैं, जो ऐसे बच्चों को नुकसान पहुंचाता है, जिन्हें गणित सीखने या समझने में परेशानी होती है। हो सकता है कि, गणित सीखने या करने की क्षमता कुछ हद तक आनुवंशिक हो, लेकिन अधिकांशतः यह कथन सही नहीं है।
गणित सीखने की क्षमता में कमी पिछले कुछ दशकों में चिंता का विषय बन गयी है। बुनियादी गणित का उपयोग करने की क्षमता आधुनिक समाज में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन यह जटिल होती जा रही है। कुछ बच्चों को गणित सीखने में समस्या होती है, जो किसी भी अन्य शैक्षणिक चुनौती के अनुरूप है, जिसका बच्चे सामान्यतः सामना करते हैं। कुछ लोग या बच्चे आसानी से गणित सीख लेते हैं, जबकि कुछ को इसे करने में कठिनाई का अनुभव होता है। एक अध्ययन के अनुसार, इस समस्या का मुख्य कारण संख्यात्मकता (Numerosity) के निरूपण में मूलभूत कमी हो सकती है। इस समस्या के तीन संभावित स्रोत या कारण हो सकते हैं, लेकिन इन्हें समझने के लिए, आपको अनुमानित संख्या प्रणाली (Approximate Number System) के बारे में पता होना चाहिए। सभी बच्चे संख्यात्मकता को समझने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं। अनुमानित संख्या प्रणाली, के द्वारा हालांकि, सटीक संख्या नहीं बतायी या समझी जा सकती, लेकिन इसके द्वारा तुलनात्मक निर्णय किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आपको बिंदुओं के दो समूह दिए जाते हैं तो, आप बिना गिने यह बता सकते हैं कि, उनमें से किस समूह में अधिक बिंदु हैं? ऐसा अनुमानित संख्या प्रणाली की समझ से ही सम्भव हो पाता है। यह क्षमता बिंदुओं की संख्या में पूर्ण अंतर पर ही नहीं, बल्कि अनुपात पर निर्भर करती है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि, अनुमानित संख्या प्रणाली, संख्या के कार्डिनल (Cardinal) मूल्यों या मानों की समझ के लिए भी आवश्यक है। इस प्रकार यदि बच्चे में अनुमानित संख्या प्रणाली विशिष्ट गति से विकसित नहीं होती है तो, बच्चे में मात्रा के संज्ञानात्मक निरूपण का विकास धीमी गति से होता है, जो गणित सीखने और समझने को बाधित करता है। गणित सीखने में कठिनाई का दूसरा कारण यह हो सकता है कि, भले ही बच्चे अनुमानित संख्या प्रणाली की समझ रखते हों, लेकिन अगर वे प्रदर्शित राशियों को सम्बंधित प्रतीकों (संख्या नाम और अरबी अंक) से नहीं जोड़ पाते, तो उन्हें गणित सीखने में समस्या का सामना करना पड़ता है। तीसरा संभावित कारण यह है कि, भले ही बच्चे संख्याओं के कार्डिनल मूल्य को समझते हों, लेकिन यदि वे उन संख्याओं के बीच तार्किक संबंधों को नहीं समझ पाते तो, उन्हें गणित सीखने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
ये सभी कारण व्यक्ति या बच्चे की गणित में अक्षमता को संदर्भित करते हैं, लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि, वर्तमान समय में समाज या लोगों द्वारा गणित को अधिक महत्व नहीं दिया जा रहा है। अधिकांश लोग गणित के क्षेत्र में जाने से बच रहे हैं, जिसका एक उदाहरण भारत भी प्रस्तुत करता है। दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence - AI) और मशीन लर्निंग (Machine Learning - ML) कौशल के लिए भारत आ रही हैं। लेकिन प्रसिद्ध गणितज्ञों का मानना है कि, इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए देश को अपनी गणित क्षमताओं में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि, वह वास्तव में अभिनव और मजबूत समाधान पेश कर सके। भारत ने शून्य का आविष्कार किया, लेकिन गणित को कई कारणों से यहां गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। इसका पहला कारण वैश्विक घटना जबकि दूसरा कारण स्वतंत्रता के समय से अभियांत्रिकी (Engineering) पर भारत के विशेष ध्यान या रूचि को माना जा रहा है। इसके अलावा भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में शिक्षण और अनुसंधान का पृथक्करण भी भारत में गणित के पतन का कारण है। अनेकों गणितज्ञों का मानना है कि, यदि देश में मजबूत गणितीय प्रतिभा नहीं है तो, भारत चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व नहीं कर पायेगा। इस प्रकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास के लिए  गणित के क्षेत्र पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।