लखनऊ शहर, जो आज देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य की राजधानी है, का इतिहास कई परतों से ढका है। हर परत की झलक यहाँ किसी ना किसी रूप से देखने को मिल जाती है।
नवाबी इमारतों के अलावा यहाँ पर यूरोपीय वास्तु के भी नमूने बहुतायता मे देखने मिलते हैं। गोथिक वास्तु मे रिहायसी इमारतें तो यहाँ पर कई हैं पर इनके अलावा यहाँ पर जो अन्य व महत्वपूर्ण इमारते हैं उनमे यहाँ के विद्यालय व महाविद्यालय भी हैं जो यूरोपिय शिल्प की अनुपम प्रति को पेश करते हैं।
यहाँ पर उपस्थित यूरोपीय वास्तु मे बने विद्यालयों मे ला मार्टिनियर कालेज, लखनऊ क्रिश्चियन महाविद्यालय, इसाबेला थोबर्न महाविद्यालय, किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय, कैनिंग महाविद्यालय, सेन्ट फ्रान्सिस महाविद्यालय, लोरेटो कान्वेन्ट और गवर्नमेन्ट कला व शिल्प महाविद्यालय मुख्य हैं। इनके वास्तु पर नज़र डालने पर यह पता चलता है कि यहाँ पर मुग़ल वास्तुकला का असर तो है ही पर साथ ही साथ गोथिक का भी अत्यन्त प्रभाव रहा है।
यूरोपीय लोग यहाँ पर बेहतर भविष्य के लिये आकर बसना शुरू कर दिये थे तथा इसी कारण यहाँ पर गोथिक वास्तु का प्रभाव अधिक मात्रा मे दिखाई देती है। आँकड़ो के अनुसार यहाँ रेजीडेंसी मे करीब 3000 यूरोपियन रहते थे।