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काग़ज़ी मुद्रा (paper currency) की हमारे समाज में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। हम काग़ज़ के एक टुकड़े से उस पर लिखित मूल्य जितना खर्च कर उतनी ही वस्तु प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक अर्थव्यवस्था को खड़ा करने में काग़ज़ी मुद्रा का एक बहुत बड़ा योगदान है। एक बैंक नोट (promissory note) या काग़ज़ी मुद्रा ऐसा नोट होता है जो लाइसेंस प्राप्त प्राधिकारी (licensed authority) द्वारा धारक (bearer) को मांग करने पर अदा किया जाता है। काग़ज़ी मुद्रा का चलन भले ही आधुनिक हो पर इसका इतिहास काफी पुराना है।
विश्व में सबसे पहले काग़ज़ी मुद्रा सातवीं सदी से पूर्व तांग वंश (Tang dynasty) द्वारा चीन में विकसित की गई थी। हालांकि वह पूर्ण रुप से कागजी मुद्रा नहीं थी। असली काग़ज़ी मुद्रा जियाउज़ी (jiaozi) के रूप में 11वीं सदी में सांग वंश (Sang dynasty) द्वारा चलाई गई थी जिसका बाद में मंगोल वंश व युआन वंश (Yuan dynasty) ने भी प्रयोग किया था।
यूरोप को काग़ज़ी मुद्रा से परिचित खोजकर्ता मार्कोपोलो (Marco polo) ने 13वीं सदी में करवाया था। मार्कोपोलो ने अपने यात्रा विवरणों में युआन वंश के समय प्रयोग होने वाली काग़ज़ी मुद्रा का जिक्र किया था। 14वीं सदी में इटली और फ्लैंडर्स (Flanders) में असली मुद्रा की जगह वचन-पत्रों (promissory notes) को लंबी दूरियों पर ले जाया जाने लगा क्योंकि यह मुद्रा के मुकाबले अधिक सुरक्षित था। शुरुआत में ये वचन-पत्र व्यक्तिगत तौर पर दिए जाते थे परंतु बाद में इनका जारीकर्ता द्वारा किसी भी धारक को मूल्य अदा करने में प्रयोग होने लगा। भुगतान के लिए वचन-पत्रों का प्रयोग 17 वीं सदी में अत्यधिक बढ़ गया।
वचन-पत्रों के बाद बैंक नोटों का दौर आया। पहली बार स्थाई रूप से बैंक-नोटों को बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने 1694 के फ्रांस (France) के खिलाफ हुए युद्ध के खर्चे के लिए जारी किया था। बैंक नोट आने के बाद एक केंद्रीय बैंक (Central bank) की आवश्यकता महसूस हुई जो इन नोटों को जारी कर सके और इन्हें नियंत्रित कर सके। केंद्रीय बैंक बनाने का प्रयास सबसे पहले अमेरिका ने 1791 और 1816 में किया। आखिरकार 1862 में अमेरिका की सरकार ने बैंक नोट छापना शुरू कर दिया। 19वीं सदी के मध्य में ही कई व्यावसायिक बैंक आ गए थे जिन्होंने अपने नोट छापने शुरू कर दिए। ऐसे में इंग्लैंड ने 1844 के बैंक चार्टर एक्ट (Bank Charter Act) के तहत आधुनिक केंद्रीय बैंक की स्थापना कर नोटों की छपाई को अन्य बैंकों के लिए बाधित कर दिया।
भारत में टोकन मुद्रा का चलन तो हड़प्पा सभ्यता के समय से ही मिलता है। कई प्रमुख शासक-वंश जैसे मौर्य-वंश, गुप्त-वंश तथा मुगल-वंश आदि ने भी लेन-देन में मुद्रा का इस्तेमाल किया। इन शासकों ने सोने चांदी और तांबे के सिक्कों को मुद्रा की तरह इस्तेमाल किया। काग़ज़ी मुद्रा को कई और चीजों की तरह ही अंग्रेज़ भारत में ले कर आए। सिर्फ अंग्रेजों ने ही नहीं बल्कि हर यूरोपियन (European) सत्ता (फ्रेंच, पुर्तगाली और डच) ने अपने-अपने उपनिवेशों (colonies) में इनका प्रयोग किया। 
1861 के पेपर करेंसी एक्ट ने ब्रिटिश सरकार को औपनिवेशिक भारत (colonial India) में नोट जारी करने का अधिकार दे दिया। 1862 में रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) के सम्मान में पहली बार उनके चित्र के साथ ब्रिटिश सरकार ने भारत में नोट छापे। अन्य देशों की तरह ब्रिटिश सरकार ने भी 1935 में एक केंद्रीय बैंक की स्थापना की जिसका नाम था रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India)। यह आज भी मुद्रा नियंत्रण (currency regulation) करने और नोट जारी करने का कार्य करता है। 1947 में भारत ने आज़ाद होने के बाद अपनी मुद्रा से भी परतंत्रता के संकेत मिटा दिए और अपनी करेंसी पर अपने संकेत चुने। आज़ाद भारत के नोट पर सारनाथ में स्थित सम्राट अशोक के द्वारा बनवाए गए एक स्तंभ के शीर्ष पर बने सिंहचतुर्मुख (lion capitol) को जगह दी गई जो हमारा राष्ट्रीय प्रतीक भी है। इसके साथ ही राष्ट्र पिता गांधी का भी चित्र नोट में रखा गया।