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                                            भारत देश को त्योहारों का गढ़ कहा जाता है, यदि हम गौर से देखें तो साल के हर दिन यहां
पर किसी न किसी त्योहार और पर्व का आनंद लिया जा सकता है। परंतु यहां मनाए जाने
वाले त्योहारों में से, कुछ त्यौहार ऐसे भी है जिनकों मनाने के लिए दुनियाभर के आगंतुक
भारत आते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म के पावन अवसर पर मनाया जाने वाला लोकप्रिय
पर्व कृष्ण जन्माष्टमी भी, ऐसे ही बेहद लोकप्रिय त्योहारों में शामिल है।
जन्माष्टमी से संबंधित उत्सव आमतौर पर दो दिनों तक मनाये जाते हैं। चूँकि ऐसी
मान्यता है की, कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए पहले दिन को कृष्ण अष्टमी,
या गोकुल अष्टमी के रूप में जाना जाता है, जिसे आमतौर पर उपवास के साथ मनाया जाता
है,साथ ही देर रात तक कीर्तन भजन का आयोजन किया जाता है। दूसरे दिन को काल
अष्टमी या जन्माष्टमी कहा जाता है, इस दौरान देशभर में गायन, नृत्य, भक्ति गीत गाए
जाते हैं। साथ ही कई स्थानों पर शानदार और स्वादिष्ट प्रतिभोज का आयोजन भी किया
जाता है। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों में शानदार कार्यक्रम और समारोह भी
आयोजित किए जाते हैं, जिनकी छठा अपने आप में अद्भुद होती है।
उत्तर प्रदेश: यद्यपि इस दिन को लोकप्रिय रूप से जन्माष्टमी के रूप में जाना जाता है, परंतु
भौगोलिक भिन्नता के आधार पर इसके नाम भी बदल जाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के
आयोजनों की भव्यता का अनुभव करने के लिए उत्तर भारत का उत्तर प्रदेश राज्य संभवतः
सबसे अच्छी जगह है। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और कर्मस्थली वृंदावन में इस
त्योहार की रौनक और परम्पराएं पूरी दुनियां में सबसे अनोखी और रोमांचक होती है।
उत्तरप्रदेश में यह त्यौहार पूरे सप्ताह भर मनाया जाता है। त्योहार से पहले के दिनों में ही,
मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है। कई स्थानों पर पंडाल (अस्थायी तंबू) स्थापित किए
जाते हैं, और रासलीला प्रदर्शन (कृष्ण के जीवन से महत्वपूर्ण दृश्यों को दर्शाने वाला एक
लोक नृत्य-नाटक) का आयोजन किया जाता है। भगवान कृष्ण की मूर्तियों का दूध, शहद
और दही से अभिषेक किया जाता है, जिसके बाद मूर्तियों को नए कपड़ों और आभूषणों से
सजाया जाता है,और खूबसूरती से सजाए गए पालने में रखा जाता है। इस दौरान यहां के
माहौल में कृष्ण भजनों की गूँज दूर-दूर तक सुनाई देती है। स्थानीय लोग भगवान को
छप्पन भोग (56 व्यंजन) चढ़ाकर और दही हांडी अनुष्ठान आयोजित करके उत्सव की
शोभा में चार चाँद लगा देते हैं। हालांकि यह त्योहार राज्य के अधिकांश मंदिरों में धूमधाम
से मनाया जाता है, लेकिन मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर और
वृंदावन में बांके बिहारी, इस्कॉन और राधा रमन मंदिर में इसकी रौनक मंत्रमुग्ध कर देती
है।
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में यह उत्सव गोकुलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, और बेहद
लोकप्रिय भी है। मुंबई और पुणे सहित राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में आयोजित किया जाने
वाला दही-हांड़ी कार्यक्रम इस पर्व की शोभा में चार चाँद लगा देता है।
दरअसल दही हांडी कार्यक्रम, कृष्ण जन्मोत्सव का एक प्रमुख अनुष्ठान बन गया है, जो
मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र आदि राज्यों में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन, युवा लड़कों का समूह एक मानव पिरामिड (human pyramid) बनाता
है, जिसमे जमीन से औसतन 30 फीट की ऊंचाई पर दही से भरे मिट्टी के पात्र (मटके) को
तोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही के बर्तन को तोड़ने की रस्म भगवान कृष्ण के बचपन
के दिनों में एक बच्चे के रूप में मक्खन, घी और दही चोरी करने की किंवदंतियों का
प्रतिनिधित्व करती है। उन्हें दुग्ध से निर्मित व्यंजनों से बेहद लगाव था, वे अक्सर उन्हें
चुराया करते थे, जिस कारण उनका एक लोकप्रिय नाम माखन चोर भी है। मान्यता है की
बचपन में कृष्ण से बचाने के लिए गोकुल की महिलायें दुग्ध से निर्मित (विशेष रूप से
माखन) को ऊंचाई पर लटका देती थी। किंतु नटखट कन्हैया, अपने नन्हें दोस्तों के साथ
चोरी छुपे मानव पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर लटकी उन मटकियों को फोड़ देते थे, और
उसका सारा माखन मिलकर खा जाते थे। आज जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण की इस
बाल लीला को दोहराया जाता है। दही हांड़ी में शामिल लड़कों के समूह को मंडल कहा जाता
है, और वे हांडी तोड़ने के लिए अलग-अलग इलाकों में जाते हैं। ऊंचाई पर लटकी मटकी
तोड़ने पर विजेता टीम को भारी धनराशि भी इनाम स्वरूप अदा की जाती है।
गुजरात: कृष्ण जन्मोत्सव गुजरात के द्वारका शहर में भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया
जाता है। द्वारका को भगवान कृष्ण के शहर के रूप में भी जाना जाता है, यहां दही हांडी
परंपरा महाराष्ट्र के समान ही मनाई जाती है। यहां पर रात भर चलने वाले समारोह भी
आयोजित किये जाते हैं, जिसमें गरबा नृत्य, भक्ति गीतों का पाठ और रासलीला प्रदर्शन
शामिल हैं। इस दौरान कई भक्त उपवास भी रखते हैं। यहां के भगवान कृष्ण को समर्पित
द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में देशभर के भक्त गुजरात का रुख
करते हैं।
दक्षिण भारत: जन्माष्टमी के अवसर पर दक्षिण भारत में मनाए जाने वाले उत्सव उत्तर
भारत के लोगों से भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में, लोग कोलम नामक सुंदर
सजावटी पैटर्न बनाते हैं, जिसे फर्श पर चावल के घोल से बनाया जाता है, साथ ही उनके घर
के प्रवेश द्वार पर कृष्ण के पैरों के निशान भी छापे जाते हैं। आंध्र प्रदेश में, युवा लड़के कृष्ण
के रूप में तैयार होते हैं,और दोस्तों और पड़ोसियों से मिलने जाते हैं। एक दूसरे को फल और
मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं। इस अवसर पर श्लोकों का पाठ (संस्कृत छंद) और भक्ति
गीत प्रथाएँ भी आम हैं।
ओडिशा और पश्चिम बंगाल: पूर्वी राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इस हिंदू त्योहार को
श्री कृष्ण जयंती, या श्री जयंती के रूप में मनाया जाता है। लोग इसे उपवास के साथ मनाते
हैं, और आधी रात तक हिंदू धर्मग्रंथ भागवत पुराण के दसवें अध्याय का पाठ करते हैं।
अगली सुबह कृष्ण के पालक माता-पिता, नंदा और यशोदा के उत्सव के साथ शुरू होती है।
इस दिन को नंदा उत्सव कहा जाता है, और लोग भगवान को छप्पन भोग लगाते हैं, जिसके
बाद वे अपना उपवास तोड़ते हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों कि ही भांति, हमारे शहर लखनऊ में भी नंदलाला के जन्म को बड़े ही
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की
अष्टमी तिथि को भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था। इस
अवसर पर लखनऊ के प्रसिद्द डालीगंज के श्री माधव मंदिर में भी अनेक धार्मिक आयोजन
आयोजित किये जाते हैं, जहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारे लगी रहती हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3jql7vl
https://bit.ly/3yvG3W2
https://en.wikipedia.org/wiki/Krishna_Janmashtami
https://bit.ly/3gK6OA9
चित्र संदर्भ 
1. कृष्ण जन्माष्टमी दही हांड़ी का एक चित्रण (flickr)
2. जन्माष्टमी के त्यौहार पर सजे-धजे बच्चों का एक चित्रण (flickr)
3. मुंबई महाराष्ट्र में दही हांडी, एक जन्माष्टमी परंपरा का सुंदर चित्रण (wikimedia)
4. अर्धरात्रि में जगमगाते कृष्ण मंदिर का एक चित्रण (wikimedia)
5.  अभागवत पुराण में कृष्ण किंवदंतियों ने कई प्रदर्शन कला प्रदर्शनों को प्रेरित किया है जिसमे से एक कथक, कुचिपुड़ी का एक चित्रण (wikimedia)